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Friday, 29 March, 2024
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दौर बदल रहा है, लेकिन रेडियो से रिश्ता नहीं

निजी चैनलों के जिरए रेडयो ने खुद अपना तेवर, कलेवर बदल लिया है. आज तमाम नये माध्यमों के आ जाने पर भी दुनिया में रेडियो से रिश्ता पहले जैसा बरकरार है.

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नई दिल्लीः तमाम नये-नये माध्यमों के बावजूद रेडियो की दीवानगी आज भी बरकार है. वजह है कि यह हर वक्त आपके साथ रह सकता है. आज भी जो लोग बदलते माध्यमों से वाकिफ नहीं हैं, कम पढ़े-लिखे हैं उनके लिए रेडिया सूचना और मनोरंजन के लिहाज से वरदान बना हुआ है. एक और वजह कि यह अन्य माध्यमों से तेज भी है. दुर्गम क्षेत्रों में भी इसकी फ्रिक्वेंसी आसानी से पहुंच जाती है. पिछले 10 से 15 साल को छोड़ दें तो भारत के ज्यादातर लोगों के बीच टेलीविज़न से पहले महज रेडियो ने अपनी उपस्थिति बनाये रखी थी और लोगों का साथी बना. रेडियो खेत-खलिहानों में किसानों, मज़दूरों की ज़िंदगी का हिस्सा बना. आज फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे तमाम एप की दुनिया में भी रेडियो से रिश्ता पहले जैसा बरकरार है. निजी चैनलों के ज़रिए रेडियो ने खुद अपना तेवर, कलेवर बदल लिया है.

रेडियो की बुलंद आवाज़ें

अपनी बुलंद आवाज़ की वजह से यह आज भी सबकी पसंद खासकर युवाओं की पसंद में शामिल है. आप अमीन सयानी की विविध भारती पर आने वाले कार्यक्रम की ‘बहनों भाइयों’ से शुरू होने वाली लय और प्रवाह से भरी आवाज़ को शायद ही भूल पायें. यह खूबसूरत आवाज़ दिलों में उतर जाती थी. विविध भारती पर छाया गीत लेकर आने वाले कमल शर्मा को याद कीजिए. कुछ नाम जिनकी आावजों को लोगों से बेइंतहा मोहब्बत मिली मसलन- यूनुस खान, ममता सिंह, रेणु बंसल, निम्मी मिश्रा, ये शख्सियतें रेडियो पर अपनी आवाज़ से हमारी जेहन में उतरकर बस गईं.

कार, ट्रक, बस, कैब, मोबाइल जैसे तमाम जगहों पर अपनी सुगमता और सरलता की वजह से रेडियों की मखमली आवाज़ गूंजती रहती है.

इसके सफर पर एक नज़र

20 अक्टूबर 2010 को स्पेनिश रेडियो अकादमी की गुज़ारिश पर स्पेन ने संयुक्त राष्ट्र में विश्व रेडियो दिवस मनाने के लिए सदस्य देशों के सामने प्रस्ताव पेश किया. इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध यूनेस्को ने पेरिस में आयोजित 36वीं सभा में 3 नवंबर, 2011 को हर साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का फैसला किया.

यह भी गौर करने वाली बात है कि 13 फरवरी को ही संयुक्त राष्ट्र की ‘रेडियो यूएनओ’ की वर्षगांठ भी होती है.1946 को इसी दिन वहां रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ था. पहली बार 13 फरवरी, 2012 को यहां विश्व रेडियो दिवस मनाकर रेडियो के सफर को याद किया गया. इस दौरान विश्व की प्रमुख प्रसारक कंपनियों को बुलाया गया था, जिसमें 44 भाषाओं में कार्यक्रम का प्रसारण करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी कंपनी, रेडियो रूस भी शामिल हुई थी.
2012 व 2013 में रेडियो दिवस का कोई थीम नहीं था. इसके बाद हमेशा कोई न कोई थीम के साथ रेडियो दिवस मनाया गया.

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भारत में रेडियो का प्रसारण शुरू में उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं रहा. 20 अगस्त 1921 को अनधिकृत रूप से कुछ ऑपरेटरों ने बंबई, कलकत्ता, मद्रास और लाहौर से रेडियो का प्रसारण किया, लेकिन नाकाम रहा. 1927 में स्थापित रेडियो क्लब बाम्बे भी 1930 तक खामोश हो गया. 1936 में ‘इंपीरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई, जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो के नाम से लोगों के बीच चर्चित हो गया. 1957 में इसका नाम बदलकर ‘आकाशवाणी’ कर दिया गया. ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के अपने ध्येय वाक्य से 27 भाषाओं में शुरू हुआ और देश को एकता के धागे में बांधने का काम किया.

2 अक्टूबर 1957 को स्थापित विविध भारती ने रेडियो को भारत में लोकप्रिय बना दिया. आज भारत में 250 से अधिक रेडियो स्टेशन लोगों से दिल का रिश्ता बनाये हुए हैं.

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