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Monday, 9 December, 2024
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‘काफिरोफोबिया’ और ‘हिंसात्मक मानसिकता’ का खतरा- इस सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या लिखा

पिछले कुछ दिनों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने न्यूज और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उस पर क्या टिप्पणी की, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: शांति और सौहार्द को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि किसी भी इस्लामी सिद्धांत या ऐतिहासिक तथ्यों पर सवाल उठाने के जवाब में ‘हिंसा का सहारा लेने’ की ‘मध्ययुगीन मानसिकता’ और इस्लामी उम्माह का आह्वान किए जाने की प्रवृत्ति को उजागर किया जाए और इसका मुकाबला किया जाए. आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने यह बात पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा को लेकर जारी विरोध के संदर्भ में लिखी है, जिन्हें पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया गया था.

सोमवार को साप्ताहिक पत्रिका के नवीनतम अंक में छपे संपादकीय में सवाल उठाया गया कि क्या उन आवाजों के खिलाफ कुछ किया जाएगा जो ‘ज्ञानवापी परिसर में मिली शिवलिंग जैसी संरचना का मजाक उड़ाने का एक भी मौका नहीं छोड़ते.’

इसमें आरोप लगाया गया कि ‘मुस्लिम उम्माह ने काफी सोच समझकर उप-राष्ट्रपति की कतर यात्रा के समय का उपयोग माहौल को और खराब करने के लिए किया. गौरतलब है कि कतर की सरकार ने पैगंबर पर टिप्पणी के मामले में पिछले हफ्ते उसी समय विरोध दर्ज कराया था जब उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू वहां के दौरे पर थे.

संपादकीय में आगे लिखा गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने वंश और संस्कृति की साझी जड़ों से फिर जुड़ने का जो सुझाव दिया है, वहीं ‘अलगाववाद’ और ‘हिंसा के वीटो’ के उपयोग की प्रवृत्ति से छुटकारा पाने का एकमात्र विकल्प है. इसमें कहा गया है, ‘हिंदुओं से हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश न करने का आह्वान करते हुए उन्होंने (भागवत ने) मुसलमानों को भी सलाह दी है कि वे आक्रामकता के प्रतीक बने कुछ विशेष स्थानों को लेकर हिंदुओं की संवेदनाओं को समझें.’

‘काफिरोफोबिया का उफान’ शीर्षक से अपनी कवर स्टोरी में ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि जहां लोग इस्लामोफोबिया पर चिंता जता रहे हैं, वहीं किसी को भी ‘काफिरोफोबिया’ की चिंता नहीं है—यह शब्द उन लोगों के खिलाफ मुस्लिम ‘असहिष्णुता’ को जताने के लिए गढ़ा गया है जो इस्लाम का पालन नहीं करते हैं और उन्हें ‘काफिर’ बुलाया जाता है.

नूपुर शर्मा और उनके सहयोगी नवीन जिंदल को लेकर विवाद पर दो बार राज्यसभा के सांसद रहे बलबीर पुंज ने कहा कि यह एक ‘झूठी धारणा’ की ‘अस्थायी जीत’ है. पंजाब केसरी के लिए अपने लेख में पुंज ने लिखा, ‘पाकिस्तान, कतर, कुवैत और सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देशों के साथ-साथ हमारे देश के जिहादी, वामपंथी, मोदी विरोधी खेमे ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार कर दिया है.’

उन्होंने लिखा कि सवाल यह है कि क्या नूपुर शर्मा और जिंदल ने जो बोला वो वास्तव में ‘हेच स्पीच’ है. उन्होंने तर्क दिया, दोनों ने वही कहा जो इस्लामी विद्वान बार-बार अपने तर्कों में कहते रहते हैं और यह इस्लामी साहित्य का भी हिस्सा हैं. पुंज ने पूछा कि क्या यह वास्तव में एक इस्लामोफोबिया का मुद्दा था, अगर ऐसा है तो इस्लामिक राष्ट्र चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप क्यों हैं.

संघ ने नूपुर शर्मा विवाद को संभालने में भाजपा की प्रशंसा की

अरब देशों के बढ़ते आक्रोश पर भाजपा की प्रतिक्रिया और दो पार्टी प्रवक्ताओं के निलंबन का विश्लेषण करते हुए आरएसएस के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने अपने संपादकीय में कहा कि भाजपा ने इस प्रकरण को शांति और पूरी तत्परता के साथ संभाला है.

इसमें लिखा गया है, ‘क्या भाजपा दबाव में थी? कई मायने में ऐसा कहा जा सकता है, लेकिन बात ऐसी नहीं है. लोगों में गुस्सा है लेकिन यह पार्टी (भाजपा) हमेशा जनता के गुस्से को समझकर और उनकी इच्छाओं के अनुरूप आगे बढ़ी है. जब भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन किया, तो पार्टी को अपने ही समर्थकों का गुस्सा झेलना पड़ा था. लेकिन पार्टी ने उस कड़वाहट को पी लिया, इससे सबक सीखा और अनुच्छेद 370 को हटाकर लोगों की दशकों पुरानी आकांक्षाओं को पूरा भी किया.’

एक अन्य लेख में पांचजन्य ने नेशनल हेराल्ड अखबार से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग केस में कथित संलिप्तता को लेकर कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर निशाना साधा, जिस मामले में राहुल गांधी को इस सप्ताह प्रवर्तन निदेशालय ने कई बार पूछताछ के लिए बुलाया है.

1977 में भ्रष्टाचार के एक मामले में पूर्व प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए लेख में कहा गया है, ‘नेशनल हेराल्ड घोटाले में मां-बेटे की जोड़ी सात साल से जमानत पर है. इस बार भी कांग्रेस ने विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दिया है. यह कांग्रेस की परंपरा है कि जब भी गांधी-नेहरू परिवार पर कोई आंच आई, तो उसने विवाद पैदा करने की कोशिश की- चाहे वो इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला हो, या जीप घोटाले में उनकी गिरफ्तारी.

लेख में कहा गया, ‘शाही परिवार और उनके दरबारियों का मानना था कि वे हमेशा सत्ता में रहेंगे. कांग्रेस दंगाइयों को ‘मासूम बच्चे’ कह रही है, कश्मीर में हिंदुओं को मारने के लिए पाकिस्तान को क्लीन चिट दे रही है, राहुल गांधी विदेश जाकर कह रहे हैं कि राजनयिक अहंकारी हो गए हैं. नेशनल हेराल्ड तो घोटालों की चेन की सिर्फ एक कड़ी है.’

संघ की श्रमिक शाखा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने अपनी पत्रिका विश्वकर्मा संकेत में घोषणा की कि वह निजीकरण और निगमीकरण के खिलाफ राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करेगा.

इसमें कहा गया है, ‘यह सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश और निजीकरण और केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों के निगमीकरण पर जन जागरण कार्यक्रम का एक हिस्सा है. बिजली, दूरसंचार, इंजीनियरिंग, बैंकिंग, बीमा इत्यादि जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के सभी उपक्रमों के कर्मचारी और रक्षा, रेलवे और डाक क्षेत्रों से संबंधित केंद्र सरकार के कर्मचारी बड़ी संख्या में इन सम्मेलनों में हिस्सा लेंगे.

आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा कोविड-19 महामारी के मद्देनजर टीकों और अन्य उत्पादों के लिए बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों की छूट पर एक प्रस्तावित पाठ की भाषा को हल्का करने के प्रयासों के बारे में लिखा.

महाजन ने लिखा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छूट का प्रस्ताव टीकों तक सीमित करने और वह भी सिर्फ टीकों के निर्यात तक केंद्रित रखने को लेकर यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देश और डब्ल्यूटीओ सचिवालय एक साथ आ गए और निर्यात को लेकर भी तमाम शर्तें थोपे जाने से यह प्रस्ताव अव्यावहारिक ही हो गया है. और प्रस्तावित निर्णय का यह मसौदा भारत या वैक्सीन बनाने वाली भारतीय कंपनियों के लिए किसी तरह से लाभदायक नहीं है.’

उन्होंने आग्रह किया कि भारत को ‘यह प्रस्तावित मसौदा अपनाने से साफ इनकार कर देना चाहिए. क्योंकि इसे अपनाना इस समय की जरूरत को नजरअंदाज करता है और साथ ही यह संदेश भी देता है कि विकासशील देशों की वैध जरूरतों को अंतरराष्ट्रीय निगमों के लाभ के लिए अनदेखा किया जा सकता है.’

स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान यूनियन और आरएसएस समर्थित अन्य संगठनों की तरफ से एक साझा बयान में कहा गया है, ‘आश्चर्यजनक है कि सदी में सबसे खराब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान भी विश्व व्यापार संगठन आईपी से संबंधित कोई अपवाद नहीं बना पा रहा है, और यह विश्व व्यापार संगठन की छवि पर एक स्थायी धब्बा रहेगा.’


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‘विधर्मियों की साजिश’

11 और 12 जून को हरिद्वार में अपने दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अन्य बातों के अलावा यह आह्वान भी किया कि पारिवारिक संस्थाएं मजबूत की जाएं, धर्मांतरण के खिलाफ एक केंद्रीय कानून आए और निजी मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से ‘मुक्त’ किया जाए.

धर्म परिवर्तन के संदर्भ में उत्तराखंड में ज्योतिर मठ के पूर्व प्रमुख शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को विश्व संवाद केंद्र भारत की तरफ से यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि यह ‘विधर्मियों’ की एक सुनियोजित साजिश थी, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार को एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि पंजाब एक बार फिर 1984 के आतंकवाद के दौर के कगार पर खड़ा है और इस समय सिख गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करने की बेहद जरूरत है.

‘स्वर्णिम युग आकार ले रहा है’

आरएसएस की दिल्ली इकाई के पदाधिकारी राजीव तुली ने इंडिया टुडे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आठ साल के कार्यकाल पर लिखे एक लेख में कहा, ‘हम एक ‘स्वर्णिम युग’ को आकार दे रहे हैं.’

तुली ने लिखा, ‘भारत एक ऐसे सांस्कृतिक पुनरुद्धार का गवाह बन रहा है जहां भारतीय संस्कृति के सभ्यतागत मूल्यों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ‘सॉफ्ट-पॉवर’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, स्थानीय आबादी को संबोधित करते हुए यह सुनिश्चित करते हैं कि वह भारतीय सभ्यता के साथ उस राष्ट्र के भावनात्मक और सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित करें.’

उन्होंने लिखा, ‘वह अपने समकक्षों को उपहार स्वरूप भगवद गीता भेंट करते हैं, कलाकृतियों जैसे भारतीय सभ्यताओं के प्रतीकों को वापस लाना सुनिश्चित करते हैं, शुरुआत वसुधैव कुटुम्बकम से करते हैं, लोगों को भारत आने का न्योता देते हैं, और यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों को भारतीय संस्कृति का दर्शन कराते हैं—जैसे गंगा आरती, साबरमती आश्रम, दक्षिण के मंदिर आदि. वह मंदिर पुनरुत्थान के माध्यम से भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित कर रहे हैं, चाहे राम मंदिर का पुनर्निर्माण हो, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो या अन्य मंदिरों का पुनरुद्धार.’

नया इंडिया में ‘भारत बदल गया’ शीर्षक से एक लेख में दक्षिणपंथी लेखक हरिशंकर व्यास ने दावा किया कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान लोगों की मानसिकता बदल गई है.

व्यास ने मूल रूप से हिंदी में प्रकाशित लेख में लिखा, ‘भारत का जन-जन नई दिमागी अवस्था में है. धर्म ने दिमाग में बाकी सभी चीजों की सफाई कर दी है. ब्रेनवाश की यह अवस्था हिंदू और मुसलमान दोनों में समान गहराई से है. सब मोटा-मोटी यही ख्याल बनाए हुए हैं कि हमें धर्म के लिए लड़ना है. धर्म ही जीवन, धर्म ही समाज, धर्म ही आर्थिकी, धर्म ही राजनीति और धर्म से ही रक्षा तथा आन-बान-शान है! इसलिए भारत का हर शहर, हर कस्बा, और हर गांव लोगों की इसी दिनचर्या में जीता है कि आज के दिन धर्म-कर्म पर व्हाट्सएप पर क्या चर्चा है.

उन्होंने लिखा, ‘आठ वर्षों में महानगरों, नगरों, गांव-कस्बों में सर्वाधिक मांग पंडितों, पुजारियों की बढ़ी है और सर्वाधिक विस्तार मंदिरों का हुआ है. भाजपा के सांसदों, विधायकों और नेताओं की देखादेखी अब दूसरी पार्टियों के नेताओं में होड़ मची है कि वे धर्म-कर्म की गतिविधियों में आगे दिखाई दें.’

‘हिमंत राष्ट्रीय चेहरा बन सकते हैं’

राजनीतिक विश्लेषक अजीत दत्ता की किताब ‘हिमंत बिस्व सरमा—बॉय वंडर टू सीएम’ तक की समीक्षा करते हुए संघ के सदस्य रतन शारदा ने असम के मुख्यमंत्री की काफी प्रशंसा की.

आर्गनाइजर में प्रकाशित एक समीक्षा में शारदा ने लिखा, ‘जीवनी लेखक अजीत दत्ता ने भारतीय राजनीतिक क्षितिज के सबसे प्रतिभाशाली नेताओं में से एक के व्यक्तित्व को गहराई से उतरा हैं, जो जल्द ही भाजपा के युवा नेताओं की आकाशगंगा के बीच एक राष्ट्रीय चेहरा बन सकते हैं.’

उन्होंने लिखा, ‘एक युवा कॉलेज छात्र के तौर पर अपनी होने वाली पत्नी को बड़े आराम से यह बताना कि वह एक सीएम बनना चाहते हैं, उनके साहसिक व्यक्तित्व को उसी तरह दर्शाता है जैसे पार्टी के ही एक अन्य नेता नितिन गड़करी भी हैं, जिन्होंने अपने होने वाले ससुर से कहा था कि वह नौकरी करने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले बनेंगे.’

शारदा ने इस समीक्षा लेख में राहुल गांधी के पालतू कुत्ते पिडी का जिक्र भी किया, जिसके बारे में सरमा ने कभी दावा किया था कि उसे कांग्रेस के नेताओं से ज्यादा अहमियत दी जाती है. उन्होंने लिखा, ‘एक युवा आंदोलनकारी से टाडा आरोपी के तौर पर एक अंधेरे भविष्य की ओर बढ़ने से लेकर एक नेता अगप के रूप में उभरने और फिर कांग्रेस का दामन थामने वाले इस नेता ने अंतत: यह महसूस किया कि कांग्रेस के उज्ज्वल भविष्य नेता की तुलना में एक पिडी अधिक महत्वपूर्ण है. इसी ने उन्हें भाजपा के साथ आकर गहरे पानी में उतरी मछली जैसा आसान काम न चुनने को प्रेरित किया. कई नेताओं ने इसे आजमाया है, और खुद को लेडी लक के दूसरे पहलू की तरफ पाया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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