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Sunday, 13 October, 2024
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बंगाल में चुनाव-बाद हिंसा का मामला: ममता सरकार ने HC को बताया—303 ‘विस्थापितों’ में से 70 लोग घर लौटे

याचिकाकर्ता का कहना है कि पीड़ितों को पुलिस की तरफ से धमकियां मिल रही हैं और शासन से कोई मदद नहीं मिल रही. कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में NHRC और राज्य मानवाधिकार आयोग से पूछा है कि क्या वे शिकायतों की जांच कर सकते हैं.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा की घटनाओं के कारण कथित तौर पर अपने घरों और कार्यस्थलों को छोड़कर चले गए 303 लोगों में से 70 वापस लौट आए हैं. विस्थापितों के लौटने से जुड़ी यह जानकारी एडवोकेट जनरल एस.एन. मुखर्जी ने मंगलवार को कलकत्ता हाई कोर्ट को दी.

कथित पीड़ितों का दावा है कि शासन उनकी मदद में नाकाम रहा है और उन्हें पुलिस की तरफ से ‘धमकियों’ का सामना करना पड़ रहा है. इस पर कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग (WBHRC) से हलफनामा पेश करके यह बताने को कहा है कि क्या वे इन शिकायतों की जांच कर सकते हैं.

यह मामला जब चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए आया तब 22 कथित पीड़ित कोर्ट में मौजूद थे. याचिकाकर्ताओं में से एक वकील और पिछले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उम्मीदवार रहीं प्रियंका टिबरेवाल ने कोर्ट को ‘खतरों’ के बारे में बताया.

टिबरेवाल ने अपना केस पेश करते हुए दावा किया, ‘फाल्टा के उप-विभागीय पुलिस अधिकारी ने पीड़ितों से कहा है कि वे उन्हें फिर यहां पर रहने नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने हाई कोर्ट में नाम लिया है.’ उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास राज्य सरकार की लिस्ट में शामिल नामों के अलावा 40 और शिकायतें भी हैं.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों—जिसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने निर्णायक जीत हासिल की थी—की घोषणा के बाद 2 मई 2021 को हिंसक घटनाएं हुई थीं और इसमें कई लोगों की मौत भी हुई थी. बीजेपी और वामदलों दोनों ने टीएमसी पर उनके कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया था.

तीन महीने बाद अगस्त में कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक आदेश जारी कर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को चुनाव-बाद हिंसा के दौरान महिलाओं के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपराधों के कथित मामलों की जांच का निर्देश दिया और अन्य आरोपों की जांच के लिए राज्य पुलिस के अधीन एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने को कहा.

क्या मानवाधिकार आयोग कर सकते हैं जांच

मुखर्जी के मुताबिक, 303 कथित पीड़ितों में से 70 विस्थापित अपने घर लौट चुके हैं, 16 से संपर्क नहीं हो पाया है, 43 पुलिस के आश्वासन के बावजूद खतरे का हवाला देकर यहां आने से कतरा रहे हैं और 18 आपराधिक मामले लंबित होने के कारण फरार हैं. एक नाम दो बार लिखा हुआ था और बाकी 155 अपने कामकाज या अध्ययन के सिलसिले में कहीं और रह रहे हैं.

याचिकाकर्ता ने अब आरोपों और धमकियों की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति बनाने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट से दखल देने की गुहार लगाई है.

टिबरेवाल ने कोर्ट से कहा, ‘इन शिकायतों की जांच के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के एक-एक सदस्य को नियुक्त किया जाए.’

लेकिन इस पर आपत्ति जताते हुए WBHRC के वकील ने कहा, ‘मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत NHRC और राज्य मानवाधिकार आयोग संयुक्त जांच नहीं कर सकते.’ साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि WBHRC में मौजूदा समय में अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है.

बेंच ने अब NHRC और WBHRC दोनों को एक हलफनामा दाखिल करके ये बताने को कहा है कि क्या कोर्ट के कोई आदेश पारित करने से पहले वे शिकायतों की जांच कर सकते हैं. कोर्ट ने साथ ही सरकार से भी कहा है कि अगली सुनवाई से पहले वह कथित पीड़ितों के घर लौटने संबंधी अपने डेटा पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करें.


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वापसी का इंतजार

टिबरेवाल ने कोर्ट को बताया कि राज्य के विस्थापितों की सूची के अलावा उनके पास 40 नई शिकायतें भी हैं. कोर्ट ने उनसे अगले दो दिनों के भीतर एक हलफनामे में रिट याचिका और अन्य दस्तावेजों की एक प्रति WBHRC को उपलब्ध कराने को कहा है.

टिबरेवाल ने तब कोर्ट में मौजूद 22 कथित पीड़ितों की ओर इशारा करते हुए बताया कि वे अभी भी वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं.

बरुईपुर की रहने वाली सुमिता शॉ ने कहा, ‘लगभग एक साल होने जा रहा है. मैं वरिष्ठतम अफसरों समेत तमाम पुलिस अधिकारियों के पास गई लेकिन अभी घर नहीं लौट पाई हूं.’ सुमिता ने दावा किया कि वह पिछले साल चुनाव-बाद दक्षिणी 24 परगना स्थित अपने गांव में हिंसा की घटना के बाद से घर नहीं लौट पाईं हैं.

उसने दावा किया, ‘जो लोग घर लौटे हैं, उन्हें अभी भी परेशान किया जा रहा है और उन्हें उनके घरों से बाहर निकाला जा रहा है. हम दो महीने पहले हुए निकाय चुनावों में वोट भी नहीं डाल पाए थे. हम इस तरह कैसे जी सकते हैं.’

रीता नाइक का दावा है कि बीजेपी के समर्थन और पार्टी के लिए काम करने के कारण उन्हें पिछले साल बैरकपुर स्थित बी.एन. बोस अस्पताल से निलंबित कर दिया गया था.

उसके मुताबिक, ‘2 मई को नतीजे घोषित हुए और 18 मई को मुझे निलंबित कर दिया गया क्योंकि मैं बीजेपी की एक सक्रिय सदस्य थी. उत्तम दास और बबलू विश्वास—जो तृणमूल नेता हैं—ने सुपरिटेंडेंट पर दबाव डाला और मुझे निलंबित करा दिया.’ साथ ही उन्होंने कहा कि उनके पास पिछले एक साल से नौकरी नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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