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Friday, 29 March, 2024
होमदेशउर्दू अखबारों में छाईं रूस-यूक्रेन जंग की खबरें और भारतीयों के निकासी अभियान में ‘देरी’ के लिए मोदी की आलोचना

उर्दू अखबारों में छाईं रूस-यूक्रेन जंग की खबरें और भारतीयों के निकासी अभियान में ‘देरी’ के लिए मोदी की आलोचना

दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि इस सप्ताह उर्दू मीडिया ने देश-दुनिया की विभिन्न घटनाओं को कैसे कवर किया और उनमें से कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.

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नई दिल्ली: यूक्रेन पर जारी रूसी हमले, युद्ध के कारण वहां मची तबाही और युद्धग्रस्त देश से ‘आखिरी क्षणों में’ अपने नागरिकों की निकासी की भारत की कोशिशें ही मुख्यत: इस सप्ताह उर्दू अखबारों में चर्चा का विषय रहीं.

पूर्वी यूरोपीय देश में जंग की खबरों ने पिछले कई हफ्तों से सुर्खियों में रहे कर्नाटक के हिजाब विवाद को पहले पेज की कवरेज से लगभग पूरी तरह समेट दिया. यहां तक कि देश के पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों की खबरें भी कभी-कभी अंदर के पन्नों पर पहुंच गईं, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ा घटनाक्रम पूरी तरह पहले पन्ने पर छाया था.

दिप्रिंट आपको यहां बता रहा है कि इस सप्ताह उर्दू प्रेस में क्या सुर्खियों में रहा.

रूस-यूक्रेन युद्ध

4 मार्च को इंकलाब और सियासत ने भारत सरकार की तरफ यूक्रेन युद्ध पर विपक्षी दलों को भरोसे में लिए जाने, भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने के प्रयासों और पूरे मामले पर सरकार की स्थिति से जुड़ी खबरें पहले पन्ने पर छापीं. हालांकि, रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने इस युद्ध की वजह से रुपये के मूल्यों पर पड़ते असर को अपनी लीड खबर बनाया. इसने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों पर भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की.

1 मार्च को रोजनामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उच्चस्तरीय बैठक और युद्धग्रस्त देश में फंसे भारतीय छात्रों की सुरक्षित वापसी के लिए चार केंद्रीय मंत्रियों- हरदीप सिंह पुरी, किरेन रिजिजू, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जनरल वीके सिंह (सेवानिवृत्त) को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भेजने के निर्णय की खबर को प्रमुखता से छापा.

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26 फरवरी को सियासत की लीड स्टोरी रूस के इस रुख को लेकर थी कि वह बातचीत के लिए तैयार है, बशर्ते यूक्रेन को अपने मौजूदा शासन से निजात मिल जाए. खारकीव शहर में गोलाबारी में भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत 2 मार्च को तीनों अखबारों के पहले पन्ने पर रही.

युद्धग्रस्त राष्ट्र से छात्रों के लौटने से जुड़ी खबरें सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी थीं, लेकिन रोजनामा ने 3 मार्च को एक संपादकीय में मोदी सरकार की इस प्रवृत्ति की आलोचना की कि चाहे युद्ध हो या शांति, वह हर स्थिति का राजनीतिकरण कर देती है. उत्तर प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री के भाषण में यूक्रेन में युद्ध और भारतीय छात्रों का जिक्र होने के संदर्भ में अखबार ने लिखा कि सुरक्षित निकासी अभियान का नाम ‘ऑपरेशन गंगा’ रखने से लेकर इस अभियान की निगरानी के लिए मंत्रियों को भेजने तक—जिसने यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भारतीय दूतावासों के अस्तित्व को ही निरर्थक बना दिया—हर कदम यूपी चुनावों को ध्यान में रखकर उठाया गया है.

2 मार्च को अपने एक संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि रूस की आक्रामकता के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से दूर रहने के अपने फैसले को लेकर भारत को कितनी बारीक रेखा खींचनी पड़ी है और दावा किया कि मौजूदा समय मोदी सरकार के रणनीतिक कौशल की परीक्षा है. उसी दिन, रोजनामा के एक संपादकीय में सरकार पर फैसले लेने में देरी करने का जिम्मेदार ठहराया. इसमें लिखा गया कि स्थिति एक दिन में इतनी ज्यादा नहीं बिगड़ी है और जब अमेरिका सहित तमाम देश पहले ही अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने को कह रहे थे, भारत सरकार पांच राज्यों में चुनावों में इतनी व्यस्त थी कि वह अपने नागरिकों को बचाने के लिए समय पर उपयुक्त कदम नहीं उठा सकी.


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यूपी विधानसभा चुनाव

रूस-यूक्रेन जंग के कारण उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से संबंधित खबरों को पहले पन्ने की लीड के तौर पर अहमियत नहीं मिली लेकिन पांचवें और छठे चरण में मतदान होने के कारण सियासी खबरें पहले पन्ने पर सुर्खियों में बनी रहीं.

26 फरवरी को जब अधिकांश अखबारों के फ्रंट पेज पर यूक्रेन का घटनाक्रम छाया था, सियासत ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को हाथ में गदा और पृष्ठभूमि में बड़ी भीड़ के साथ प्रचार करते दिखाया.

1 मार्च को एक संपादकीय में रोजनामा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में घटते मतदान प्रतिशत को रेखांकित किया और लिखा कि देश की हिंदी पट्टी के मतदाता अन्य राज्यों की तुलना में अपने मताधिकार के इस्तेमाल को लेकर कुछ ज्यादा ही निरुत्साहित है. अखबार के मुताबिक, इन दोनों राज्यों को छोड़कर कहीं भी मतदान प्रतिशत 70 से नीचे नहीं रहा है.

4 मार्च को सियासत ने अखिलेश यादव के सत्ता में आने पर मुफ्त राशन के साथ मुफ्त घी देने के वादे को प्रमुखता से प्रकाशित किया. इस लेख को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ प्रचार करते सपा प्रमुख की तस्वीर के साथ लगाया गया था.

बढ़ती मुद्रास्फीति और सियासत

बढ़ती महंगाई इस पूरे हफ्ते उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर चर्चा का विषय रही. 2 मार्च को इस बैनर हेडलाइन के तहत कि कैसे आम आदमी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में उच्च मुद्रास्फीति से हलकान है, रोजनामा ने दो खबरें प्रकाशित कीं—इसमें एक एलपीजी की कीमत प्रति सिलेंडर 105 रुपये बढ़ने से संबंधित थी और दूसरी दूध के दाम में वृद्धि को लेकर थी. इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक बयान भी शामिल किया गया था कि सरकार लोगों की मुश्किलों के प्रति उदासीन है और मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए कोई उपाय नहीं कर रही है. एक दिन पहले ही अखबार ने अमूल का दूध 2 रुपये प्रति लीटर महंगा होने की खबर पहले पन्ने पर छापी थी.

2 मार्च को सियासत ने अपने पहले पेज पर एलपीजी की कीमतें बढ़ने संबंधी एक खबर छापी जिसमें इनसेट में लगी खबर में अखिलेश यादव को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि लोगों को जल्द उस सरकार से छुटकारा मिलेगा जिसने उन्हें लूट लिया है.

स्कूल ड्रॉपआउट में वृद्धि और जल्द शादी के आसार

3 मार्च को रोजनामा ने एनजीओ सेव द चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बताया गया है कि कोविड लॉकडाउन के दौरान 67 प्रतिशत लड़कियां (देशभर में) शिक्षा से वंचित हो गई हैं. यही नहीं, करीब इतनी ही संख्या में लड़कियां चिकित्सा और पोषण संबंधी सेवाओं से भी वंचित हुई हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उनमें से कई की जल्द शादी होने की भी संभावना है, जो कि सामान्य परिस्थितियों में शायद नहीं होती. 28 फरवरी को एक संपादकीय में इंकलाब ने सरकार से सवाल किया कि स्कूल ड्रॉपआउट रेट को नियंत्रित करने के लिए उसके पास क्या योजना हैं और आरोप लगाया कि वह इस समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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