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Friday, 19 April, 2024
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जदयू में प्रशांत किशोर को नंबर दो बनाने के पीछे ये थी नीतीश की विवशता!

प्रशांत किशोर ने पार्टी के लिए काम किया है, पार्टी ने उन्हें नए लोगों को जोड़ने की जिम्मेदारी दी है.नीतीश कुमार उनसे व्यक्तिगत रूप से बहुत स्नेह रखते हैं.

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बिहार में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाया जा रहा था. लोग दही-चिउड़ा और तिलकुट खाने में व्यस्त थे कि राजधानी पटना में एबीपी न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम ‘शिखर-सम्मलेन’ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न केवल चौंकाने वाला, बल्कि सबको हतप्रभ करने वाला एक वक्तव्य देकर न केवल पूरे राज्य बल्कि देश की राजनीतिक बिरादरी को सकते में डाल दिया.

एंकर सुमित अवस्थी का एक अनमना सा सवाल था कि अचानक से प्रशांत किशोर को पार्टी में लाया गया, एंकर के इस सवाल के जवाब में नीतीश कुमार ने कहा ‘प्रशांत किशोर जी को पार्टी में शामिल कीजिये इसके बारे में तो हमको दो-दो बार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी ने कहा कि इसको अपनी पार्टी में शामिल कीजिये, यहां हमारा और भाजपा का रिश्ता ऐसा है कि किसी के प्रति कोई भ्रम और कन्फ्यूजन नहीं है. प्रशांत किशोर ने काम किया है उनसे व्यक्तिगत रूप से हम बहुत स्नेह रखते हैं उनके प्रति और हमनें जिम्मेदारी दी है कि आप नई पीढ़ी के लोगों को राजनीति की तरफ प्रेरित कीजिये.’ ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी, लोग एक-दूसरे को देखने लगे, अंदाजा लगाया जाने लगा जितनी मुंह उतनी बातें होनें लगीं…दर्शकदीर्घा में बैठे लोग सन्न थे.

नीतीश कुमार के इस जवाब पर सभी दर्शक एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि उन्होंने ये क्या कह डाला. कार्यक्रम में उपस्थित दर्शकों और एंकर को पुनः सवाल करने का मौक़ा भी नहीं मिला क्योंकि वह कार्यक्रम का पूर्णविराम था. दर्शकों में प्रायः बिहार के विशिष्ट लोग ही बैठे थे जो अचंभित थे, लोग इसलिए भी हक्का-बक्का रह गए कि आखिर एक अलग वजूद रखने वाली पार्टी जो बिहार में अभी बराबरी के स्तर पर है और पहले बड़े भाई की भूमिका में थी उसकी क्या मज़बूरी रही होगी कि जिस दल (भाजपा) को राजद के साथ महागठबंधन बनाकर धूल चटा दिया उसके (भाजपा) अध्यक्ष के कहने पर अपने दल में नम्बर दो की हैसियत पर प्रशांत किशोर को रख लिया.

राजनीतिक हलकों में ये बयान आग की तरह फैली लेकिन किसी को भी इसका जवाब नहीं सूझ रहा था कि ऐसा बयान नीतीश कुमार जैसे सतर्क राजनीतिक व्यक्ति की ओर से कैसे आ सकता है. उनकी पार्टी के नेता भी कुछ-कुछ कन्फ्यूज़न वाली स्थिति में दिखे क्योंकि किसी की जानकारी में ऐसी कोई बात थी ही नहीं ना ही कोई कुछ बोलने को तैयार था. कुछ समय पहले तक इस बात का अंदेशा भी नहीं था कि उन्हें पार्टी में दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार लाकर कुछ वरिष्ठ लोगों को दरकिनार कर देंगे. प्रशांत किशोर के पहले आर.सीपी सिंह नम्बर दो की हैसियत में थे लेकिन उन्हें किनारे लगाकर प्रशांत को न केवल जेडीयू संभालने के रास्ते पर लगा दिया गया साथ ही युवाओं को पार्टी की तरफ खींचने का सबसे दुरूह कार्य भी सौंपा गया.


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ये वही प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने अपने करिअर की शुरुआत यूनिसेफ में नौकरी से की और वहां ब्रांडिंग का जिम्मा संभाला. नीतीश कुमार से ‘राम-भरत’ मिलाप के पहले उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के चर्चित आयोजन ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की ब्रांडिंग का ज़िम्मा संभाला और इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

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इसी दौरान उनकी जान-पहचान नरेंद्र मोदी से हुई और प्रशांत किशोर ने मोदी के लिए काम करना शुरू किया लेकिन पीके की मज़बूत पहचान बनी 2014 के चुनाव से जिसमें उनके प्रचार-प्रसार के पेशेवर तरीकों ने नरेन्द्र मोदी की जीत को काफी हद तक आसान बना दिया ‘चाय पर चर्चा’और ‘थ्री-डी नरेंद्र मोदी’ के पीछे प्रशांत का ही दिमाग था. और ये दोनों अभियान काफी सफल रहे और मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. लेकिन कथित रूप से भाजपा से प्रशांत किशोर की दूरी बढ़ने पर नीतीश ने 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव का ज़िम्मा उन्हें दे दिया जिसमें महागठबंधन को ज़बरदस्त सफलता मिली और वे नीतीश के चहेते बन बैठे. नीतीश ने महागठबंधन सरकार बनने के बाद वर्ष 2016 में उन्हें अपना सलाहकार बनाया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था साथ ही बिहार विकास मिशन के शासी निकाय का सदस्य भी बनाया था.

लेकिन 15 जनवरी 2019 का वक्तव्य राजनीतिक दलों के नेताओं में कुछ को अचंभित कर गया, तो कुछ को सशंकित कर गया जिसके पीछे अलग-अलग लोगों का अलग–अलग मत है.

आशंका और भ्रम

एक बातचीत में राजद राज्यसभा सांसद मनोज झा ने तो यहां तक कहा ‘इससे पता चलता है कि नीतीश कितने बेबस और लाचार हैं अगर अपनी पार्टी में उन्हें किसी को इस तरह से रख रहे हैं, हमनें तो कभी इतिहास में ऐसा नहीं सुना अगर वो राजनैतिक फैसले दूसरी पार्टी के अध्यक्ष के कहने से ले रहे हैं तो प्रशासनिक फैसले भी उन्हीं के कहने पर ले रहे हों, हो सकता है उन्हीं के कहने पर हमारे साथ सरकार तोड़ी हो.’ झा बेशक आरोप लगा रहे हों लेकिन नीतीश कुमार ने एकबार फिर से विपक्ष को मुद्दा तो पकड़ा ही दिया है, सवाल भी वाजिब है कि आखिर इस बेबसी का कारण क्या है.


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लेकिन बिहार जेडीयू पार्टी अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह को इसमें कुछ अलग नहीं दिखता उन्होंने कहा कि ‘इसमें हर्ज क्या है हम गठबंधन में हैं, साथ में चुनाव लड़ रहे हैं किसी ने कुछ सुझाव के तौर पर कहा तो इसमें हर्ज क्या है, नीतीश कुमार जो वक्तव्य देते हैं वो गंभीर होता है और सत्य ही होता है.’

राजद नेता राजनीति प्रसाद तो प्रशांत किशोर को कोका-कोला बताते हैं जो भारत और पकिस्तान दोनों में सामान रूप से बिकता है, मतलब उन्हें जहां लाभ दिखेगा वो वहां चले जायेंगे. कुछ नेता और बड़े पत्रकार तो इस तरह की आशंका भी व्यक्त कर रहे हैं कि जेडीयू कहीं भाजपा में विलय की ओर तो अग्रसर नहीं हो रही है, वैसे अभी ये धारणा निर्मूल ही है.

एबीवीपी और युवा मोर्चा की नाराज़गी कम करने के लिए

कुछ लोगों का मानना है कि पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव को जेडीयू के पक्ष में प्रभावित करने की कोशिश के कारण वहां एबीवीपी और भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रशांत किशोर से नाराज़ थे जिस कारण प्रशांत की गाड़ी पर हमला भी हुआ था. इस गुस्से को मुख्यमंत्री का यह बयान कि अमित शाह का नाम बीच में डाल देने से उनकी नाराज़गी को कम किया जा सकता है, तब शायद विद्यार्थी परिषद् और युवा मोर्चा ये सोचकर विरोध कम कर देंगे की प्रशांत भी अपने हैं. युवा मोर्चा के एक पूर्व कार्यकर्त्ता सिद्धार्थ शम्भू के अनुसार ‘प्रशांत किशोर विद्यार्थी परिषद् और युवा मोर्चा के कुछ पुराने कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं विशेषकर उन्हें जो अपने पुराने संगठन में सक्रिय नहीं हैं, उन्हें ये बार-बार बताया जा रहा है की जेडीयू के संगठन में उलट-फेर होनेवाला है आप जुड़िये और काम कीजिये और बहुत सारे लोग शामिल हो भी रहे हैं. भारतीय जनता युवा मोर्चा और एबीवीपी के पुराने कार्यकर्ताओं को जेडीयू कार्यालय से फोन पर आमंत्रित भी किया जाता है’ इस कारण विद्यार्थी परिषद् की नाराज़गी बढ़ी हो सकती है जिसकी क्षतिपूर्ति के लिए ऐसा कहा गया होगा कि प्रशांत किशोर के प्रति इन दोनों संगठनों की नाराज़गी कुछ कम हो सके. वैसे राजनीति में क्रिकेट से भी ज़्यादा कुछ भी होने की संभावना हो सकती है.

नीतीश कुमार को प्रभावहीनता से उबारने के लिए

नीतीश कुमार के पहले और दूसरे कार्यकाल 2005 से 2014 तक के उनके शासनकाल को बिहार की राजनीति में नीतिगत निर्णयों और सुधार के कार्यकाल के रूप में देखा जा सकता है. बिहार में महिलाओं को स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण, प्राथमिक शिक्षण संस्थाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण के साथ-साथ अन्य सरकारी सेवाओं में 35 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. लड़कियों को विद्यालय जाने के लिए देश में सबसे पहले साईकिल देने का काम नीतीश कुमार ने ही शुरू किया जिससे बिहार की महिला शिक्षा की स्थिति ज़बरदस्त ढंग से सुधरी और इसके राजनीतिक और सामाजिक लाभ को देखते हुए इसे अन्य राज्यों ने भी हाथों हाथ लिया.

लेकिन जीतनराम माझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अभी तक बिहार में उथल-पुथल का दौर समाप्त नहीं हुआ है. 2005 के बाद जैसी प्रशासनिक दक्षता नीतीश कुमार ने दिखाई थी अब वह सपने जैसा है. अपराध की हज़ारों घटनाएं रोज़ हो रही हैं, हत्या-डकैती, बलात्कार, गैंग रेप, भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहे हैं.

प्रशांत का ब्राह्मण होना जदयू के लिए साबित होगा फायदे का सौदा

बिहार में बड़ा नेता होने के लिए आपके पीछे जातिय गोलबंदी होना भी आवश्यक है वर्ना राजनीति नहीं चलेगी, नीतीश कुमार कुर्मी समाज से आते है जो दो फीसदी से भी कम हैं बिहार में, अगड़े में उनके साथ भूमिहार हैं लेकिन प्रशांत किशोर ब्राह्मण हैं साथ ही अच्छे राजनीतिक रणनीतिकार हैं. नीतीश कुमार के इस फैसले से ब्राह्मण वोट बैंक जिसका कांग्रेस की ओर खिसकने का डर था उसकी गति धीमी हो जाएगी, ब्राह्मण बीजेपी की तरफ भी उन्मुख हैं लेकिन नितीश कुमार के इस कदम से पढ़े-लिखे और संभ्रांत ब्राह्मण काफी संख्या में इधर उन्मुख हो सकते हैं.

पार्टी को नए सिरे से खड़ा करना और कैडर बेस्ड बनाना. बिहार में भाजपा और राजद ही कैडर बेस्ड पार्टी है और थोड़ा बहुत वामपंथी पार्टियां भी, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) कैडर से कोसों दूर है. इस मामले में प्रशांत किशोर के रणनीतिक हुनर का लाभ नीतीश कुमार लेना चाहते हैं, इस कारण प्रशांत किशोर को पार्टी पदानुक्रम में दूसरे स्थान पर उन्होंने रखा है, पीके से पहले दूसरे नम्बर पर आर सीपी सिंह थे जिनके नाम को तेजस्वी यादव ‘आरसीपी टैक्स’ से विभूषित करते रहते हैं जिससे नीतीश कुमार पीछा भी छुड़ाना चाहते थे.

प्रशांत के पीछे गैर राजनीतिक व्यक्ति को लाना

प्रशांत को लाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण किसी गैर राजनितिक व्यक्ति को लाना भी है. जिससे पार्टी में किसी तरह का असंतोष न हो, आर सीपी सिंह भी राज्यसभा में आने से पहले राजनीति में नहीं थे बल्कि प्रशासनिक अधिकारी थे संसद में पार्टी का काम वही देखते हैं. लेकिन नीतीश कुमार की यह स्टाईल रहा है कि वो बहुत लम्बे समय तक अपने सामने किसी को पांव जमाने नहीं देते. आरसीपी के कारण कैडर बढ़ने की बजाय घटने लगा था लेकिन प्रशांत के आने के बाद जेडीयू के युवा कार्यकर्ताओं में एक स्फूर्ती आई है, नीतीश के बाद पार्टी का काम प्रशांत किशोर ही देख रहे हैं. पार्टी के प्रदेश सचिव (युवा जदयू) अजीत भगत जैसे कार्यकर्त्ता पीके के पार्टी में आने से काफी खुश हैं उनका कहना है, ‘प्रशांत किशोर पार्टी को एक लाख सक्रीय सदस्य से जोड़ना चाहते हैं, एक सक्रीय सदस्य 250 सदस्यों को जोड़ेगा अर्थात पच्चीस लाख कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ने का लक्ष्य रखा है जो काफी बड़ा है और यह किसी और के बूते की बात नहीं है. यह लक्ष्य 2019 के अंत तक का है.’

अभी प्रशांत पटना में बैठकर ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलते हैं लेकिन कुछ दूसरे कार्यकर्ताओं का कहना है कि पीके केवल राजनीतिक मज़दूर तैयार कर रहे हैं अभी तक एक भी शिविर नहीं लगाया गया है जिसमें कार्यकर्ताओं को पार्टी के विचारधारात्मक मुद्दों से परिचय कराया गया हो क्योंकि नए सदस्यों को समाजवादी धारा के राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव और कर्पूरी ठाकुर जैसों के बारे में ज़्यादा पता भी नहीं है. शायद पीके की कार्यशैली कुछ अलग हैं वो कार्यकर्ताओं को पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा जनता के मुख्य मांगों को कैसे पूरा किया जाय उसपर काम कर रहे हों साथ ही चुनावी वैतरणी कैसे पार लगे इसकी रणनीति क्या हो इसपर ज़्यादा ध्यान दे रहे हों.

स्थिति ऐसी है कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी में ठीक उसी तरह किसी भी सवाल से परे हैं जैसे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा में. जहां कोई पार्टी में रहते हुए उनपर सवाल उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता इसलिए इसपर ज़्यादा हंगामा अभी तक मचा नहीं है, लेकिन इसका असर लोकसभा चुनावों पर होगा जहां कई तरह की आशंकाएं जन्म लेंगी. भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस भी कारण या रणनीति से ये वक्तव्य दिया हो लेकिन इतना तो सिद्ध हो गया कि दुबारा भाजपा से जुड़ने के बाद वो निस्तेज हुए हैं उनका राजनीतिक रौब घटा है और उनकी प्रशासनिक प्रतिबद्धता डगमगा गई है.

(लेखक पत्रकार और मीडिया प्रशिक्षक हैं)

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