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Friday, 29 March, 2024
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जवाहर लाल नेहरू के दादा गंगाधर दिल्ली के आखिरी कोतवाल थे

दिल्ली में पुलिस व्यवस्था की शुरूआत करीब आठ सौ साल पुरानी मानी जाती है. तब दिल्ली की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी शहर कोतवाल पर हुआ करती थी.

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आजादी के 70 साल बाद दिल्ली पुलिस को अपना मुख्यालय मिला है. 31-10- 2019 को दिल्ली पुलिस का मुख्यालय नई दिल्ली में संसद भवन के पास जयसिंह मार्ग स्थित अपनी नई बनी इमारत में चला गया.

इसके पहले पुलिस मुख्यालय आईटीओ और कश्मीरी गेट में था. पुलिस का इतिहास गौरवशाली रहा है पुलिस में मौजूद ईमानदार अफसरों को इससे प्रेरणा लेकर पुलिस के गौरव को दोबारा स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए. तभी आने वाले समय में पुलिस की छवि फिर से चमकेगी.

दिल्ली पुलिस की छवि आज भले ही अच्छी नहीं है लेकिन पुलिस का इतिहास सुनहरा रहा है. एक समय ऐसा था कि कोतवाल की ईमानदारी की मिसाल दी जाती थी. कोतवाल की ईमानदारी के क़िस्सों का दिल्ली पुलिस ने अपने इतिहास में प्रमुखता से उल्लेख किया है. लेकिन आज के दौर में ऐसा कोई नज़र नहीं आता. जिसकी तुलना उस समय के कोतवाल से की जा सके. आज तो आलम यह है कि पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त है. पुलिस वाले ही जबरन वसूली और लूट तक की वारदात में शामिल पाए जाते हैं.

दिल्ली में पुलिस व्यवस्था की शुरूआत करीब आठ सौ साल पुरानी मानी जाती है. तब दिल्ली की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी शहर कोतवाल पर हुआ करती थी. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा गंगाधर दिल्ली के आखिरी कोतवाल थे. उस समय के शहर कोतवाल से आज देश की सबसे ज्यादा साधन सम्पन्न दिल्ली पुलिस ने लंबी दूरी तय की है.

पहला कोतवाल

दिल्ली का पहला कोतवाल मलिक उल उमरा फखरूद्दीन थे. वह सन 1237 ईसवी में 40 की उम्र में कोतवाल बने. कोतवाल के साथ उन्हें नायब-ए-गिब्त (रीजेंट की गैरहाजिरी में) भी नियुक्त किया गया था. अपनी ईमानदारी के कारण ही वह तीन सुलतानों के राज-काल में लंबे अर्से तक इस पद पर रहे.

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आज भले ही दिल्ली पुलिस की छवि दागदार है, पहले के कोतवालों की ईमानदारी के अनेक किस्से इतिहास में दर्ज हैं.

एक बार तुर्की के कुछ अमीर उमराओं की संपत्ति सुलतान बलवन के आदेश से जब्त कर ली गई. इन लोगों ने सुलतान के आदेश को फेरने के लिए कोतवाल फखरूद्दीन को रिश्वत की पेशकश की.

कोतवाल ने कहा ‘यदि मैं रिश्वत ले लूंगा तो मेरी बात का कोई वजन नहीं रह जाएगा.’


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कोतवाल का पुलिस मुख्यालय उन दिनों किला राय पिथौरा यानी आज की महरौली में था. इतिहास में इसके बाद कोतवाल मलिक अलाउल मल्क का नाम दर्ज है. जिसे सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में कोतवाल तैनात किया था. सुलतान खिलजी ने एक बार मलिक के बारे में कहा था कि इनको कोतवाल नियुक्त कर रहा हूं. जबकि यह है वजीर (प्रधानमंत्री) पद के योग्य है. इतिहास में जिक्र है कि एक बार जंग को जाते समय सुलतान खिलजी कोतवाल मलिक को शहर की चाबी सौंप गए थे. सुलतान ने कोतवाल से कहा था कि जंग में जीतने वाले विजेता को वह यह चाबी सौंप दें और इसी तरह वफादारी से उसके साथ भी काम करें.

मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने के साथ ही गजनफर खान को नए शहर शाहजहांनाबाद का पहला कोतवाल बनाया था. गजनफर खान को बाद में कोतवाल के साथ ही मीर-ए-आतिश (चीफ ऑफ आर्टिलरी) भी बना दिया गया.

कोतवाल व्यवस्था खत्म

1857 की क्रांति के बाद फिंरंगियों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसी के साथ दिल्ली में कोतवाल व्यवस्था भी खत्म हो गई. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के राज काल में उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा और पंडित मोती लाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे. 1857 की क्रांति के बाद फिरंगियों ने दिल्ली पर कब्जा कर कत्लेआम शुरु किया तो गंगाधर अपनी पत्नी और चार संतानों के साथ आगरा चले गए. फ़रवरी 1861 में आगरा में ही उनकी मृत्यु हो गई. गंगाधर नेहरू की मृत्यु के तीन महीने बाद मोती लाल नेहरू का जन्म हुआ था.

आइने अकबरी के अनुसार जब शाही दरबार लगा होता था, तब कोतवाल को भी दरबार में मौजूद रहना पड़ता था. वह रोजाना शहर की गतिविधियों की सूचनाएं चौकीदारों और अपने मुखबिरों के जरिए प्राप्त करता था.

अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया

1857 में अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया. उस समय दिल्ली पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी. 1912 में राजधानी बनने के बाद तक भी दिल्ली में पुलिस व्यवस्था पंजाब पुलिस की देखरेख में चलती रही. उसी समय दिल्ली का पहला मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया था. जिसे पुलिस महानिरीक्षक यानी आईजी के अधिकार दिए गए थे, उसका मुख्यालय अंबाला में था. 1912 के गजट के अनुसार उस समय दिल्ली की पुलिस का नियत्रंण एक डीआईजी रैंक के अधिकारी के हाथ में होता था.


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दिल्ली में पुलिस की कमान एक सुपरिटेंडेंट (एसपी)और डिप्टीएसपी के हाथों में थी. उस समय दिल्ली शहर की सुरक्षा के लिए दो इंस्पेक्टर, 27सब-इंस्पेक्टर,110 हवलदार,985 सिपाही और 28 घुडसवार थे. देहात के इलाके के लिए दो इंस्पेक्टर थे. उनका मुख्यालय सोनीपत और बल्लभगढ़ में था. उस समय तीन तहसील-सोनीपत, दिल्ली और बल्लभगढ़ के अंतर्गत 10 थाने आते थे. दिल्ली शहर में सिर्फ तीन थाने कोतवाली,सब्जी मंडी और पहाड़ गंज थे. सिविल लाइन में पुलिस बैरक थी. कोतवाली थाने की ऐतिहासिक इमारत को बाद में गुरूद्वारा शीश गंज को दे दिया गया. देहात इलाके के लिए 1861 में बना नांगलोई थाना 1872 तक मुंडका थाने के नाम से जाना जाता था .

1946 में पुनर्गठन

दिल्ली पुलिस का 1946 में पुनर्गठन किया और पुलिसवालों की संख्या दोगुनी कर दी गई. 1948 में दिल्ली में पहला पुलिस महानिरीक्षक डी डब्लू मेहरा को नियुक्त किया गया. उनकी नियुक्ति 16 फरवरी को की गई थी इसलिए 16 फरवरी को दिल्ली पुलिस का स्थापना दिवस मनाया जाता है. 1 जुलाई 1978 से दिल्ली में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू कर दी गई. इस समय यानी दिल्ली पुलिस बल की संख्या लगभग 81 हजार है और थानों की संख्या 209 हैं.

महिला पुलिस कम

दिल्ली पुलिस में इस समय पुलिसकर्मियों की कुल संख्या 80709 है, जिसमें महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 9938 है. जो कि कुल पुलिस बल का 12.31 फीसदी ही है.

लेकिन अब देखना यह जरूरी हो गया है कि क्या सिर्फ स्थापना दिवस मनाया जाना महत्वपूर्ण है या फिर दिल्ली पुलिस को अपने इतिहास से सबक लेने की जरूरत है.

(इंद्र वशिष्ठ वरिष्ठ पत्रकार हैं, य़ह लेख  उनके निजी विचार हैं)

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4 टिप्पणी

  1. अरे प्रिंट मीडिया वालों तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आती । तुम आजाद भारत की तुलना उस गुलाम भारत के समय की कर रहे हो। वो भी तुमने उस शासन काल को आज से बेहतर बता दिया। धिक्कार है , तुम्हारे जैसे गुलाम मानसिकता के चैनलों और लोगों पर। मेरा बस चले तो तेरे जैसे कुंठित विचारधारा के लोगों को काला पानी से भी बदतर कोई दंड हो , तो वो तुझे देता।
    नालायक , हरामखोर कहीं का।

  2. गंगाधर नहीं उनका ही असली नाम गयासुद्दीन गाजी था। लोगों को गुमराह क्यों करते हो आपलोग।

  3. शुक्ल जी क्यों झूठ फेला रहे हो पण्डित लक्ष्मीनारायण नेहरू का बेटा गयासुद्दीन कैसे होगा भाजपा के it सेल के भ्रामक प्रचार में मत आओ

  4. अर्थात
    1. नेहरू के दादा मुगलों के नौकर थे
    2. जब फिरंगियों ने दिल्ली में कत्लेआम शुरू किया (जैसा कहा गया लेख में) ,तब कायर शहर कोतवाल अपनी जिम्मेदारी और शेर के लोगो की जिंदगी को छोड़ कर आगरा भाग गया और वहां भी कोई ग्लानि का जीवन नहीं जिया,मरते मरते भी औलाद पैदा कर गया।

    यही सबक लेना है इतिहास से ???

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