नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के अंदर उप-वर्गीकरण की राज्यों को अनुमति देने संबंधी उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले पर राष्ट्रीय स्तर पर भले ही कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया हो, लेकिन इसके कई नेताओं का मानना है कि यह निर्णय पार्टी को दलितों के अधिक वंचित वर्गों में अपना संपर्क बढ़ाने में मदद कर सकता है।
पार्टी के नेताओं का कहना है कि भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में, संख्यात्मक रूप से कमजोर अनुसूचित जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए कड़ी मेहनत की है।
उन्होंने कहा कि न्यायालय के फैसले से पार्टी को इन समुदायों को उनकी सबसे बड़ी इच्छा – सरकारी नौकरियों और योजनाओं में उनके उचित हिस्से – की पूर्ति का वादा करने की अनुमति मिल सकती है।
हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में, भाजपा को दलित वोट में आई कमी ने पार्टी को इस बारे में मंथन करने के लिए मजबूर कर दिया। वहीं, विपक्ष के इस आरोप के बाद कि (केंद्र की) नरेन्द्र मोदी सरकार संविधान में बदलाव करना चाहती है, भाजपा इस समुदाय में अपनी पैठ फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
हालांकि, भाजपा नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि उसे राजनीतिक अनिश्चितता से भरे इस मुद्दे पर सावधानी से कदम उठाना चाहिए तथा अपनी स्थिति बताने से पहले अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के समग्र मिजाज का आकलन करना चाहिए।
पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘‘अधिकांश पार्टियां, चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस या क्षेत्रीय दल हो, स्पष्ट रुख अपनाने से बचती रही हैं। ऐसा इसलिए है कि इन समुदायों के भीतर से प्रतिक्रियाएं खुद ही विभाजित हैं।’’
भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपना रुख जाहिर किया है। इसका कारण यह है कि लोजपा (रामविलास) का बिहार में समर्थन आधार दलित कोटा को जाति के आधार पर बांटने से संभवत: नाखुश है।
लोजपा(रामविलास) प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भाजपा के प्रबल समर्थक हैं।
बिहार में मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी विभिन्न अनुसूचित जाति समुदायों के लिए उप-कोटा तय करने के किसी भी कदम के खिलाफ रुख प्रकट किया है।
हालांकि, विशेष रूप से विभिन्न राज्यों में, जहां भाजपा दलित जातियों में अधिक वंचित लोगों के प्रति लंबे समय से सहानुभूति रखती आई है, पार्टी के कई नेताओं ने न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।
भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में उल्लेख किया कि केंद्र ने अदालत में दाखिल अपने हलफनामे में उप-वर्गीकरण का समर्थन किया था।
उन्होंने कहा कि यह फैसला मडिगा समुदाय को उसका हक सुनिश्चित करेगा। यह समुदाय मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में निवास करता है लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों में भी है।
दलित समुदाय से आने वाले भाजपा सांसद बृजलाल ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह अनुसूचित जातियों के भीतर असमानता को दूर करता है।
आर्थिक और संख्यात्मक रूप से मजबूत दलित समूह, जैसे तेलंगाना में माला या उत्तर प्रदेश में जाटव, भाजपा समर्थक नहीं माने जाते। केंद्र ने जनवरी में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, जो मडिगा जैसे अनुसूचित जाति समूहों के हितों की रक्षा के लिए उठाए जा सकने वाले प्रशासनिक कदमों की जांच करेगी।
समिति को अनुसूचित जातियों के सर्वाधिक वंचित समुदायों के लिए लाभों का उपयुक्त आवंटन सुनिश्चित करने के तरीकों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया है, जिन्हें तुलनात्मक रूप से समृद्ध और प्रभावशाली समूहों द्वारा वंचित रखा गया है।
उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से दिए एक फैसले में बृहस्पतिवार को कहा था कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए निर्धारित आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए।
भाषा सुभाष रंजन
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