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Sunday, 29 September, 2024
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भारत के 30 प्रतिशत से अधिक जिले जंगल की भीषण आग के लिहाज से संवेदनशील : अध्ययन

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नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) भारत के 30 प्रतिशत से अधिक जिले जंगल में भीषण आग लगने के लिहाज से संवेदनशील हैं। बृहस्पतिवार को जारी एक अध्ययन में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में जंगल की आग के मामलों में 10 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।

‘‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’’ (सीईईडब्ल्यू) द्वारा किए गए अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पिछले महीने अकेले उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में जंगल की भीषण आग की सूचना मिली थी।

सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी पाया गया कि आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र के जंगलों में जलवायु में तेजी से बदलाव के कारण भीषण आग लगने की आशंका प्रबल है।

सीईईडब्ल्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणाभ घोष के मुताबिक, “वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ, दुनिया भर में जंगल में भीषण आग की घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर शुष्क मौसम वाले क्षेत्रों में। पिछले दशक में, देश भर में जंगल में आग लगने की घटनाओं में तेज वृद्धि हुई है। इनमें से कुछ का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।’’

अध्ययन में यह भी पाया गया कि पिछले दो दशकों में, जंगल में आग की कुल घटनाओं में से 89 प्रतिशत से अधिक घटनाएं उन जिलों में दर्ज की गई हैं जो परंपरागत रूप से सूखा के लिहाज से संवेदनशील हैं या जहां मौसम में बदलाव के रुझान देखे गए हैं, यानी जहां पहले बाढ़ आती थी वहां सूखा पड़ रहा है या इसके विपरीत स्थिति है।

कंधमाल (ओडिशा), श्योपुर (मध्य प्रदेश), उधम सिंह नगर (उत्तराखंड), और पूर्वी गोदावरी (आंध्र प्रदेश) जंगल की आग वाले कुछ प्रमुख जिले हैं जहां बाढ़ से सूखे की ओर एक अदला-बदली की प्रवृत्ति दिख रही है।

सीईईडब्ल्यू के प्रोग्राम प्रमुख, अविनाश मोहंती कहते हैं, “पिछले दो दशकों में जंगल में आग लगने की घटनाओं में तेज वृद्धि, इसके प्रबंधन के लिए हमारे दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण सुधार की मांग करती हैं। सरिस्का वन रिजर्व में हालिया घटना, एक सप्ताह में चौथी ऐसी घटना है, जो दिखाती है कि बदलते परिदृश्य में जंगल की आग का प्रबंधन क्यों एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है।”

उन्होंने कहा, “आगे बढ़ते हुए, हमें जंगल की आग को एक प्राकृतिक खतरे के रूप में पहचानना चाहिए और शमन से संबंधित गतिविधियों के लिए अधिक धन निर्धारित करना चाहिए। वन भूमि की बहाली और जंगल की आग का कुशल शमन भी खाद्य प्रणालियों और पारंपरिक रूप से जंगलों पर निर्भर समुदायों की आजीविका की रक्षा करने में मदद कर सकता है।”

भाषा

प्रशांत मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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