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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतन सुन-जू न ही कन्फ्यूशियस, शी जिनपिंग समेत चीन के आला नेता किस ‘दार्शनिक’ से ले रहे सबक

न सुन-जू न ही कन्फ्यूशियस, शी जिनपिंग समेत चीन के आला नेता किस ‘दार्शनिक’ से ले रहे सबक

चीनी राज्य-व्यवस्था ज्यादा-से-ज्यादा अधिनायकवादी होती गई है, जिसके पीछे उस दर्शन का हाथ है जो सरकारी सत्ता हासिल करने, इनाम और सजा देने पर ज़ोर देता है    

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पिछले कुछ सप्ताहों से चीन से ऐसी तस्वीरें दुनियाभर में सुर्खियों में आ रही हैं जिनमें पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों को शांघाई में जबरन घरों में घुसकर बड़ी मात्रा में रोगाणुनाशक छिड़कते देखा जा सकता है. लेकिन शी जिनपिंग के राज में लोगों के निजी स्थानों में चीनी अधिकारियों की घुसपैठ को किस तरह जायज ठहराया जा सकता है? प्राचीन चीनी दार्शनिक हान फेई के पास शायद इस सवाल का जवाब मिल सकता है. 

वैसे, चीन के बाहर उसके दो दार्शनिक कन्फूशियस और सुन ज़ू ही ज्यादा मशहूर हैं. लेकिन चीन के आला नेताओं के बीच हाल में जो दार्शनिक ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं वे हान फेई ही हैं. उन्हें कुछ लोग चीन का चाणक्य भी कहते हैं. कोरियाई मूल के फेई शासक हान वंश के उस ‘वारिंग स्टेट्स’ काल में राजकुमार थे जब ईसा पूर्व 5वीं सदी में चीन आपस में लड़ते राज्यों का देश था.

नेता लोग जो किताबें पढ़ते हैं वे उनकी शासन शैली पर असर डालती हैं और वे लंबी छाया छोड़ जाते हैं. शी जिनपिंग प्रायः फेई को उदधृत करते रहते हैं. शी ने वक़्त से कदम मिलाकर चलने वाले कानून की जरूरत पर फेई का यह वाक्य उदधृत किया कि ‘कानून जब वक़्त के मुताबिक बदलता है तब वह अच्छी तरह लागू होता है, और अच्छी बात यही होती है कि कानून और दुनिया उपयुक्त हो.’ 

माओ तक ने फेई की विचारधारा की तारीफ की थी, ‘हान फेई जब ‘बल और शक्ति’ की बात करते थे तब उनका मतलब सत्ता होता था. एक स्मार्ट बादशाह को सत्ता पर नियंत्रण रखना ही चाहिए.’ 


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सज़ा और इनाम 

ई.पू. 475-221 में ‘वारिंग स्टेट्स’ काल चीनी इतिहास का एक क्रूर काल था, जब छोटे राज्य अपने वर्चस्व के लिए आपस में लड़ रहे थे. लेकिन उसी काल में दार्शनिक परंपराओं की शुरुआत हुई जिनके सूत्रधार कन्फूशियस, मेंकीयस और झुंजी सरीखे चिंतक थे. उस काल के समृद्ध इतिहास ने शासन के ढांचे और दार्शनिक परंपराओं की नींव रखी, जिनके आधार पर जनता और राज्य के संबंध आज भी निर्धारित होते हैं. 

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फेई को चीनी दर्शन की ‘वैधानिकतावादी धारा’ का एक जन्मदाता बताया जाता है. इस धारा का प्राथमिक पाठ है ‘मानकों की परिभाषा’ (दिंग फा). फेई राजनीति को भौतिकतावादी और यथार्थपरक दृष्टि से देखते हैं, जिसका वे एक संप्रभुतासंपन्न सत्ता को मजबूत करने के लिए महिष्टवादी वैधानिक कदम के रूप में समर्थन करते हैं. इस धारा के दूसरे दार्शनिक शांग यांग और शेन बुहाई हैं, लेकिन फेई इसके आधुनिक चेहरे के रूप में उभरे हैं. 

कन्फूशियस का दर्शन अधिक व्यक्तिगत स्तर पर पितृसत्तात्मक नैतिकता की वकालत करता है. इसके विपरीत फेई व्यापक वैधानिकतवाद से ताल्लुक रखते हैं और उसे राज्य की सत्ता के आधार के रूप में प्रस्तुत करते हैं. फेई के दर्शन का मूल सहारा कृषि और युद्ध के साथ वैधानिकतावादी जुड़ाव है, जिसमें राज्यसत्ता को बनाए रखने के लिए सैन्य तेवर की जरूरत होती है. फेई ने जनता पर शासन के लिए राज्यसत्ता द्वारा इनाम और सज़ा की व्यवस्था को आगे बढ़ाया. उन्होंने प्रजा को अनुकूल बनाने और उन्हें कानून भंग करने से रोकने के लिए मामूली भूल पर भी सबसे कड़ी सज़ा देने का सुझाव दिया है. क्रिस्टोफर रैंड ने हान फेई के मूल पाठ से यह उद्धरण प्रस्तुत किया है— ‘इसलिए, जागरूक शासक लोगों की ताकत का इस्तेमाल करेगा लेकिन उनकी बातों पर ध्यान नहीं देगा; उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें इनाम देगा लेकिन बेमतलब की गतिविधियों पर रोक लगाएगा. तब लोग अपनी संप्रभुता की खातिर जान की बाजी लगाकर भी मेहनत करने को तैयार हो जाएंगे.’

‘वारिंग स्टेट्स’ वाले युग में नया सैन्यवाद हावी था जो कड़ी सज़ा और कुछ इनाम वाली वैधानिकतावादी विचारधारा को परिभाषित करता था. उस दर्शन में निहित ये चीन के इतिहास में अलग-अलग कालों में लौट-लौट कर हावी होते रहे. 

चीन में सामूहिक नैतिकता 

फेई के दर्शन ने बादशाह क्विन शी हुआंग पर गहरा प्रभाव डाला. अंततः उसने ही छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर क्विन साम्राज्य स्थापित किया जिसे क्विन वंश के नाम से जाना गया. क्विन शी हुआंग ने मामूली अपराध करने वालों को सबसे कड़ी सज़ा देकर वैधानिक शासन के मॉडल को अपनाया.

लेकिन फेई राजनीतिक मामलों में बिलकुल नैतिकता-शून्य नहीं थे. उन्होंने राज्यसत्ता के लिए सामूहिक नैतिकता का पालन करने की बात की, जिसे ‘प्रजा की भलाई’ के लिए काम करना है. यान झुएतोंग ने फेई के विचारों का सार इस तरह प्रस्तुत किया है–‘हान फैईका मानना है की मनुष्य स्वार्थी होता है, संघर्ष को खत्म नहीं किया जा सकता और राज्य मजबूत होगा तभी वह राज्य के हितों आगे बढ़ा सकता है.’ 

चीन में वैधानिकतावादी दर्शन का आधुनिक दौर में रूप है ‘सोशल क्रेडिट सिस्टम (एससीएस). इसमें लोगों से समाज के विभिन्न सेक्टरों में सामूहिक नैतिकता का पालन करवाने के लिए इनाम और सज़ा वाली व्यवस्था अंतर्निहित होती है. 

सोशल क्रेडिट सिस्टम में निहित वैधानिकतावादी दर्शन के बारे में सेमुएल पार्सन्स ने लिखा है कि ‘जहां तक वैधानिकतावादी आदर्श की बात है, ये योजनाएं समाज के हर एक क्षेत्र के लिए एक ही आचार संहिता नहीं लागू करतीं. क्षेत्र के अनुसार कसौटी तय की जाती है. स्वास्थ्य, भारी उद्योग, पर्यटन, व्यवसाय, और शिक्षा क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नियम, इनाम और सजाएं होती हैं. यह ‘नेम्स ऐंड टैलिज़’ की प्राचीन व्यवस्था को प्रतिबिंबित करता है.’   

हान के बादशाह वू (141-87 बीसीई.) के राज में वैधानिकतावाद के प्रति झुकाव घटने लगा, क्योंकि इस विचार के तहत लोगों के प्रति क्रूरता और अत्याचार के कारण इसकी आलोचना होने लगी थी. 

हान फेई का त्रासद अंत हुआ. बताया जाता है कि क्विन के बादशाह की जेल में उन्हें जहर देकर मार डाला गया. कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह काम राजा की मंजूरी से किया गया, जबकि फेई उसकी सेवा करना चाहते थे.


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शी क्यों फेई के हवाले देते हैं 

वैधानिकतावादी दर्शन का इस्तेमाल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर पदानुगत नियंत्रण बनाए रखने में किया गया है. शी जब 2014 में अपनी सत्ता को मजबूती देने में जुटे थे तब उन्होंने अपनी मुहिम को उचित ठहराने के लिए फेई को कई बार उदधृत किया था. उनके जिस उद्धरण को शी ने सबसे ज्यादा अहमियत दी वह यह था— ‘कोई भी देश सदा के लिए शक्तिशाली नहीं रहता, न ही कोई देश हमेशा कमजोर बना रहता है. ‘दिंग फ़ा’ कानून को लागू करने वाले मजबूत होंगे तो उनका देश भी मजबूत होगा; अगर वे कमजोर होंगे तो उनका देश भी कमजोर होगा.’ 

जियांग जेमिन और हू जिंताओ के राज (1989-2013) में धन संचय के चमकते दौर में नये उद्यमी वर्ग का उभार हुआ जो खुद को कानून से ऊपर समझता था. शी अपने उत्कर्ष को राज्यसत्ता के वर्चस्व को शासन की वैधानिकतावादी धारा को पुनर्स्थापित करने के रूप में जो सुधार किए गए उसका ही एक हिस्सा मानते हैं. इस तरह वे अपनी नीतियों को उचित भी ठहराते हैं.  

2020 में गिरफ्तार किए गए कानून के प्रोफेसर शू झांग्रुन ने शी की शासन शैली पर फेई और वैधानिकतावादी धारा के प्रभाव का अध्ययन किया है. शी ने कोविड महामारी का जिस तरह मुक़ाबला किया उसके बारे में शू ने लिखा है कि वह ‘फौजी दमन का एक उभरता स्वरूप है जो उस विचारधारा पर पर आधारित है जिसे मैं ‘वैधानिकतावादी-फासीवादी-स्तलिनवादी’ कहता हूं, जिसे परंपरिक चीनी वैधानिकतावादी विचार की विभिन्न धाराओं को जोड़कर तैयार किया गया है.’ 

शासन के प्रति जनोन्मुख नजरिया और वैधानिक नियंत्रण के बीच तनाव चीन के पूरे इतिहास में देखा जा सकता है. शंघाई लॉकडाउन के दौरान स्थानीय लोगों की चीख-पुकार ने चीन की जनता को राज्यसत्ता के वैधानिक अत्याचारों की याद दिला दी है.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो फिलहाल लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (एसओएएस) से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. इससे पहले वो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में एक चीनी मीडिया पत्रकार थे. वो @aadilbrar पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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