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Wednesday, 24 April, 2024
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अम्बेडकर की 10 धारणाएं जिनसे पता चलता है की भाजपा उनका सहयोजन नहीं कर सकती

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अम्बेडकर के विचारों को मिटाने के लिए, उनकी प्रतिमा के आगे झुककर नमन करना पर्याप्त नहीं है। गहराइ के साथ वे भारत के दलितो के बीच में है।

भाजपा सोचती है कि यह अम्बेकर की प्रतिमा के आगे सिर झुकाकर, दलित समुदाय के साथ अलगाव का समाधान कर सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रतीकवाद,अम्बेडकर की प्रतिमा का सम्मान कर रहा है और कह रहा है कि अम्बेडकर उनके और उनकी पार्टी के लिए मार्गदर्शक शक्तियों में से एक है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह बहुत सामर्थ्यवाद हैं। लेकिन अम्बेडकरवादी आंदोलन मात्र अंबेडकर की प्रतिमा के बारे में नहीं है। हिंदुत्व की तरह, अम्बेडकरवाद एक विचारधारा है। दलित आंदोलन के माध्यम से, इस विचारधारा की जड़ें बहुत गहरी हैं।

दलित आंदोलन का अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दा, पत्रक, पुस्तिकाओं, गैर सरकारी संगठनों, राजनीतिक दलों, जाति संघों , सार्वजनिक क्षेत्र और सरकार में काम कर रहे दलितों के संगठनों के माध्यम से अम्बेडकर के विचारों का प्रसार कर रहा है।

हिंदुत्ववादी विचारक अक्सर अम्बेडकर के इस्लाम की आलोचना के लिए उसे उपयुक्त करते हैं। मगर दलितों ने इसका प्रयोग बहुत कम किया है, जो अम्बेडकर को अपने समग्र नेता के रूप में देखते हैं, जिन्होंने जाति उत्पीड़न से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया इस नारे के साथ, ”शिक्षित,आंदोलित,व्यवस्थित रूप से” जाति प्रणाली के विरूद्ध.

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यहाँ अम्बेडकर के लेखन से दस उद्धरण दिए गए हैं, ये इस बात की झलक दिखाते हैं कि भाजपा अम्बेडकर को खोखले प्रतीकवाद के साथ उपयुक्त क्यों नहीं कर सकती:

1) “यदि हिंदू राज एक तथ्य है तो इसमें कोई संदेह नहीं की यह पूरे देश के लिए एक सबसे बड़ा खतरा है । कोई माइने नहीं रखता कि हिंदू क्या कहते हैं, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समानता और बिरादरी पर एक धब्बा है। यह धर्म लोकतंत्र के हिसाब से असंगत है। किसी भी प्रकार से किसी भी कीमत पर हिन्दू राज को रोका जाना चाहिए।“

2) “हिंदू समाज जैसे कि अस्तित्व में है ही नहीं, यह केवल एक जातियों का संमूह है। प्रत्येक जाति अपने अस्तित्व के बारे में जागरूक है। यह अपने आप से ही शुरू होकर अपने आप में ही समाप्त होता है। हिन्दू धर्म में जातियां संगठित नहीं हैं। हिन्दू धर्म में कोई जाति तब तक एक जुट नहीं होती या कोई जाति एक दूसरे के प्रति तब तक कोई भावना नहीं रखती जब तक कोई हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं होता। अन्य सभी मौकों पर, प्रत्येक जाति खुद को अलग थलग दर्शाने का प्रयास करती है और एक दूसरे समुदाओं के बीच में भेद भाव की भावना रखते हैं।“

3) “ भारत में भक्ति, भक्ति के मार्ग या किसी की प्रकाण्ड (अतिश्योक्ति पूर्ण) भक्ति को क्या कहा जा सकता है, जहाँ दुनिया में किसी अन्य देश की राजनीति में निभाए जाने वाले भाग की तुलना में भारत की राजनीति में यह असमानता रुपी परिणाम का एक हिस्सा निभाती है। किसी धर्म में भक्ति आत्मा का उद्धार का मार्ग हो सकता है। लेकिन राजनीति में भक्ति एक तानाशाही का निश्चित मार्ग हो सकता है।

4) “जाति को अपनाने वाले लोग गलत नहीं हैं। मेरे विचार में, जो गलत है वह है उनका धर्म, जिसने जाति की इस धारणा को जन्म दिया है। अगर यह सही है, तो जाहिर है कि संबन्धित जाति के लोगों को दुश्मन नहीं मानना चाहिए, बल्कि ऐसे शास्त्रों को दुश्मन मानना चाहिए जो उन्हें जाति का धर्म सिखाते हैं।”

5) “हिंदुओं ने तलवार के बल पर अपने धर्म को फैलाने के लिए मुसलमानों की आलोचना की। वे धर्म न्यायाधिकर्ण की गणना के आधार पर ईसाइयत का भी उपहास करते हैं। लेकिन वास्तव में बात करें तो हमारे द्वारा सम्मान पाने के लिए बेहतर और अधिक योग्य कौन हैं- मुसलमान और ईसाई जिन्होंने प्रयास किया उन अनिच्छुक व्यक्तियों का जिनके गले के नीचे ना उतरने वाली बाते , जो उनके उद्धार के लिए जरूरी समझा जाती है ,या हिंदू जो प्रकाश तो नहीं ही फैलाएंगे बल्कि दूसरों को अंधेरे में रखने का प्रयास करेंगे, जो अपनी बौद्धिक और सामाजिक विरासत उनके साथ साझा करने की सहमति नहीं देंगे जो इसे अपने स्वभाव का हिस्सा बनाने के लिए इच्छुक और तैयार हैं? मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि यदि मुसलमान क्रूर हो गए हैं, तो हिन्दू नीच; और नीचता, क्रूरता से भी बदतर है।”

6) “हिंदू धर्म ही हिंदू एकता के लिए सबसे बड़ी बाधा है। हिंदुत्व वह अभिलाषा नहीं पैदा कर सकता है जो हर प्रकार की सामाजिक एकता का आधार है। इसके विपरीत हिंदुत्व अलग होने की उत्सुकता पैदा करता है।”

7) “यह अजीब रुप में प्रतीत हो सकता है, श्री सावरकर और श्री जिन्ना को एक राष्ट्र बनाते हुए दो राष्ट्रों के मुद्दे पर एक-दूसरे का विरोध करने की बजाए इसके बारे में पूरी सहमति है। दोनों सहमत हैं, केवल सहमत ही नहीं बल्कि भारत में एक मुस्लिम राष्ट्र और अन्य हिंदू राष्ट्र नाम के दो राष्ट्र पर जोर देते हैं।”

8) स्पर्श-संबंधी, यदि वे शाकाहारी हैं या मांसाहारी हैं तो वे गाय का मांस खाने को लेकर एकजुट होकर ऐतराज करते हैं। इसके खिलाफ अछूत , जो कि निश्चित रूप से और बिना किसी पछतावे के आदतन गाय का मांस खाते हैं।

9) “इस दृष्टिकोण से शिक्षा, धन और शक्ति को निकट रखने के रूप में स्वयं के लिए संरक्षित रखता है और इसे साझा करने से इनकार करते हुए, जिसमें उच्च जाति वाले हिंदुओं ने निची जाति वाले हिंदुओं के साथ अपने संबंध को बढ़ावा दिया है, उन्हें मुसलमानों तक विस्तारित करना है। वे मुसलमानों को जगह और सत्ता से अलग करना चाहते हैं, जैसा कि उन्होंने निचले वर्ग के हिन्दुओं के साथ किया है। उच्च जाति के हिंदुओं का यह गुण उनकी राजनीति की अबोध कुंजी है।”

10) “हालांकि मैं पैदा तो एक हिंदू के रुप में हुआ था लेकिन मैं आपको सत्यनिष्ठापूर्वक यह विश्वास दिलाता हूं कि मैं एक हिन्दू की तरह मरूँगा नहीं।”

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