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Friday, 29 March, 2024
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कांग्रेस के महागठबंधन में नहीं है केजरीवाल के लिए जगह

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कांग्रेस का मानना है कि दिल्ली में इसकी स्थिति बेहतर हो रही है और यदि यह आप के साथ गठबंधन करती है तो इसकी वापसी का मौका खतरे में पड़ सकता है।

नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन बनाने के लिए इच्छुक नहीं है। यह कांग्रेस का कुछ ऐसा बर्ताव है जो भाजपा विरोधी दलों के प्रारंभिक महागठबंधन की नाक में दम करने वाले अन्तर्निहित विरोधाभासों को सामने लाता है।

कांग्रेस पार्टी के आकलन के मुताबिक यह दिल्ली में पुनरुत्थान पथ पर है, जो राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने से खतरे में पड़ सकता है।

इसके अलावा, यह भव्य पुरानी पार्टी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ अब भी एक गहरा असंतोष रखती है। अरविन्द केजरीवाल सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के प्रमुख सहयोगियों में से एक हैं। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन 2014 लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पर हमला करने के लिए भाजपा और अन्य दलों के लिए एक लांच पैड बन गया था।

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अब आप के साथ गठबंधन के खिलाफ दिल्ली इकाई प्रमुख अजय माकन के मत का समर्थन किया है।

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2019 के लिए महागठबंधन में आप की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पी.सी. चाको ने दिप्रिंट को बताया, “सवाल (आप के साथ गठबंधन का) ही नहीं उठता। भारत में, चुनाव के बाद गठबंधन चुनावपूर्व गठबन्धनों से अधिक व्यावहारिक हैं।”

लेकिन तुरंत ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी टिप्पणी केवल ‘आप’ के सन्दर्भ में थी।

राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी चुनावपूर्व गठबंधन से ‘आप’ को बाहर रखने का कांग्रेस का प्रयास विपक्षी खेमे में बारीक दरार को उजागर करता है, भले ही वे राष्ट्रीय स्तर महागठबंधन में एक साथ आने की इच्छा रखते हों।

कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों, जो राज्यों में इसके प्रमुख राजनीतिक विरोधी हैं, को ज्यादा जगह देने में अनिच्छुक है। राज्य के मुख्यमंत्री भी जैसे को तैसा वाला उदाहरण पेश कर सकते हैं। उदहारण के लिए, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा विरोधी मोर्चे के बारे में उत्साहित हो सकती हैं लेकिन उनके द्वारा कांग्रेस की मांगों को पूरा करने की सम्भावना कम है। कांग्रेस लगातार चुनावी फिसलन के बावजूद स्वयं को पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी मानती है।
कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का एक समान मतभेद हो सकता है। इससे पता चलता है कि क्यों कांग्रेस नेतृत्व राज्यों में, जहाँ इसकी बड़ी हिस्सेदारी है, चुनावपूर्व गठजोड़ के बारे में उत्साहित नहीं है।

कांग्रेस के कार्यकर्ता ने भी यही कहा कि पार्टी उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, झारखण्ड, कर्नाटक और तमिलनाडु में महागठबंधन के हिस्से के रूप में चुनावपूर्व गठजोड़ के लिए इच्छुक है लेकिन इसने अन्य राज्यों में अपनी रणनीति के बारे में “कोई निश्चित दृष्टिकोण नहीं बनाया है”।

श्रीमान मुख्यमंत्री के लिए क्या होगी भूमिका?

केजरीवाल भाजपा विरोधी मोर्चे में एक भूमिका तलाशते रहे हैं और उन विपक्षी नेताओं के साथ मंच भी साझा किया है जिन पर पहले उन्होंने (केजरीवाल ने) आरोप लगाये थे और उनके भले-बुरे कार्यों के लिए उनकी आलोचना की थी।
कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन में एक केन्द्रीय भूमिका निभा सकती है और इसका विपक्ष केजरीवाल के प्रयासों पर पूर्ण विराम लगा सकता है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने पेशेवर प्रतिद्वंदियों के साथ खुद के लिए शांति बरतने और खुद को राजनीतिक वर्ग, जिसके सदस्यों को वह कभी धोखेबाज, झूठे और साजिशकर्ताओं के रूप में चित्रित किया करते थे, के लिए अधिक स्वीकार्य बनाने के लिए गुजारिश करने वाली मुद्रा में रहे हैं।

केजरीवाल ने पिछले महीने बेंगलुरु में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए जनता दल (एस) के नेता एच.डी. देवगौड़ा के निमंत्रण को तुरंत स्वीकार कर लिया लेकिन नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और फिर राजनेता बने केजरीवाल सोनिया और राहुल गाँधी, शरद पवार, अजीत सिंह एवं अन्य विपक्षी नेताओं, जिनकी वे आलोचना किया करते थे, की संगत में प्रत्यक्षतः बाहर और असहज दिखाई दिए।

माकन ने कहा, “सबसे पहले, क्या केजरीवाल धर्मनिरपेक्ष हैं? उन्होंने अन्ना हजारे के साथ मिलकर भाजपा और आरएसएस के समर्थन के साथ कांग्रेस के खिलाफ अनाप-शनाप भाषणों की शुरुआत की थी। वह कांग्रेस की छवि को खराब करने के लिए अकेले जिम्मेदार थे।”

इससे पहले संवाददाताओं से बात करते हुए माकन ने पार्टी द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के अपने दावे को पुख्ता करने के लिए पिछले साल के नगरपालिका चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन का हवाला दिया था।
2015 के विधानसभा चुनाव में, जब यह दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटें जीती थी, तब आप का वोट शेयर 56-57 प्रतिशत था जो नगरनिगम चुनाव में 26 प्रतिशत पर आ गया जबकि इसी दरम्यान कांग्रेस 9.5 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक पहुंची थी।

Read in English: Congress is all for ‘mahagatbandhan’ but Arvind Kejriwal’s AAP does not make the cut

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