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Sunday, 13 October, 2024
होमदेशपालतू कबूतरों के पीछे-पीछे LoC के पार आ गया था पाकिस्तानी बच्चा, परिवार ने मोदी से की रिहाई की अपील

पालतू कबूतरों के पीछे-पीछे LoC के पार आ गया था पाकिस्तानी बच्चा, परिवार ने मोदी से की रिहाई की अपील

उसके मामू ने दिप्रिंट से कहा कि 14 साल का असमद अली ‘एक छोटा बच्चा’ है जिससे ग़लती हो गई थी. J&K पुलिस की FIR में सुरक्षा से जुड़े किसी अपराध का उल्लेख नहीं है.

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नई दिल्ली: पाकिस्तानी किशोर के परिवार ने, जिसे नवंबर में पुंछ के पास ग़लती से, नियंत्रण रेखा (एलओसी) के इस पार घुस आने पर गिरफ्तार कर लिया गया था, दिप्रिंट के साथ एक ख़ास इंटरव्यू में, स्कूली बच्चे की रिहाई के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है.

उसके परिवार का कहना है कि 14 साल का असमद अली अपने कबूतरों के साथ खेलते हुए एलओसी के इस पार भारतीय इलाक़े में आ गया था.

उसके मामू अरबाब अली ने कहा, ‘असमद अपने कूबतरों को बहुत चाहता था. उस दिन उसने उन्हें उड़ने के लिए खुला छोड़ दिया था और जब वो उड़कर भारत की ओर आए तो असमद उनके पीछे भाग पड़ा. वो एक छोटा बच्चा है और उसे अहसास नहीं हुआ कि वो नियंत्रण रेखा को पार कर रहा है.’

परिवार के घर की दीवार जो तातरीनोट गांव में है, एलओसी से सिर्फ कुछ मीटर की दूरी पर है, और मशहूर चकन-दा-बाग़ क्रॉसिंग प्वॉइंट के नज़दीक है.

अरबाब अली ने कहा, ‘पूरा परिवार बेहद परेशान है. असमद की नानी जिन्होंने उसे पाला है, पूरे दिन रोती हैं. उसके नाना भी दिन भर रोते हैं. हमारा किसी सियासी पार्टी या संगठन से कोई लेना-देना नहीं है. इस संदेश के ज़रिए मैं भारत के वज़ीरे आज़म से अपील करता हूं, कि इंसानियत के नाते हमारे बच्चे को हमारे पास वापस भिजवा दें.’


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FIR में सुरक्षा से जुड़े किसी अपराध का उल्लेख नहीं

दिप्रिंट के हाथ लगे पुलिस कागज़ात में लिखा है, कि किशोर को पिछले साल 28 नवंबर को, 3 गुरखा रेजिमेंट की एक गश्ती पार्टी ने पकड़ा था. सैन्य सूत्रों ने कहा कि किशोर नियंत्रण रेखा के इस ओर पाया गया था, जो कटीले तारों की बाड़ से आगे थी, जिससे घुसपैठिए आतंकवादियों पर नज़र रखी जाती है.

पकड़ने के बाद सेना ने किशोर को जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवाले कर दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर बाह्य और आंतरिक संचलन (जनयंत्रण) अध्यादेश के उल्लंघन के आरोप में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस क़ानून में अधिकतम दो साल की जेल का प्रावधान है. असमद को फिर पूंछ में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया गया, और फिलहाल वो रणबीर सिंह पुरा में बाल अपराधियों के एक आवास में है.

एफआईआर में सुरक्षा से संबंधिक किसी अपराध का ज़िक्र नहीं किया गया है, जिससे अंदाज़ होता है कि सेना या पुलिस किसी को भी संदेह नहीं है, कि उसके एलओसी पास करने का आतंकवाद से कोई संबंध था. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने टिप्पणी के अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया.

मामले की जानकारी रखने वाले एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि ‘सामान्य हालात में हम उसे ऐसे ही जाने दे सकते थे, जैसा कि हमने अकसर बच्चों के साथ किया है’. लेकिन पुलिस अधिकारी ने समझाया कि ‘शुरू में कुछ शक था कि इस लड़के ने पहले भी नियंत्रण रेखा पार की होगी, जिसे दूर किया जाना ज़रूरी था’.

तातरीनोट के स्टार्स स्कूल में 8वीं क्लास के छात्र असमद को उसकी मां के गुज़र जाने के बाद, उसके नाना-नानी मुहम्मद असलम और ख़दीजा ने पाला था. परिवार के एक सूत्र ने बताया, कि उसके पिता बनारस अली ने लाहौर में दूसरी शादी कर ली थी, और असमद को परिवार का नया माहौल बहुत अनुकूल नहीं लगा.

लेकिन परिवार के हालात उस समय और ख़राब हो गए, जुब उसके दादा को एक चोट लग जाने की वजह से मज़दूरी का अपना काम छोड़ना पड़ा. परिवार चलाने की ज़िम्मा उसके चाचा पर आ गया, जो लाहौर में एक किराए की टैक्सी चलाता है.

लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (रिटा) ने, जो पहले भारत की उत्तरी सेना की कमान संभाल चुके हैं, दिप्रिंट से कहा, ‘बेगुनाह नागरिकों ख़ासकर महिलाओं और बच्चों के मामले में, भारतीय सेना पारंपरिक रूप से बड़े दिल की रही है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे यक़ीन है कि ऐसे सभी मामलों में उदारती दिखाई जाती रहेगी, जहां सुरक्षा से जुड़ा कोई मामला नहीं है’.


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पहले भी बच्चों को घर वापस भेजा गया

भारत सरकार ने अक्सर ऐसे मामलों में आरोपों को ख़त्म किया है, जिनमें वो बच्चे शामिल थे जो ग़लती से नियंत्रण रेखा के इस पार आ गए थे, और उन्हें वापस उनके परिवारों को लौटाया है. मसलन, दिसंबर 2020 में सरकार ने 17 साल की लयबा ज़ुबैर और उसकी 13 साल की बहन सना ज़ुबैर को वापस घर भेज दिया था, जिन्होंने पुंछ में टट्टापानी के पास रंगर नाले के क़रीब एलओसी को पार कर लिया था.

उस मामले की जांच से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, कि दोनों लड़कियां एक समय जिहादी रहे एक व्यक्ति की बेटियां थीं, जो 1990 के दशक की शुरुआत में पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर भाग गया था, और वो लड़कियां अपने पुश्तैनी परिवार से फिर से संपर्क साधना चाहतीं थीं.

अधिकारी ने बताया, ‘पिता की मौत के बाद वो लड़कियां घरेलू नौकरानियों के तौर पर काम करने को मजबूर हो गईं थीं. और उन्हें लगा कि अगर वो नियंत्रण रेखा पार कर लें, तो उन्हें कम से कम एक ऐसा घर मिल जाएगा, जो उन्हें अपनाने को तैयार होगा’.

2017 में, दो किशोर पर ग़लती से आरोप लग गया था कि उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा दहशत गर्दों के गाइड का काम किया था, जिन्होंने उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हमला किया था. लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद, उन्हें वापस घर भेज दिया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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