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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशअर्थजगतबढ़ती मांग, कोयले की कमी, ऊंचे दाम मांगती निजी कंपनियां- बिजली संकट से क्यों जूझ रहा है आंध्र प्रदेश

बढ़ती मांग, कोयले की कमी, ऊंचे दाम मांगती निजी कंपनियां- बिजली संकट से क्यों जूझ रहा है आंध्र प्रदेश

ऊर्जा सचिव बी श्रीधर का कहना है कि राज्य में 5-5.5 करोड़ बिजली यूनिट्स की कमी हो रही है और इस कमी को खरीद तथा उद्योगों पर लगाई गई बिजली की रोक से पूरा किया जाएगा.

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हैदराबाद: गंभीर बिजली संकट स जूझ रहे आंध्र प्रदेश ने पिछले तीन दिनों में बिजली कटौती के दौरान एक सरकारी अस्पताल में मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट में बच्चे की डिलीवरी, 50 प्रतिशत क्षमता पर काम करते उद्योग, अंदरूनी क्षेत्रों में घंटों की बिजली कटौती और विपक्षी दलों के प्रदर्शन- सब कुछ देख लिया है.

लेकिन वाईएस जगनमोहन रेड्डी की राज्य सरकार ने कहा है कि ये संकट ‘अस्थायी’ है.

शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए राज्य के ऊर्जा सचिव बी श्रीधर ने कहा कि बढ़ती हुई मांग के बीच आंध्र बिजली की 5-5.5 करोड़ यूनिट्स (एमयू) की कमी का सामना कर रहा है. उन्होंने आगे कहा कि राज्य 3 करोड़ यूनिट्स खरीद रहा है और बाकी 2 करोड़ यूनिट्स की कमी उद्योगों से बिजली लेकर पूरी की जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘मांग अचानक बढ़ गई है. राज्य की खपत 24 करोड़ यूनिट्स की है और अलग-अलग स्रोतों से बिजली की उपलब्धता 18 करोड़ यूनिट्स की है. चूंकि सरकार बिजली की घरेलू और कृषि से जुड़ी जरूरतों को प्राथमिकता देना चाहती है, इसलिए लगातार चलने वाले ऐसे प्रोसिंग उद्योगों को जो चौबीसों घंटे चलते हैं, निर्देश दिया गया है कि उन्होंने मार्च में जितनी बिजली की खपत की, अब उसकी आधी ही खपत करें’.

ऊर्जा सचिव ने समझाया कि बिजली खपत पर ये बंदिशें 22 अप्रैल तक चलेंगी, चूंकि सरकारी अनुमानों के मुताबिक फसल कटाई का सीज़न 15 अप्रैल से शुरू हो जाएगा, जिसके बाद कृषि क्षेत्र में बिजली की खपत कम हो जाएगी.

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उन्होंने आगे कहा, ‘उस समय बिजली की उपलब्धता अधिक होगी और ये केवल एक अस्थायी कमी है. ज्यादा से ज्यादा ये प्रतिबंध महीने के अंत रह सकते हैं’.

श्रीधर के अनुसार सौर और पवन ऊर्जा समेत सभी स्रोतों के अपनी अधिकतम क्षमता पर काम करने के बावजूद राज्य को बिजली की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा कि राज्य कोयले की कमी से भी दोचार है: ‘कोयला संकट पिछले अक्टूबर में शुरू हुआ था और हम अभी तक उससे बाहर नहीं निकले हैं. ये समस्या दूसरे सूबों के भी सभी थर्मल स्टेशंस में पेश आ रही है. भारत सरकार इस मसले पर नज़र बनाए हुए है. फिलहाल हम बस किसी तरह गुज़ारा कर पा रहे हैं क्योंकि कोयले का स्टॉक जल्द ही इस्तेमाल हो जाएगा. पिछले सप्ताह, रिहाइशी इलाकों में एक बार बिजली सप्लाई बाधित हुई थी.

ऊर्जा सचिव ने कहा कि कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना भी बिजली की कमी के मामले में ऐसी ही स्थिति में हैं.

उन्होंने कहा, ‘दक्षिण में गर्मियां जल्दी आती हैं और इस मौसम में खेती का काम भी ज्यादा रहता है. पड़ोसी दक्षिणी सूबे भी ऐसी ही स्थिति में हैं और वहां भी ‘अनौपचारिक’ बिजली कटौतियां चल रही हैं. गुजरात ने भी एक बिजली छुट्टी घोषित की है. एपी बिजली कटौती में पारदर्शिता बरतना चाहता है, इसलिए हमने इसका ऐलान पहले ही कर दिया है’.

श्रीधर ने कहा कि निर्देश जारी कर दिए गए हैं कि अस्पतालों में कोई बिजली कटौती नहीं होनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि उनकी प्राथमिकता है कि घरेलू उपभोक्ताओं को कटौती का सामना न करना पड़े लेकिन कमी के चलते उन्हें एक घंटे की बिजली कटौती झेलनी पड़ सकती है.


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उद्योगों के लिए ‘पॉवर हॉलिडे’

शुक्रवार को जगन सरकार ने उद्योगों के लिए 22 अप्रैल तक एक बिजली छुट्टी का एलान कर दिया, जो 2014 में राज्य के विभाजन के बाद पहली बार हो रहा है. चौबीसों घंटे चलने वाले उद्योगों से कहा गया है कि अपनी बिजली जरूरत का केवल 50 प्रतिशत इस्तेमाल करें और साप्ताहिक अवकाश के अलावा एक और दिन की छुट्टी घोषित करें. सरकारी अधिसूचना के अनुसार, ये निर्णय कृषि तथा घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की निर्बाध सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है.

कंपनियों और शॉपिंग मॉल्स से भी कथित रूप से कहा गया है कि केवल 50 प्रतिशत एयरकंडीशनर्स इस्तेमाल करें और शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक होर्डिंग्स और साइनबोर्ड्स के लिए बिजली का इस्तेमाल न करें.

श्रीधर ने शुक्रवार को एक स्थानीय न्यूज़ चैनल से कहा था, ‘उद्योगों पर लगाए गए बिजली प्रतिबंधों की वजह से 2 करोड़ यूनिट्स की बचत होगी. हम कोशिश कर रहे हैं कि बाकी 3 करोड़ यूनिट्स एक्सचेंज (भारतीय ऊर्जा एक्सचेंज) से खरीदकर कमी की भरपाई कर लें. इसलिए घरेली और कृषि क्षेत्रों में बिजली कटौतियां कम होंगी. आगे चलकर ग्रामीण क्षेत्रों में एक घंटे और शहरी इलाकों में आधे घंटे की बिजली कटौती हो सकती है.

एक वरिष्ठ बिजली अधिकारी ने नाम न बताने की इच्छा पर कहा: ‘लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां बढ़ने से अचानक हुई मांग और बिजली के लिए अत्यधिक अस्थिर सौर तथा पवन ऊर्जा पर निर्भरता से ये स्थिति पैदा हुई है. राज्य निजी कंपनियों से सीधे बिजली खरीदने पर विचार नहीं कर सकता क्योंकि उनकी दरें बहुत ऊंची हैं’.


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अस्पतालों तथा अंदरूनी इलाकों में बिजली कटौती

बुधवार रात, जब पूरे प्रांत से घंटों की बिजली कटौती की खबरें आ रहीं थीं, तो नए-नए वजूद में आए अनकपल्ली जिले के एनटीआर सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों ने एक ब्लैकआउट के दौरान मोमबत्तियों और और मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट्स की मदद से एक बच्चे की डिलीवरी कराई.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप वायरल हो गया, जिसमें परिवार का एक सदस्य घुप अंधेरे में सेल फोन की रोशनी की मदद से एक नवजात को साफ करने की कोशिश कर रहा था.

वीडियो में एक आदमी को, जो खुद को नवजात का पिता बताता है, कहते हुए सुना जा सकता है: ‘रात के करीब 12 बजे हैं. मुझसे मोमबत्तियां और लाइट्स लाने को कहा गया था, चूंकि पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी. मैं उनका प्रबंध कैसे कर सकता था? पूरे अस्पताल में बिजली नहीं है सिवाए स्टाफ रूम के और अब वो हमें बता रहे हैं कि जेनरेटर भी काम नहीं कर रहा है. सिर्फ मेरी पत्नी नहीं, अंदर बहुत सारी गर्भवती महिलाएं तकलीफ में हैं’.

विशाखापट्टनम में अस्पताल सेवाओं के जिला को-ऑर्डिनेटर (डीसीएचएस) राम किशोर ने कहा कि अस्पताल आठ घंटे से एक बैक-अप जेनरेटर चला रहा था, जिसके बाद वो खराब होकर बंद हो गया.

रमेश ने दिप्रिंट से कहा, ‘बुधवार शाम से बिजली कटौती चल रही थी और अस्पताल पहले से ही एक डीजल जेनरेटर पर चल रहा था, जिसके बाद वो भी बंद हो गया. अगली सुबह टेक्नीशियंस की एक टीम ने उसकी मरम्मत की. मैंने (अपने अधिकार क्षेत्र में) सभी अस्पतालों के अधीक्षकों से कहा है कि वो अपने जेनरेटर्स की जांच करा लें. मैंने अस्पतालों से ये भी कहा है कि बिजली कटौतियों को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा संख्या में इमरजेंसी पोर्टेबल लाइट्स अपने पास तैयार रखें’.

उन्होंने आगे कहा कि एनटीआर सरकारी अस्पताल में हर महीने औसतन 300 डिलीवरियां की जाती हैं.

सोशल मीडिया पर एक और वीडियो में जंगारेड्डीगुडेम के एक सरकारी अस्पताल में भी इसी तरह की स्थिति दिखाई गई, जिसमें बिजली कटौती के दौरान लोग अस्पताल के बिस्तरों पर सो रहे अपने छोटे बच्चों को पंखा झलते देखे जा सकते थे. तीमारदारों की शिकायत थी कि अस्पताल में छह घंटे से ज्यादा बिजली नहीं आ रही थी जबकि स्टाफ का कहना था कि जेनरेटर का डीजल खत्म हो गया था.

एक दूसरे डीसीएचएस ने अज्ञात रहने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘अलग-अलग जिलों के कई अस्पतालों से बिजली कटौती की खबरें आ रही हैं. अस्पताल अधीक्षकों से कहा गया है कि वो सबसे पहले जेनरेटर्स की मरम्मत कराएं और उसके लिए फंड्स भी जारी किए जा रहे हैं. स्टाफ से ये भी कहा गया कि वो पोर्टेबल टॉर्चलाइट्स तैयार रखें’.

निर्माण क्षेत्र के एक कर्मचारी और प्रकाशम जिले के कंडूकुर कस्बे के निवासी सुब्बा राव ने दिप्रिंट से कहा कि घरों में चार-चार घंटे तक की बिजली कटौती देखी गई है. उन्होंने आगे कहा कि नालादालापुर जैसे अंदरूनी गांवों में उनके रिश्तेदारों ने बताया कि उनके यहां छह घंटे तक की बिजली कटौती हुई है.


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‘राज्य बिजली इकाइयों के लिए आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति’

इसी महीने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के रिटायर्ड अधिकारी ईएएस शर्मा ने, जो राष्ट्रीय योजना आयोग में प्रमुख सलाहकार रह चुके हैं, केंद्रीय कोयला सचिव एके जैन को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कोयले की कमी के लिए बुनियादी तौर पर कोयला विकास के निजीकरण पर केंद्र की नीति को दोषी ठहराया था, जिसके नतीजे में निजी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ गई है.

शर्मा के पत्र में कहा गया, ‘राज्य बिजली इकाइयों के लिए आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति है. एक ओर वो घरेलू कोयला नहीं खरीद पा रही हैं और दूसरी ओर वो अपनी विदेशी कोयला खदानों से भी भारतीय कोयला कंपनियों द्वारा मांगी गई ऊंची कीमतों के चलते कोयला नहीं ले पा रही हैं. कुछ बिजली कंपनियां जो ऐसे आयातित कोयले के महंगे दाम वहन नहीं कर पा रही हैं, वो मजबूरन बिजली कटौती का सहारा ले रही हैं, जिससे कृषि, छोटे उपक्रम और मैन्युफेक्चरिंग गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं’.

उन्होंने ये भी दावा किया कि आंध्र की खराब आर्थिक स्थिति, उसे कोयले की खरीद पर ज्यादा खर्च की इजाजत नहीं देती.

रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने अपने पत्र में लिखा कि कोयला सप्लाई में कमी के नतीजे में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को मजबूरन बेहद महंगे दामों पर कोयला खरीदना पड़ा, जिससे आगे बिजली की दरें बढ़ गईं.

शर्मा ने आगे लिखा, ‘केंद्र ज़ोर देता है कि डिस्कॉम्स अपनी बिजली जरूरतों का एक न्यूनतम हिस्सा केंद्रीकृत सौर ऊर्जा संयंत्रों से पूरा करें- जो अधिकतर कॉरपोरेट व्यवसायिक घरानों द्वारा चलाए जाते हैं और जिनसे काफी ऊंची कीमत पर बिजली मिलती है और साथ ही केंद्र से ये भी निर्देश हैं कि डिस्कॉम्स को कोयले की अपनी कम से कम 10 प्रतिशत जरूरत महंगे आयात से पूरी करनी होगी- इस सब के चलते वितरण कंपनियों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, सिवाय इसके कि ऊंची लागत का बोझ उठाएं और वित्तीय देनदारियां अपने सर पर लें, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं थी और साथ ही इस बोझ को कुछ हद तक बिजली उपभोक्ताओं से भी साझा करें’.


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विपक्ष की प्रतिक्रिया

पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्षी तेलुगू देसम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने बिजली संकट के लिए जगन सरकार को जिम्मेवार ठहराया.

नायडू ने बृहस्पतिवार को ट्वीट किया, ‘मुख्यमंत्री उन गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को क्या जवाब देंगे, जो सरकारी अस्पतालों में मुसीबत झेल रही हैं? राज्य में बिजली संकट चल रहा है और सरकार अपने वॉलंटियर्स को खुश करने के लिए करीब 223 करोड़ रुपए खर्च कर रही है’.

उससे पिछले ही दिन टीडीपी नेताओं ने, राज्य में बिजली दरों में वृद्धि के खिलाफ नरसीपटनम में लालटैनों के साथ एक विरोध प्रदर्शन किया था.

पश्चिम गोदावरी जिले के कमावरापुकोटा में शुक्रवार को किसानों के एक समूह ने एक स्थानीय बिजली सबस्टेशन के बाहर, अघोषित बिजली कटौतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि इनकी वजह से फसलें खराब हो रही हैं. उन्होंने अपना विरोध तब बंद किया, जब स्थानी अधिकारियों ने उन्हें कम से कम 9 घंटे की निर्बाध सप्लाई का आश्वासन दिया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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