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Friday, 29 March, 2024
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अमेरिका का बैंकिंग संकट यूरोप से एशिया तक पहुंचा, दिख रहा प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं कितनी नाज़ुक हैं

अमेरिकी बैंकों ने संकट को बढ़ावा दिया है. अगली बात जो हम जानते हैं, कि वैश्विक बैंकिंग क्षेत्र और शेयर बाजार एक पैनिक रूम में बंद हैं.

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एक पुरानी कहावत है कि कैसे दुनिया के एक कोने में एक तितली के पंख का फड़फड़ाना दूसरी जगहों में तूफान का कारण बन सकता है. यानी हर चीज इंटर कनेक्टेड है. इस सप्ताह की घटनाओं ने सटीक रूप से दिखा दिया है कि कैसे इन नॉक-ऑन प्रभावों का असर दुनिया भर में फैल सकता है. अमेरिका में तीन अपेक्षाकृत क्षेत्रीय बैंकों के बंद होने से न सिर्फ यूरोपीय बैंकिंग क्षेत्र में बल्कि एशियाई शेयर बाजारों में भी दहशत फैल गई है.

यह विश्वव्यापी बैंकिंग संकट पिछले सप्ताह सिलिकॉन वैली बैंक के पतन के साथ शुरु हुआ था, लेकिन वैश्विक बैंकिंग क्षेत्र को हमारा साप्ताहिक न्यूजमेकर बनाने के लिए सोमवार से ही बैंकिंग क्षेत्र में काफी उथल-पुथल मची हुई थी.

हाल ही में बीते हुए सप्ताह में होने वाली हलचल पर पहुंचने से पहले हम इसका थोड़ा सा इतिहास जान लेते हैं. सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) अमेरिका में टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम का एक बहुत ही प्रमुख हिस्सा था. यह न सिर्फ स्टार्टअप्स को आगे बढ़ाने के लिए फंड की जरूरत के लिए उधार देता था, बल्कि उनकी जमा राशि का एक बड़ा हिस्सा भी रखता था.

पिछले बुधवार (8 मार्च) को जब दुर्भाग्य और खराब वित्तीय योजना के संगम के कारण बैंक में समस्याएं दिखाई देने लगीं, तो हम्टी-डम्पटी नर्सरी राइम की तरह राष्ट्रपति के सभी घोड़े और राष्ट्रपति के सभी आदमी हम्प्टी डम्प्टी को फिर से एक साथ रखने के लिए दौड़ पड़े. यानी राष्ट्रपति समेत देश की तमाम वित्तीय संस्थाएं इस संकट से बाहर निकालने के लिए प्रयास में जुट गईं. संकट फूटने के कुछ दिनों के भीतर, तीन अलग-अलग नियामक संस्थानों ने बैंक को बंद कर दिया, इसकी जमा राशि को सुरक्षित कर लिया गया और जमाकर्ताओं से वादा किया कि सिर्फ बीमित राशि तक ही नहीं, बल्कि अपनी सभी जमा राशि तक लोगों की पहुंच होगी.

नर्सरी राइम में हम्प्टी डम्प्टी एक साथ नहीं आ सके थे लेकिन उसके विपरीत उन्हें- एक हद तक-यहां फिर से एक साथ लाने की कवायद की गई. उसी सप्ताह सिल्वरगेट बैंक और सिग्नेचर बैंक के – लगभग समान कारणों से- पतन के साथ बैंकिंग क्षेत्र में निवेशकों के विश्वास में गहरी दरार आ चुकी थी.

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यूरोप से एशिया तक दहशत

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने सोमवार को एक भाषण के साथ सप्ताह की शुरुआत की. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि एसवीबी संकट के कारण ‘करदाताओं को कोई नुकसान नहीं होगा’. इसके बजाय, उन्होंने कहा, पैसा उस फीस से आएगा जो बैंक फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) द्वारा बनाए गए डिपॉजिट इंश्योरेंस फंड में चुकाते हैं. सुनने में अच्छा लगा, लेकिन झटके लग चुके थे और अमेरिकी बैंकिंग शेयर इतनी आसानी से शांत होने वाले नहीं थे.

सोमवार और मंगलवार को अमेरिका में क्षेत्रीय बैंकों और समग्र बैंकिंग क्षेत्र के शेयरों में उतार-चढ़ाव बना रहा. जबकि उनमें से कुछ ने रिकवरी करने की कोशिश की, अधिकांश अपने ऐतिहासिक स्तरों से काफी नीचे रहे.

और जो अमेरिका में होता है वो सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहता है. तेजी से फैल रही इस घबराहट ने महासागरों में छलांग लगा दी और यूरोपीय और एशियाई बैंकिंग शेयरों को कड़ी टक्कर दी. रिपोर्टों के अनुसार, यूरोपीय बैंकिंग शेयरों को एक साल में सबसे बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा. इसके पीछे डर था कि अमेरिका में जो हो रहा है उसका असर दुनिया के बाकी हिस्सों में भी हो सकता है और दुनिया भर के बैंकों में पहले से छिपी हुई कमजोरियों को बाहर ला सकता है.

भारत भी इससे नहीं बच पाया. बैंकिंग शेयरों में गिरावट के बाद से सोमवार को शेयर बाजार में भारी गिरावट आने लगी.

यूरोप में बैंकिंग शेयरों की गिरावट से सबसे बुरी तरह प्रभावित स्विस बैंकिंग प्रमुख क्रेडिट सुइस था. क्रेडिट सुइस के लिए पिछले कुछ साल पहले से ही उथल-पुथल भरे रहे हैं. इस दौरान बैंक के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों को कई घोटालों में फंसाया गया, जिसमें 2020 में एक जासूसी कांड, 2022 में कोकीन से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग कांड रहा. इसके जवाब में बैंक का मैनेजमेंट कई बार बदल चुका है.

यह सब इस तथ्य को नहीं बताता है कि इसकी वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद से अपने सबसे बड़े नुकसान की सूचना देने के बाद से इसे अपने वरिष्ठ प्रबंधन को दिए जाने वाले बोनस को कम करना पड़ा था. दूसरे शब्दों में, कुछ समय से क्रेडिट सुइस में चीजें अनिश्चित हैं और अमेरिकी बैंकिंग संकट से मामलों में मदद नहीं मिल रही थी.

हालांकि, जिस चीज ने वास्तव में संकट के कगार पर खड़े इस बैंक को गर्त की ओर धक्का दिया, वह क्रेडिट सुइस के सबसे बड़े शेयरधारक-सऊदी नेशनल बैंक द्वारा दिया गया एक बयान था, जिसमें कहा गया था कि यह क्रेडिट सुइस में और पैसा नहीं लगाएगा. यूरोप में बैंकिंग शेयरों में पहले से ही कमजोर निवेशकों ने इस बयान पर अलार्म के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की. क्रेडिट सुइस की अगुआई में सभी बैंकिंग शेयरों में भारी गिरावट आई.

यह साफ था कि अब क्रेडिट सुइस और स्विस बैंकिंग नियामकों को इन गंभीर रूप से कमजोर होती नसों को ठीक करने के लिए कुछ निर्णायक कार्रवाई करनी होगी. बुधवार को स्विस फाइनेंशियल मार्केट सुपरवाइजरी अथॉरिटी और स्विस नेशनल बैंक ने ऐसा करने के उद्देश्य से एक बयान जारी किया.

बयान में कहा गया है, ‘स्विस फाइनेंशियल मार्केट सुपरवाइजरी अथॉरिटी (फिनमा) और स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) का दावा है कि यूएसए में कुछ बैंकों की समस्याएं स्विस वित्तीय बाजारों पर असर नहीं डालेंगी और उनके लिए सीधा खतरा पैदा नहीं करती हैं.’

इसमें कहा गया है कि व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण बैंकों पर लगाए गए पूंजी और लिक्विडिटी की जरूरतों को क्रेडिट सुइस पूरा करता है और जरूरत पड़ने पर एसएनबी क्रेडिट सुइस को लिक्विडिटी प्रदान करेगा.

पता चला कि इसकी जरूरत थी.

बैंकिंग शेयरों में अभी भी गिरावट जारी थी और कोई वास्तविक संकेत नहीं मिले कि निवेशकों की परेशानी कम हुई हो. 15 मार्च को क्रेडिट सुइस ने घोषणा की वह वास्तव में देश के केंद्रीय बैंक से कर्ज ले रहा है.

क्रेडिट सुइस ने एक विज्ञप्ति में कहा, ‘सुइस स्विस एक कवर्ड लोन फैसिलिटी के साथ-साथ शॉर्ट -टर्म लिक्विडिटी सुविधा के तहत स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) से सीएचएफ 50 बिलियन तक उधार लेने के अपने विकल्प का प्रयोग करने के इरादे से अपनी लिक्विडिटी को पहले से ही मजबूत करने के लिए निर्णायक कार्रवाई कर रहा है.’

आखिर में, ऐसा लगा कि इसने सिस्टम में कुछ विश्वास बहाल किया है, और उस दिन कंपनी के शेयर की कीमतों में काफी सुधार हुआ.

लेकिन यहां और भी बहुत कुछ है

हालांकि अभी ड्रामा पूरा नहीं हुआ था. इस बैंकिंग संकट के तीव्र हमले के चलते यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) इस दुविधा का सामना कर रहा था कि ब्याज दरों में वृद्धि की जाए या नहीं, अगर ऐसा किया तो भी उसे कोसा जाएगा है और अगर नहीं किया तो भी.

ब्याज दरों में वृद्धि से उन समस्याओं के बढ़ने की संभावना है, जिनके कारण इस तरह का संकट पहली बार में आया था. लेकिन उन्हें न बढ़ाना इस बात की स्वीकारोक्ति होगी कि यह ईसीबी की नीतियां थीं जो संकट का कारण बनीं. क्योंकि इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया कि मुद्रास्फीति फिर से बढ़ जाएगी. इससे यह भी संकेत मिलता कि संकट वास्तव में काफी गंभीर था.

जैसा कि होता है, ईसीबी ने इसका ध्यान रखा और मुद्रास्फीति को कम करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया. ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की, जैसा कि उसने पहले कहा था कि वह करेगा.

ईसीबी के अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने कहा, ‘मुद्रास्फीति बहुत लंबे समय तक बहुत अधिक रहने का अनुमान है. इसलिए, गवर्निंग काउंसिल ने आज दो प्रतिशत मीडियम-टर्म के लक्ष्य के लिए मुद्रास्फीति की समय पर वापसी सुनिश्चित करने के हमारे दृढ़ संकल्प के अनुरूप तीन प्रमुख ईसीबी ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की वृद्धि करने का फैसला किया.’

इन सभी कदमों और घोषणाओं के बाद शुक्रवार का दिन काफी बेहतर नजर आया. यूरोपीय और अमेरिकी बैंकिंग शेयरों में एक बार फिर तेजी आई और भारतीय सेंसेक्स और निफ्टी भी 355 अंक और 139 अंक ऊपर बंद हुए.

चीजें अभी भी नाजुक हैं और बैंकिंग क्षेत्र की नब्ज अभी भी कमजोर हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि तत्काल संकट को दूर कर लिया गया है. लेकिन अगले हफ्ते एक और कहानी होगी!

(विचार व्यक्तिगत हैं)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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