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Monday, 30 September, 2024
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न्यायपालिका में बहुत कम है महिलाओं की हिस्सेदारी, शीर्ष न्यायालय में 1950 से सिर्फ 11 महिला जज

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नयी दिल्ली,10 मार्च (भाषा) न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व ‘बहुत कम’ है और 1950 में उच्चतम न्यायालय की स्थापना के बाद से शीर्ष न्यायालय में सिर्फ 11 महिला न्यायाधीश नियुक्त की गई हैं।

उन्होंने सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को रेखांकित करते हुए यह कहा।

शीर्ष न्यायालय की वरिष्ठतम महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति बनर्जी के विचारों से न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न ने सहमति जताई, जो पहली महिला प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बनेंगी।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं का समावेश यह सुनश्चित करेगा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया कहीं अधिक उत्तरदायी, समावेशी और हर स्तर पर सहभागिता वाली है।

न्यायमूर्ति बनर्जी और न्यायमूर्ति नागरत्न के अलावा, सीजेआई एन वी रमण और दो अन्य महिला न्यायाधीश –न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति हिमा कोहली– ने भी ऑनलाइन माध्यम से संचालित महिला न्यायाधीशों के प्रथम अंतरराष्ट्रीय दिवस पर अपने विचार रखे।

न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि उच्च न्यायालयों के 680 न्यायाधीशों में 83 महिला न्यायाधीशों का होना बहुत कम संख्या है और निचली अदालतों में करीब 30 प्रतिशत महिला न्यायिक अधिकारी हैं।

न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा, ‘‘महिलाओं को न महज औपचारिकता के, बल्कि सकारात्मक कार्य के जरिए समानता पानी होगी। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की संख्या बढ़ने के बावजूद निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘आज भी महिलाओं को उनमें अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है जो निर्णय लेते हैं और जिसका भविष्य की पीढ़ी पर प्रभाव पड़ता है। ’’

उन्होंने कहा कि यदि महिलाएं पीछे छूट जाती हैं तो भारतीय न्यायपालिका अपेक्षाकृत बेहतर नहीं हो पाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में, न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 1950 में उच्चतम न्यायालय की स्थापना के बाद से बहुत कम रहा है और शीर्ष न्यायालय में सिर्फ 11 महिला न्यायाधीश नियुक्त की गई हैं। ’’

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अधिक संख्या में महिला न्यायाधीशों के होने से महिलाओं के न्याय मांगने की इच्छा बढ़ सकती है और अदालतों के द्वारा उनके अधिकार उन्हें मिल सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय में अभी चार महिला न्यायाधीश हैं। मुझे लगता है कि देश के शीर्ष न्यायालय की संरचना में यह एक बड़ा बदलाव लाएगा।मुझे लगता है कि इस महान संस्था के इतिहास में यह एक नये युग की शुरूआत है। ’’

न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि एक आदर्श स्थिति में महिलाओं की न्यायपालिका में पुरुषों के समान संख्या होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि लैंगिक समानता एक बड़ा सतत विकास लक्ष्य है।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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