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Sunday, 13 October, 2024
होममत-विमतभाजपा को पता होना चाहिए कि राजनीति या शासन के लिए सोशल मीडिया नहीं है एक विकल्प

भाजपा को पता होना चाहिए कि राजनीति या शासन के लिए सोशल मीडिया नहीं है एक विकल्प

इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी के पास राहुल गांधी के मुकाबले कितने अधिक फालोअर्स हैं. फर्क केवल इससे पड़ेगा कि लोकसभा में किसने कितनी सीटें जीतीं.

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यह विचित्र है कि हालि महीनों में राजनीतिक पंडित लगातार आश्वस्त होते हुए दिखाई देते हैं कि सोशल मीडिया पर वैचारिक युद्ध लड़ना 2019 के चुनावों को जीतने की कुंजी होगी।

जबकि, इस माध्यम को मैंने प्रारंभ में ही अपना लिया था और मुझे ये निश्चित रूप से लगता है कि यह महत्वपूर्ण होगा लेकिन मैं सोशल मीडिया के महत्त्व को ज्यादा तरजीह देने के लिए आगाह करूंगा, ख़ासकर जब 2019 तक चल रहे वैचारिक युद्ध में एक तर्क-कुतर्क तराशने की बात आती हो।

उदाहरण के तौर पर ट्विटर को ले लीजिये। ट्विटर दो तरीके से मदद करता है: पहला, यह प्रचार के लिए एक उत्कृष्ट उपकरण है, चूँकि मुख्य मीडिया ट्वीट्स से न्यूज़ प्राप्त करती है और इसलिए ट्विटर पर आपके सन्देश, राय और फोटो अपने लिए दर्शकों के विस्तार का रास्ता तैयार कर सकते हैं। दूसरा, यह आपकी छवि को ट्विटर पर आपको फॉलो करने वाले 5 से 10 प्रतिशत मतदाताओं (शायद कुछ महानगरों में ज्यादा, लेकिन मेरे अपने निर्वाचन क्षेत्र तिरुवनंतपुरम में 10 प्रतिशत से कम) के बीच मजबूत करता है।

अधिकांश मतदाताओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने में ट्विटर मदद नहीं करता क्योंकि ज्यादातर भारतीय निर्वाचन क्षेत्रों में ट्विटर आसानी से अधिकांश लोगों तक नहीं पहुँचता। बेशक, फेसबुक की पहुँच ज्यादा है लेकिन इसमें पोस्ट लम्बी होती हैं जो हर कोई पचा नहीं सकता है। व्हाट्सएप पर वायरल होने वाले छोटे सन्देश और जोक्स भी सन्देश फैलाने का एक प्रभावी माध्यम हैं। लेकिन ये सब किसी निर्वाचन क्षेत्र के आधे मतदाताओं तक भी नहीं पहुँचता। यह स्पष्ट है की मतदाताओं तक पहुँचने के लिए आपको विभिन्न मार्गों की आवश्यकता होती है और संयोगवश सोशल मीडिया एक अतिरिक्त मार्ग प्रस्तावित करती है लेकिन यह प्रचार के किसी भी परंपरागत साधन का विकल्प नहीं है।

मैं यह भी नहीं कहूँगा कि 2014 में सोशल मीडिया ने प्रभावशाली लोगों को प्रभावित किया था क्योंकि हमारे देश में प्रभावशाली लोग सत्ता के पारंपरिक दलालों, अनुभवी राजनीतिक प्रबंधकों और धार्मिक व सामुदायिक नेताओं सहित अधिक पारंपरिक पृष्ठभूमियों से निकलकर आते हैं, जिनकी राय सोशल मीडिया द्वारा निर्धारित नहीं होती है। जबकि मैं मानता हूँ कि आम तौर पर ट्विटर और सोशल मीडिया का महत्त्व बढ़ेगा और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इसके भूमितल पर उतरा जाये और इसका एक आधार स्थापित किया जाए, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह 2019 में अनिवार्य रूप से अपने आप में एक गेम-चेंजर यानी खेल-परिवर्तक होगा। परन्तु जिस तरह के हालात हैं, यदि ऐसा ही रहा तो शायद 2024 में इसका जवाब अलग हो सकता है।

जब मैं पहली बार ट्विटर से जुड़ा, तो यह प्राथमिक रूप से, जो मैं कर रहा था उसके बारे में जनता को सूचित रखने और उन तक पहुँचने के प्रयास का, एक रास्ता मात्र था। जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में मुझे लगा कि यह सुनिश्चित करना मेरे हिस्से का एक कर्तव्य था कि मैं जितना संभव हो सके जनता के साथ उतना पारदर्शी, सुगम और मिलनसार रहूँ, और इसे बहुत लोगों ने सराहा भी। इसने मुझे लोगों के लिए और अधिक सुलभ बना दिया और बदले में, उन्हें मेरे लिए अधिक सुलभ बना दिया। यदि इस प्रक्रिया में इसने मेरी राजनीतिक “ब्रांडिंग” में योगदान दिया, तो मेरे लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

जब मैंने ट्विटर पर शुरुआत की, मैं इस मंच पर बस कांग्रेस का ही पहला नेता नहीं था बल्कि भारत में सबसे पहले ट्विटर पर जुड़ने वाले राजनेताओं में से भी एक था।

दृढ़ता से अपनी बात रखने वाला व्यक्ति सामान्यतयः सबसे पहला पलटवार झेलता है और मैंने क्रत्रिम रूप से निर्मित विवादों और आलोचनाओं को खूब सहा है। वेंकैया नायडू ने एक दूरदर्शी की तरह मेरे बारे में कहा, “बहुत अधिक ट्वीटिंग क्विटिंग (राजनीति छोड़ने) का कारण बन सकता है।” फिर भी मैंने अक्टूबर 2009 में भविष्यवाणी की थी कि दस वर्षों के भीतर भारत में अधिकांश राजनेता सक्रिय रूप से ट्विटर से जुड़ जायेंगे और सोशल मीडिया को गंभीरता से लेंगे। मुझे सही साबित होने में 10 साल से भी कम समय लगा।

सारी ट्वीटिंग एक तरफ लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान मैं अपना लगभग पूरा समय पुरानी शैली के काम करते हुए व्यतीत करता हूँ – जैसे सड़कों से गुजरना, हाथ मिलाना, रैलियों में भाषण देना और जहाँ भी संभव हो मतदाताओं को संबोधित करना। मैं सोशल मीडिया का आनन्द लेता हूँ लेकिन यह राजनीति और शासन के लिए एक विकल्प नहीं है। काश इसका अहसास सत्ताधारी दल को भी होता!

साथ ही, सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलू उन सरल दिनों के बाद से अधिक स्पष्ट हो गए हैं जब मैंने इसे पहली बार अपनाया था। उदाहरण के लिए, जब मैं पहली बार संवाद, हाज़िर-जवाबी और प्रश्नोत्तर में शामिल हुआ था तो मैं हमेशा मानता था कि ये वास्तविक प्रश्नों के साथ वास्तविक इंसान हैं।

अब मुझे एहसास हो गया है कि मुझ पर की गयी टिप्पणियों और पूछे गये प्रश्नों की बड़ी संख्या के पीछे एक राजनीतिक एजेंडा है, वे अक्सर “आयोजित” होते हैं और ये भी हो सकता है कि प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति का वास्तव में कोई अस्तित्व ही न हो। उदाहरण के लिए हमें बताया जाता है कि भाजपा ने सारे दस्तों को इस तरह से संगठित किया है, जहां एक व्यक्ति छह सौ तक नकली खातों को चला सकता है! वह पूरे दिन अन्य कुछ भी नहीं करता है और उसे अपने कंप्यूटर पर बैठने के लिए और पार्टी द्वारा बताई गए एक पंक्ति को छः सौ अलग-अलग नामों से ट्वीट करने के लिए वेतन का भुगतान किया जाता है।

राजनीतिक दलों, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दलों द्वारा काम पर लगाये गए “पेशेवर ट्रोल्स” का अस्तित्व विरोधियों को निर्विवाद रूप से बदनाम करने के लिए है। ऐसी कोई भी वस्तु जिसका आविष्कार किया गया है, उसका सदुपयोग के साथ-साथ दुरुपयोग भी किया जा सकता है। और “ट्रोलिंग” की घटना ने सोशल मीडिया, जो शायद संचार का एक बहुत ही उपयोगी साधन हो सकता है, को गाली-गलौच लिखने और दुर्व्यवहार के कुटिल उद्देश्यों के लिए मोड़ दिया है।

कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर आने में देर कर दी, लेकिन खोए हुए समय की ज्यादा से ज्यादा भरपाई करने की कोशिश कर रही है। हमारा लक्ष्य भाजपा के सदृश टर्म्स और मैट्रिक्स में कभी भी सोशल मीडिया पर खुद को परिभाषित करना नहीं था।

उदाहरण के तौर पर, संयोजित क्रूर आलोचनाएँ, जिन्हें सत्तारूढ़ दल वरीयता देता हुआ दिखाई देता है, वह ऐसा कुछ है जिससे कांग्रेस बचना चाहेगी और जानबूझ कर अपने आप को रोक कर रखना पसंद करेगी। हमारा तर्क अक्सर रचनात्मक रहा है, सरकार को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास करना (जो कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का मुख्य कर्तव्य है) और जब हम विपक्ष में हैं तो हम भी वही कर रहे हैं जो कि परिहास युक्त, आकर्षक और ट्रेंड स्थापित करने वाला है।

कांग्रेस सोशल मीडिया टीम ने दिव्या स्पंदना के शक्तिशाली नेतृत्व के अंतर्गत सोशल मीडिया पर पार्टी के लिए एक अद्वितीय जगह बनाने के लिए पिछले कुछ सालों में शानदार काम किया है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के प्रदर्शन के बारे में कम से कम आप कह सकते हैं कि इसके प्रभाव में समानता है; शायद अब बीजेपी भी अच्छा करने के लिए हमारा अनुकरण करने की कोशिश करेगी।

राहुल गांधी विशेष रूप से तेज और विश्लेषणात्मक व स्पष्ट सोच वाले नेता रहे हैं, और साथ ही साथ सचेत और देश की चिंताओं में शामिल रहते हैं। सोशल मीडिया पर उनका जोश, उनकी बुद्धि, ऊर्जा और हास्यवृत्ति सभी कुछ प्रदर्शित है। लेकिन साथ ही, जमीनी स्तर पर यह उनका काम है जिसने हाल ही में उन्हें विशिष्टता दिलाई है और राहुल की गतिशील छवि को एक रचनात्मक और सचेत राजनेता के रूप में आकार दिया है। यह एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनका सोशल मीडिया मंचों पर जुड़ाव राजनीति के साथ उनके व्यापक जुड़ाव को बयां करता है। राहुल गाँधी में न तो “अनिच्छा” है न ही प्रकट होता हुआ ओछापन, एक बेहतर भारत बनाने के लिए केवल प्रतिबद्धता और जुनून है।

व्यक्तिगत रूप से, मैंने खुद उनसे ट्विटर पे आने का आग्रह किया था और फिर उस पर वास्तविक बने रहने के लिए कहा था, मैं सोशल मीडिया के इस माध्यम पर भी उनकी लोकप्रियता से काफी प्रसन्न हूं। उन्होंने स्पष्ट रूप से इस स्थान पर एक छाप छोड़ी है और इसका परिणाम सभी को दिखाई दे रहा हैं। मैं उन्हें इस पर बने रहने के लिए कहूंगा, देश के लोगों के साथ संवाद के लिए इस अनूठे चैनल को कायम रखें और साथ ही इसपे आने वाले ट्रोल्स को अनदेखा करें, क्यूंकि इस माध्यम पर सकारात्मक कारक नकारात्मक कारकों से कहीं अधिक हैं।

लेकिन हम में से किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि सोशल मीडिया एक अधिक महत्वपूर्ण अंत का केवल एक साधन मात्र है। हमारी आंखें 2019 के बहुत बड़े इनाम पर होनी चाहिए। इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी के पास राहुल गाँधी के मुकाबले कितने अधिक फालोअर्स हैं। फर्क केवल इससे पड़ेगा कि लोकसभा में किसने कितनी सीटें जीतीं।

(डॉ शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से संसद सदस्य हैं और पूर्व विदेश राज्य मंत्री तथा पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को तीन दशकों तक एक प्रशासक और शांतिरक्षक के रूप में सेवा दी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास और टफट्स विश्वविद्यालय से इंटरनेशनल रिलेशन्स का अध्ययन किया। थरूर ने काल्पनिक और गैर-काल्पनिक दोनों विधाओ में 17 किताबें लिखी हैं; उनकी सबसे हालिया किताब है ‘व्हाई आई ऐम अ हिन्दू’। ट्विटर पर उन्हें फॉलो करें @ShashiTharoor)

Read in English: BJP must know that social media is not a substitute for politics or governance

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