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Thursday, 18 April, 2024
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वायुसेना महज ‘सहायक’ नहीं है, CDS और सेना प्रमुखों को बिना पूर्वाग्रह के फिर से विचार करना चाहिए

थिएटर कमांड यानी एकीकृत कमान व्यवस्था में जरूरत के आधार पर दूसरे कमानों को आवंटित संसाधन में वायुसेना को ज्यादा हक़ दिया जाना चाहिए

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चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बिपिन रावत ने वायुसेना की भूमिका के बारे में 2 जुलाई को सार्वजनिक रूप से अपनी राय देकर अपने ही खिलाफ गोल कर लिया. एक वेबिनार में उन्होंने कहा कि ‘यह मत भूलिए कि वायुसेना दूसरी सेनाओं के सहायक (सपोर्टिंग हैंड) के रूप में वैसे ही काम कर रही है जैसे तोपखाना या इंजीनियर सेना के लड़ाकू अंगों के सहायक के रूप में काम करते हैं.

एक वाक्य में उन्होंने युद्ध में वायुसेना की ताकत के इस्तेमाल के 100 वर्षों के अनुभव को खारिज कर डाला और अनजाने में ही सही, तीनों सेनाओं के एकीकरण यानी थिएटर कमांड के गठन की उनकी प्रस्तावित योजना के प्रति भारतीय वायुसेना (आइएएफ) की हिचक का सार्वजनिक रूप से ‘अनुमोदन’ कर दिया. इसके बाद वायुसेना प्रमुख ने शालीनता से प्रतिवाद करते हुए बयान दिया कि ‘यह सिर्फ सहायक वाली भूमिका नहीं है. वायुसेना को बहुत बड़ी भूमिका निभानी होती है. एकीकृत युद्ध के किसी भी क्षेत्र में मामला केवल सहायक भूमिका निभाने का नहीं होता है.’

सीडीएस का बयान सेना के अंदर पैठी हुई मानसिकता को ही उजागर करता है. उनकी हताशा शायद एकीकरण को लेकर तीनों सेनाओं के अंदर चल रही बातचीत में आइएएफ के कड़े रुख से उपजी है. पहले उसने सीडीएस की नियुक्ति का प्रतिरोध किया था और अब वह वायुसेना की तैनाती के मामले में ‘एक राष्ट्र, एक थिएटर, एक कमांड’ के बहाने परोक्ष रूप से यथास्थिति बनाए रखना चाहती है. आइएएफ एकीकरण का ऐसा मान्य वैकल्पिक मॉडल सुझाने में भी विफल रही है जिसमें दूसरी आधुनिक सेनाओं के अनुभवों को अपनाया गया हो और साथ में हमारी सीमाओं का भी ख्याल रखा गया हो.

एकीकरण का जो प्रस्ताव सीडीएस प्रस्तुत कर रहे हैं उसमें जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वह दोषपूर्ण तो है ही, कोई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति भी नहीं है और न ही भविष्य का कोई खाका है, न औपचारिक राजनीतिक निर्देश है, और न ही निगरानी के लिए अधिकारसंपन्न संचालन समिति (इम्पावर्ड स्टीरिंग कमीटी) या संसदीय समिति है. सीडीएस के ये प्रस्ताव वायुसेना की ताकत के अधिकतम उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं. वायुसेना की ताकत एक थिएटर कमांड में केवल सेना के एक ‘सहायक हाथ’ के रूप में काम करने या एअर डिफेंस कमांड के जरिए देश की वायु सीमा की रक्षा करने तक सीमित नहीं है.

मैं यहां वायुसेना की भूमिका का विश्लेषण करके इसके एकीकृत, अधिकतम उपयोग के वैकल्पिक मॉडल का सुझाव दे रहा हूं.

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वायुसेना की भूमिका

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से हासिल अनुभवों के आधार पर भारतीय संदर्भ में वायुसेना की भूमिका और उपयोग का सुंदर विवरण ‘बेसिक डॉक्ट्रिन ऑफ द इंडियन एअर फोर्स 2012’ (भारतीय वायुसेना का मूलभूत सिद्धांत 2012) में दिया गया है. जब तक इस सिद्धांत को पढ़कर अपनाया नहीं जाता, तब तक तीनों सेनाओं का एकीकरण दोषपूर्ण बना रहेगा.

आइएएफ की रणनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने में वायुसेना के विकास, तैनाती और उपयोग के बीच तालमेल बिठाने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है. इसे हवाई अभियानों के रूप में तीन उप-रणनीतियों – जवाबी हवाई अभियान (एयर कैंपेन), जवाबी जमीनी अभियान (काउंटर सर्फेस कैंपेन), और रणनीतिक हवाई अभियान-(स्ट्रैटजिक एयर कैंपेन) के जरिए लागू किया जाता है. इसे युद्ध संचालनों से समर्थन दिया जाता है. किस अभियान पर कितना ज़ोर दिया जाएगा, यह रणनीतिक और संचालन संबंधी स्थिति पर निर्भर होता है.

जवाबी हवाई अभियान का लक्ष्य वायु क्षेत्र पर जरूरी नियंत्रण हासिल करना और बनाए रखना होता है ताकि दुश्मन वायुसेना को अपनी सेना के ऑपरेशनों में दखल देने से रोका जा सके. यह आम तौर पर ‘वायु क्षेत्र की अनुकूल स्थिति’ बनाए रखने का रूप लेती है, जो कि समय और स्थान में सीमित होता है, क्योंकि वायु क्षेत्र में वर्चस्व और बढ़त किसी कमजोर वायुसेना के मुक़ाबले में ही मिल सकती है. भारत के लिए यह मुमकिन स्थिति नहीं है.

जवाबी हवाई अभियान आक्रामक जवाबी हवाई ऑपरेशनों और वायु क्षेत्र रक्षा ऑपरेशन के जरिए ही चलाया जा सकता है. जवाबी आक्रामक हवाई ऑपरेशन दुश्मन क्षेत्र में उसके वायु रक्षा क्षेत्रों को नष्ट करने के लिए चलाया जाता है ताकि उसके वेपन सिस्टम और रडार, हवाई अड्डे और जमीन पर खड़े विमान नष्ट किए जा सकें. इस अभियान में दुश्मन के विमान को उनके अपने हवाई क्षेत्र में नष्ट करना और अपने ग्राउंड अटैक को और परिवहन विमान को सुरक्षा प्रदान करना शामिल होता है.

एअर डिफेंस ऑपरेशनों में अपने क्षेत्र या अपनी सेना के कब्जे वाले क्षेत्र पर दुश्मन के हवाई/मिसाइल हमले की ताकत को नष्ट या कम किया जाता है. इनमें लड़ाकू विमानों और जमीन से हवा में मार करने वाले वेपन सिस्टम के साथ-साथ कमांड एवं कंट्रोल के साधनों का इस्तेमाल किया जाता है. एअर डिफेंस ऑपरेशन का स्वरूप जवाबी होता है इसलिए अनुकूल हवाई स्थिति के निर्माण का मुख्य आधार आक्रामक जवाबी एअर ऑपरेशन्स हैं.

जवाबी जमीनी सेना के ऑपरेशन्स—एअर लैंड ऑपरेशन और नौसैनिक एअर ऑपरेशन—का लक्ष्य दुश्मन को हमारी जमीनी सेना यानी थलसेना/नौसेना के ऑपरेशन्स में दखल देने से रोकना है. एअर लैंड ऑपरेशन रणनीतिक स्तर पर हवाई प्रतिबंध का रूप ले लेता है, ऑपरेशन के स्तर पर युद्धक्षेत्र हवाई प्रतिबंध का रूप लेता है; सामरिक स्तर पर, सामरिक तो लेने या तलाश एवं आक्रमण मिशन के तहत अपनी सेना के करीब युद्धक्षेत्र में हवाई हमले (पहले जिसे करीबी हवाई समर्थन कहा जाता था) का रूप ले लेता है. रोक लगाने का अर्थ है दुश्मन सेना के रिजर्व बल, कमांड और कंट्रोल के साधनों, सड़क/रेल नेटवर्क और व्यवस्थाओं को नष्ट करके उसे युद्धक्षेत्र में पहुंचने से रोकना.

समुद्री हवाई ऑपरेशन में—एंटी-शिपिंग और समुद्री क्षेत्र में हमले में—युद्ध क्षेत्र में दुश्मन के पोतों और समुद्र के लिए बनाए गए इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया जाता है.

रणनीतिक हवाई अभियान में दुश्मन की युद्ध क्षमता और रणनीतिक स्तर पर प्रतिरोध करने के उसके इरादे को तोड़ा जाता है. इसमें पारंपरिक रणनीतिक हवाई ऑपरेशन (सीएसएओ) और परमाण्विक हवाई ऑपरेशन शामिल हैं. सीएसएओ में दुश्मन के रणनीतिक केन्द्रों या निर्णायक कमजोरियों को निशाना बनाया जाता है, जिनमें कमांड, कंट्रोल और संचार सिस्टम तथा उनका नेतृत्व करने वाले; औद्योगिक ढांचा/ अहम आर्थिक लक्ष्य, परिवहन व्यवस्था, दूर के क्षेत्रों में तैनात सेना या रिजर्व शामिल होते हैं. राजनीतिक संदेश देने की कोशिश, शांति काल में दंडात्मक सर्जिकल स्ट्राइक और मनोवैज्ञानिक अभियान भी रणनीतिक हवाई ऑपरेशन्स के हिस्से हैं. इसकी एक ज्वलंत मिसाल 1990 में खाड़ी युद्ध-1 के दौरान जमीनी कार्रवाई से पहले किए गए हवाई ऑपरेशन्स थे.

युद्ध में सहायक हवाई/जमीनी ऑपरेशन्स में एयरबोर्न/एअर ट्रांसपोर्टेड ऑपरेशन्स, उड़ान के दौरान विमान में ईंधन भरना, निगरानी और टोही अभियान, यूएवी का उपयोग, एयरबोर्न चेतावनी देने वाले विमान, एयरोस्टाट, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, स्पेशल फोर्सेस ऑपरेशन्स, तलाशी और बचाव, प्रशिक्षण, रखरखाव और इंतजाम भी शामिल हैं.

सीमित संसाधन, बहुपयोगी विमान और एयरबोर्न वार्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम/ एयरबोर्न अर्ली वार्निंग ऐंड कंट्रोल विमान, एयरोस्टाट और उड़ान भरते हुए ईंधन भरने वाले विमानों की कमी के मद्देनजर वायुसेना की ताकत के इस्तेमाल में केंद्रीय नियंत्रण बेहद जरूरी है. यहां यह भी बता देना जरूरी है कि जवाबी जमीनी ऑपरेशन्स और एयरबोर्न/एअर ट्रांसपोर्टेड/ हेलिबोर्न ऑपरेशन्स के लिए थलसेना/नौसेना का गहरा सहयोग जरूरी है. जवाबी जमीनी सैन्य ऑपरेशन्स में भी रणनीतिक पाबंदी एक केंद्रीय ज़िम्मेदारी है.


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वैकल्पिक मॉडल

सीडीएस ने जो मॉडल तैयार किया है उसमें केवल एअर डिफेंस कमांड ही ‘एक राष्ट्र, एक थिएटर कमांड’ है, यानी उसमें दूसरे थिएटर कमांड शामिल हैं. बाकी दूसरे हवाई अभियान/ ऑपरेशन्स का नियंत्रण चार थिएटर कमांडर प्रारम्भिक/ पुनः आवंटित संसाधन के आधार पर करेंगे. इस तरह, सीडीएस और सीओसीएस के अधीन संयुक्त मुख्यालय को संसाधनों का निरंतर आवंटन करना पड़ेगा. यह सीमित और उच्च तकनीकी वाले युद्ध के लिए व्यावहारिक नहीं होगा क्योंकि आइएएफ की पूरी ताकत को दिन पर दिन या घंटे-घंटे के आधार पर एक थिएटर से दूसरे थिएटर में स्थानांतरित करना पड़ेगा.

जमावड़ा युद्ध का आजमाया हुआ सिद्धान्त है. आइएएफ एक दिन में 500-700 उड़ान भर सकता है. शुरू में, अधिकांश कोशिश रणनीतिक हवाई अभियान और जवाबी हवाई अभियान के लिए की जाएगी. इनका जमीनी सेना से कोई मतलब नहीं होगा. पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों वाले युद्ध में, जो पश्चिमी और उत्तरी थिएटर कमांड में सीमित रहेगा, आइएएफ का पूरा ज़ोर दिन के पूर्वार्द्ध में चीनी वायुसेना को, और उत्तरार्द्ध में पाकिस्तानी वायुसेना को निशाना बनाने पर होगा.

किसी दूसरी आधुनिक सेना ने अलग एअर डिफेंस कमांड नहीं बनाया है. एअर डिफेंस ओपरेशन्स जवाबी हवाई अभियान के हिस्से रहे हैं. एअर डिफेंस ओपरेशन्स दूसरे स्तर की जवाबी कार्रवाई के हिस्से रहे हैं.

मेरा प्रस्ताव यह है कि आइएएफ को रणनीतिक एअर कमांड का गठन करके पुनर्गठित करना चाहिए. यह कमांड रणनीतिक हवाई अभियान, जवाबी हवाई अभियान और सभी थिएटरों में रणनीतिक पाबंदी लगाने के लिए जिम्मेदार होगा. उसे संसाधनों पर हक़ दिया जाना चाहिए, जो दूसरे थिएटरों को जरूरत के मुताबिक आवंटित किए जा सकते हैं. हवाई और जमीनी कार्रवाई साथ-साथ शुरू हो सकती है, इसलिए जवाबी जमीनी अभियान के लिए हरेक थिएटर को अधिकतम आवंटन किया जाए. सभी लड़ाकू हेलिकॉप्टर थिएटर कमांड को आवंटित किए जाएं. समय के अनुसार हम ए-10 जैसे विशेष लड़ाकू विमान हासिल करने पर विचार कर सकते हैं.

सभी आधुनिक सेनाएं तीनों सेनाओं के एकीकरण की कठिन प्रक्रिया से गुजर चुकी हैं. वियतनाम युद्ध के बाद अमेरिका में जो तीखी बहस चली थी उस पर हम सबने गौर किया था. इसके बाद गोल्डवाटर-निकोलस डिपार्टमेन्ट ऑफ डिफेंस रीऑर्गनाइजेशन एक्ट 1986 ने एकीकरण को आवश्यक बना दिया था.

सरकार को मेरी सलाह यह होगी कि वह सेनाओं में परिवर्तन की प्रक्रिया को व्यवस्थित करे. एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाए और 21वीं सदी के युद्धों के लिए सेना को तैयार करने का खाका बनाए. रक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक कमिटी बनाए, जो इस परिवर्तन को आगे बढ़ाए. यह कमिटी समय के साथ उभरे सभी विवादास्पद मसलों के समाधान के लिए ‘विज़न’ दस्तावेज़ तैयार करे, जिसे सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी मंजूर करे. सीडीएस को औपचारिक निर्देश दिया जाए कि वे थिएटर कमांड के लिए नए, विस्तृत प्रस्ताव तैयार करें. रक्षा मामलों के लिए संसद की स्थायी समिति परिवर्तन की प्रक्रिया पर नज़र रखे और नये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून तैयार करे.

सीडीएस और तीनों सेनाओं के अध्यक्ष संकीर्णता त्यागें और नयी शुरुआत करें. पिछले डेढ़ साल को सीखने का दौर मानें. और अंत में अहम सलाह यह कि सार्वजनिक तौर पर आपस में न झगड़ें.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड रहे हैं. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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