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Tuesday, 23 April, 2024
होमदेशFIR की मांग के बीच छुट्टी पर भेजे गए आयुष सिन्हा सख्त कार्रवाई से बचने वाले पहले IAS अधिकारी नहीं

FIR की मांग के बीच छुट्टी पर भेजे गए आयुष सिन्हा सख्त कार्रवाई से बचने वाले पहले IAS अधिकारी नहीं

हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा करनाल में एक झड़प के दौरान कथित तौर पर पुलिसकर्मियों को किसानों के सिर तोड़ने का आदेश देने के कारण विवाद के घेरे में हैं.

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नई दिल्ली: हरियाणा सरकार ने पिछले महीने करनाल में किसानों और पुलिस के बीच झड़प के मामले को शनिवार को न्यायिक जांच के आदेश जारी करने के साथ ही आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा को छुट्टी पर भेज दिया है.

सब-डिवीजन मजिस्ट्रेट (एसडीएम) सिन्हा एक वीडिया सामने आने के बाद से विवादों में घिरे हुए हैं, जिसमें वह कथित तौर पर पुलिस वालों को यह निर्देश देते नजर आ रहे हैं कि अगर प्रदर्शनकारी किसान सुरक्षा घेरा तोड़ते हैं तो उनके सिर फोड़ दें.

यह वीडियो फुटेज वायरल होने और 2017 बैच के आईएएस अधिकारी सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर किसानों ने धरना शुरू कर दिया था. इसके बाद किसानों के साथ एक समझौते के साथ सरकार आखिरकार उन्हें अपना विरोध खत्म करने पर राजी कर पाई.

28 अगस्त की इस घटना के बाद से किसान सिन्हा के निलंबन की मांग कर रहे थे. हालांकि, 2 सितंबर को उन्हें करनाल से ट्रांसफर कर दिया गया और नागरिक संसाधन सूचना विभाग में अतिरिक्त सचिव के तौर पर तैनात कर दिया गया.

हालांकि, यह उनके और झड़प में शामिल अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग के बावजूद हुआ है.
हरियाणा सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अगर राज्य इस तरह के दबावों के आगे झुकने लगेगी तो यह कभी भी किसी भी आईएएस अधिकारी के खिलाफ विरोध जताने के लिए एक मिसाल बन जाएगा.

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फिलहाल जब तक जांच जारी है, सिन्हा छुट्टी पर रहेंगे. जांच हाई कोर्ट के इक रिटायर जज की तरफ से की जाएगी और यह एक महीने में पूरी होने की उम्मीद है.

दिप्रिंट ने इस मामले में टिप्पणी के लिए टेक्स्ट मैसेज और फोन कॉल के जरिये हरियाणा के कार्मिक प्रशिक्षण, सतर्कता और संसदीय कार्य विभाग के विशेष सचिव अशोक कुमार मीणा से संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

सिन्हा उन तमाम आईएएस अधिकारियों में शुमार हैं जो राज्य सरकारों के साथ संबंधों या अपने कार्यों को लेकर विवादों के केंद्र में रहे हैं और उन पर किसी मामले में ज्यादा ही सख्त से निपटने के आरोप लगे हैं.

लेकिन, राज्य सरकारों की तरफ से शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही और अपने खिलाफ जांच जारी होने के बावजूद ये अधिकारी सेवा में बने हुए हैं.

दिप्रिंट ने ऐसे कुछ मामलों पर एक नजर डाली.

दुर्गा शक्ति नागपाल, यूपी कैडर

दुर्गा शक्ति नागपाल 2013 में नोएडा में एसडीएम थीं, जब उन्होंने गौतम बुद्ध नगर में अवैध रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई की थी. हालांकि, ऐसा करके उन्होंने कथित तौर पर राज्य सरकार को नाराज कर दिया था.

तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने 2010 बैच की अधिकारी को कथित तौर पर एक मस्जिद ढहाने के मामले में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं करने को लेकर निलंबित कर दिया था.

इसे लेकर राज्य सरकार और तत्कालीन यूपीए सरकार के बीच विवाद खड़ा हो गया था, केंद्र की तरफ से उनका निलंबन खत्म करने को कहा गया. अंततः नागपाल को बहाल कर दिया गया, लेकिन अंतरिम तौर पर एक आरोपपत्र दायर किया गया. हालांकि 2013 में इसे रद्द कर दिया गया था.

एक साल बाद नागपाल के पति अभिषेक सिंह को उसी सरकार ने 55 वर्षीय दलित शिक्षक के साथ कथित तौर पर अमानवीय व्यवहार करने के आरोप में निलंबित कर दिया था. 2011 बैच के यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी अभिषेक सिंह उस समय मथुरा में एसडीएम थे.

इसके बाद यह अधिकारी दंपति 2015 में प्रतिनियुक्ति पर नई दिल्ली पहुंचने में सफल रहा.

इसके बाद नागपाल को जहां कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह की विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी) नियुक्त किया गया था, वहीं

उनके पति अभिषेक को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा तीन साल के लिए अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली) कैडर में ट्रांसफर कर दिया गया था.

तबसे दोनों आईएएस अधिकारी नई दिल्ली में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. नागपाल को 2019 में वाणिज्य विभाग, वाणिज्य मंत्रालय में उप सचिव नियुक्त किया गया, जबकि अभिषेक को दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग में उपायुक्त नियुक्त किया गया था.
अभिषेक फिलहाल अध्ययन अवकाश पर हैं, वहीं नागपाल इस समय यूपी सरकार में विशेष सचिव, चिकित्सा शिक्षा हैं.

दिव्यांशु पटेल, यूपी कैडर

इस साल जुलाई में 2017 बैच के आईएएस अधिकारी दिव्यांशु पटेल, जो उन्नाव में बतौर मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) तैनात थे, को ब्लॉक पंचायत चुनाव के दौरान एक वीडियो पत्रकार की पिटाई करते हुए कैमरे में कैद कर लिया गया था. पटेल पत्रकार का मोबाइल फोन तोड़ते भी नजर आए थे.

इस घटना को लेकर नाराजगी बढ़ने पर यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल ने दिप्रिंट को बताया था कि सरकार ने उन्नाव जिले के अधिकारियों से व्यापक रिपोर्ट मांगी है.

घटना के एक दिन बाद पत्रकार कृष्ण तिवारी और पटेल एक-दूसरे को मिठाई खिलाते नजर आए थे. तिवारी ने मीडिया को बताया था कि पटेल ने अपने कार्यों के लिए माफी मांगी है और कुछ भ्रम हो गया था क्योंकि पटेल नहीं जानते थे कि वह एक पत्रकार हैं.
मूल वीडियो व्यापक रूप से साझा होने के बीच पटेल ने अपना ट्विटर प्रोफाइल निष्क्रिय कर दिया था क्योंकि मौजूदा भाजपा सरकार और आरएसएस के खिलाफ उनके पुराने ट्वीट सामने आने लगे थे.

यूपी सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया था कि मुख्यमंत्री कार्यालय पटेल के जवाब से संतुष्ट है और इस मामले में आधिकारिक तौर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.

अपने पुराने ट्वीट्स के बाबत पटेल ने स्पष्ट किया था कि वे तब बनाए गए थे जब वह एक छात्र ही थे और ये उनकी मौजूदा विचारधारा नहीं दर्शाते हैं.

पटेल आज भी उन्नाव में बतौर सीडीओ तैनात हैं.

शैलेष यादव, त्रिपुरा कैडर

शैलेष यादव इस साल अप्रैल के अंतिम सप्ताह में उस समय सुर्खियों में आए जब वह एक शादी समारोह में पहुंच गए और कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन को लेकर दूल्हे और उसके परिवारवालों की पिटाई कर दी.
घटना का एक वीडियो वायरल होते ही यादव के सख्त तेवरों की कड़ी आलोचना की गई थी, और उनके निलंबन की मांग की जाने लगी.

हालांकि, 2011 बैच के अधिकारी को निलंबित नहीं किया गया. प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक इसके बजाये उन्हें लिखित रूप में यह बात कहने को कहा गया कि वह पश्चिम जिला मजिस्ट्रेट के तौर पर अपने पद से हटना चाहते हैं.

वहीं, त्रिपुरा हाई कोर्ट ने यादव के खिलाफ दायर एक याचिका पर संज्ञान लिया और राज्य से कथित कदाचार का वह वीडियो फुटेज जमा करने को कहा.

इस बीच, सरकार ने मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित कर दी.

दिप्रिंट की तरफ से फोन कॉल के जरिये संपर्क साधने पर वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने इस मामले पर टिप्पणी से इनकार कर दिया, लेकिन कुछ ने कहा कि हाई कोर्ट जांच की निगरानी कर रहा है.

अदालत को अब तक इस मामले में गठित दो अलग-अलग समितियों की पूरक रिपोर्ट मिल चुकी हैं, लेकिन वह निष्कर्षों से संतुष्ट नहीं है.

इस मामले में तीसरी रिपोर्ट, जो हाई कोर्ट की तरफ से गठित एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश वाली एकल सदस्यीय जांच समिति को देनी है, फिलहाल अभी लंबित है. इस बीच, अदालत ने अगले आदेश की प्राप्ति तक यादव को कोई भी सार्वजनिक बयान देने से रोक दिया है. यादव के खिलाफ कोर्ट में तीन याचिकाएं लंबित होने के अलावा राज्य में तीन एफआईआर भी दर्ज हैं.

हालांकि, जांच प्रक्रिया जारी रहने के बीच राज्य सरकार ने यादव को 31 मई को कोविड-19 प्रबंधन के लिए ओएसडी नियुक्त कर दिया है.

यादव के करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें इसके लिए कोई सरकारी आवास और स्टाफ आवंटित नहीं किया गया था, जो लाभ देने की नियमित व्यवस्था है.

यादव के खिलाफ जांच की स्थिति पर जानकारी हासिल करने के लिए दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिये मुख्य सचिव आलोक कुमार के कार्यालय से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

रणबीर शर्मा, छत्तीसगढ़ कैडर

इस साल मई में सूरजपुर जिले में बतौर कलेक्टर तैनात 2012 बैच के अधिकारी रणबीर शर्मा ने लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने पर एक युवक की पिटाई कर दी थी. युवक को पीटने और उसका फोन फेंक देने वाला उनका वीडियो जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तुरंत प्रतिक्रिया जताई और उक्त अधिकारी को उनके पद से हटा देने की घोषणा कर दी.

उन्होंने हिंदी में किए ट्वीट में कहा, ‘सूरजपुर के डीसी रणबीर शर्मा द्वारा एक युवक के साथ बदसलूकी की घटना मेरे संज्ञान में लाई गई है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई भी घटना बर्दाश्त नहीं की जाएगी. कलेक्टर रणबीर शर्मा को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए हैं.’

आईएएस एसोसिएशन ने भी इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि यह सेवा और सभ्यता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. उसकी तरफ से जारी ट्वीट में कहा गया, ‘सिविल सेवकों को समाज के प्रति उदार रवैया अपनाना चाहिए और उसे राहत देने वाले कदम उठाने चाहिए, खासकर ऐसे कठिन समय में.’

शर्मा को जिला कलेक्टर के पद से हटा दिया गया था, लेकिन उन्हें राज्य सचिवालय में संयुक्त सचिव के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था.

सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के सचिव कमलप्रीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘शर्मा को अभी तक कोई असाइनमेंट नहीं दिया गया है. जांच रिपोर्ट की स्थिति पर फिलहाल मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता.’

प्रवीण कुमार लक्षकर, यूपी कैडर

हाथरस के जिला मजिस्ट्रेट के तौर पर प्रवीण कुमार लक्षकर पिछले साल सितंबर में उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 19 वर्षीय दलित युवती के शव का दाह संस्कार मध्यरात्रि में कराने की अनुमति दी.

2012 कैडर के अधिकारी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वह उस फैसले की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं, जिसमें पीड़िता के परिवार को अंतिम संस्कार से पहले शव घर लाने से रोका गया था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने घटना का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार की तरफ से कार्रवाई नहीं किए जाने पर चिंता जताई थी.

इन टिप्पणियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के आक्रोश के बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार ने लक्षकर को निलंबित नहीं किया.
इसके बजाये, वह इस साल जनवरी में ट्रांसफर किए जाने वाले 16 आईएएस अधिकारियों में शामिल थे और इस समय मिर्जापुर के डीएम हैं.

दिप्रिंट ने जब लक्षकर के खिलाफ की गई कार्रवाई की स्थिति जानने के लिए नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग, यूपी में अतिरिक्त मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी से संपर्क साधा तो उन्होंने कहा, ‘मुझे हाल ही में ट्रांसफर किया गया है और मुझे उक्त अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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