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Friday, 19 April, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने IT एक्ट 66ए के जारी रहने पर राज्यों, UT और सभी हाई कोर्ट्स को नोटिस भेजा

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की निरस्त की जा चुकी धारा 66ए के तहत भड़काऊ पोस्ट करने पर किसी व्यक्ति को तीन साल तक कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक गैर सरकारी संगठन की उस याचिका पर राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किये जिसमें कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की रद्द हो चुकी धारा 66ए के तहत अब भी लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक फैसले में इस धारा को रद्द कर दिया था.

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि चूंकि पुलिस राज्य का विषय है, इसलिए यह बेहतर होगा कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को पक्षकार बनाया जाए तथा ‘हम एक समग्र आदेश जारी कर सकते हैं जिससे यह मामला हमेशा के लिये सुलझ जाए.’

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीयूसीएल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि इस मामले में दो पहलू हैं, पहला पुलिस और दूसरा न्यायपालिका जहां अब भी ऐसे मामलों पर सुनवाई हो रही है.

पीठ ने कहा कि जहां तक न्यायपालिका का सवाल है तो उसका ध्यान रखा जा सकता है और हम सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी करेंगे. शीर्ष अदालत ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख चार हफ्ते बाद तय की है.

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सुप्रीम कोर्ट ने पांच जुलाई को इस बात पर ‘हैरानी’ और ‘स्तब्धता’ जाहिर की थी कि लोगों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत अब भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं जबकि शीर्ष अदालत ने 2015 में ही इस धारा को अपने फैसले के तहत रद्द कर दिया था.

कोर्ट के आदेश का जवाब देते हुए केंद्र ने कहा कि पुलिस और सार्वजनिक आदेश राज्य का विषय हैं. आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को हटाए जाने के बाद इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यों के पास है. वहीं कानून प्रवर्तन एजेंसिया भी इस फैसले को लागू करने में समाज जिम्मेदारी साझा करती हैं.

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की निरस्त की जा चुकी धारा 66ए के तहत भड़काऊ पोस्ट करने पर किसी व्यक्ति को तीन साल तक कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था.


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