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Friday, 19 April, 2024
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असम के लैलापुर में रहने वाले बोले- मिजो लोगों ने हमारे खेत तहस-नहस किए और घरों को जला दिया, हम डर के साये में जी रहे

सीमा पर असम की ओर बसे और राजमार्ग पर छोटी-छोटी दुकानें चलाने वाले ये परिवार लगातार इस डर के साये में जी रहे हैं कि तनाव की यह स्थिति ‘कभी भी बिगड़’ सकती है, जिससे उन्हें अपने घरों को छोड़ने और यहां से भागने को मजबूर होना पड़ेगा.

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लैलापुर, वैरेंगटे: राष्ट्रीय राजमार्ग 306 पर चलते हुए लैलापुर-वैरेंगट सीमा, जहां 26 जुलाई को असम और मिजोरम पुलिस बलों के बीच हिंसक झड़प में असम के छह पुलिसकर्मी मारे गए थे, से बमुश्किल एक किलोमीटर दूर बांस की छोटी झोपड़ियां नजर आती हैं जिसमें कई बड़े परिवार रहते हैं.

सीमा पर असम की ओर बसे और राजमार्ग पर छोटी-छोटी दुकानें चलाने वाले ये परिवार लगातार इस डर के साये में जी रहे हैं कि तनाव की यह स्थिति ‘कभी भी बिगड़’ सकती है, जिससे उन्हें अपने घरों को छोड़ने और यहां से भागने को मजबूर होना पड़ेगा.

उनका आरोप है कि मिजोरम के लोगों ने न केवल ‘उनकी जमीन पर अतिक्रमण’ किया, बल्कि ‘कई जगहों पर उनकी पान की खेती को नष्ट कर दिया, ‘उनके घरों को जला दिया’ और कई मौकों पर ‘घर के अंदर घुसकर उन्हें पीटा भी है.’

यहां के एक निवासी अबीबुर रहमान ने कहा, ‘वे कहते हैं कि यह उनकी जमीन है लेकिन मैं यहीं पैदा हुआ था. जब मैं छोटा था, मिजोरम पुलिस चौकी सीमा से बहुत दूर थी जहां वे अभी बैठे हैं. उन्हीं लोगों ने आगे आकर हमारी जमीन कब्जाई है.’
उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र में एक ऑटो स्टैंड था जिसे असम में लैलापुर ऑटो स्टैंड के नाम से जाना जाता था. अब वे कहते हैं कि यह वैरेंगटे ऑटो स्टैंड है. यह कब बन गया?’

क्षेत्र के एक मजदूर देबू देवबर्मन और उनकी बहन दीपाली राय (उनके पीछे खड़ी) | फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

क्षेत्र के एक मजदूर देबू देवबर्मन, जिनका परिवार ‘छोर पर’ रहता है, ने कहा कि पिछले दो वर्षों में चीजें बदतर हो गई हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम इस सीमा पर बिगड़ते हालात से लगातार आशंकित रहते हैं. हम इसी डर के साये में जीते रहते हैं कि कब मिजो लोग आ जाए और हमारी पिटाई करने लगें, और हमें अपने घर खाली करने पड़ जाएं. वे क्रूर हैं और हथियारों से लैस रखते हैं. पिछले साल, उन्होंने हमारी पान की पूरी खेती को यह कहते हुए नष्ट कर दिया कि वह जमीन उनकी है और हम विरोध भी नहीं कर पाए.’

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उन्होंने कहा, ‘अब तो हमें जरा-सी हलचल सुनाई देती है तो हम अपने पास मौजूद थोड़े-बहुत कीमती सामान को तुरंत पैक करना शुरू कर देते हैं, यह सोचकर कि हमें किसी भी समय यह जगह खाली करनी पड़ सकती है. आप हर दिन इसी डर के साथ जीने की जरा कल्पना करें.’

26 जुलाई की झड़प ने इस डर को और बढ़ा दिया है. एनएच 306 पर एक ढाबा चलाने वाले लैलापुर के निवासी देबीलाल थापा का कहना है, ‘वे जब पुलिस पर गोलियां चलाने से नहीं कतराते तो फिर हम कौन हैं? वे हमें क्यों बख्शेंगे? इसके लिए एक राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है, अन्यथा हम सभी भय के साये में जीते रहेंगे.

‘बचाव का एक तरीका निकाला’

सीमा के नजदीक बसे असम के निवासियों के मुताबिक, उन्होंने आपात स्थिति में बचाव के लिए एक रास्ता निकाला है. इन लोगों ने बताया कि यह सब अक्टूबर 2020 में हुई एक झड़प के दौरान मिजोरम के अराजक तत्वों द्वारा कथित तौर पर उनकी 20 झोपड़ियां जलाए जाने के बाद शुरू हुआ.

इसी हिंसा के बाद असम और मिजोरम पुलिस दोनों ने विवादित क्षेत्र में चौकियां बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया. सीआरपीएफ के दो कैंप इस सीमा पर बफर जोन का काम करते हैं.

स्थानीय लोगों के मुताबिक, अब झड़प की थोड़ी-सी भी भनक लगते ही महिलाएं झोपड़ियां खाली करके लैलापुर में अपने रिश्तेदारों के घर चली जाती हैं, जबकि पुरुष पीछे रह जाते हैं. लैलापुर में जिनके कोई रिश्तेदार नहीं हैं, वे इलाके में बने सेना के शिविरों चले जाते हैं.

देवबर्मन ने कहा, ‘जैसे ही गोलियां चलने की आवाज सुनते हैं—अकेले इस साल ही चार-पांच ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं—हम महिलाओं को घर खाली करने को कह देते हैं और पुरुष सदस्य ही यहां रह जाते हैं. वृद्ध पुरुषों को सैन्य शिविरों में जाकर शरण लेने को कहा जाता है. हम बहुत संकट में हैं और डरे हुए हैं. हमें नहीं पता कि हमें कहां जाना चाहिए और यह सब कब खत्म होगा.’


यह भी पढ़ें : आखिर मिजोरम और असम क्यों भिड़ गए, इन पांच सवालों में छिपा है इसका राज


देवबर्मन की बहन दीपाली राय ने कहा, ‘डर तो लगता है, पर अपना घर छोड़कर कहां जाएंगे? अपनी जमीन कोई छोड़ता है क्या?’
मनीरुद्दीन, जिसका कहना है कि झड़पों के दौरान उसका घर जला दिया गया, के छह बच्चे हैं. अपना घर जला दिए जाने के बाद वह पिछले एक साल से पड़ोसी के घर में रह रहा है.

उसने कहा, ‘मेरे सभी दस्तावेज तभी नष्ट हो गए थे. मिजो लोगों ने मेरा घर जलाकर राख कर दिया. अब मैं अपने बच्चों का यहां किसी स्कूल में दाखिला भी नहीं करा सकता. मै कहां जाऊं?’

अबीबुर रहमान, जिसका घर भी झड़पों की भेंट चढ़ गया था, ने कहा कि उसे अभी भी ‘सपनों में गोलियों की आवाज सुनाई देती है.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले दो सालों से दोनों राज्यों के बलों के बीच झड़प की घटनाएं बढ़ी हैं कभी-कभी तो हमें लगता है कि हम इनकी गोलीबारी की चपेट में आकर मारे जाएंगे. मैं अभी भी गोलियों की आवाज सुन सकता हूं. हम यहां किनारे पर रह रहे हैं, कोई नहीं जानता कि हालात कब और बिगड़ जाएं.’

‘मिजोरम के लोगों ने हमें पीटा, हमारे वाहनों पर पत्थर फेंके’

दोनों राज्यों के बीच दुश्मनी साफ नजर आती है. असम स्थित लैलापुर के निवासियों की तरफ से जहां यह आरोप लगाया जाता है कि उन्हें मिजोरम के लोगों द्वारा ‘पीटा और परेशान’ किया जा रहा है, वहीं सीमा के दूसरी ओर के लोग असम पुलिस पर उन्हें ‘धमकाने’ का आरोप लगाते हैं.

ट्रक चालक अजीमुद्दीन, जो अक्सर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए लैलापुर से आइजोल जाता है, के वाहन पर मिजोरम की नंबर प्लेट लगी हुई है, भले ही उसने अपना ट्रक असम में खरीदा था. कारण पूछने पर वह मुस्कुरा दिया.

उसका कहना था, ‘मिजोरम के लोग असम का नंबर देखते ही वाहन पर पथराव कर देते हैं. मैं कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था. इसलिए मैंने इसे मिजोरम में ही पंजीकृत कराया. कई अन्य ट्रक चालकों ने भी इसी तरह की शिकायत की.

लैलापुर के एक ड्राइवर आनंद बहादुर ने कहा, ‘हमें क्यों मारा? हम तो उनके लिए ही जरूरी सामान पहुंचा रहे हैं, और हम पर अभी भी हमले हो रहे हैं. वे इस आर्थिक नाकेबंदी के ही लायक हैं. उन्हें हमें और असम को अधिक महत्व देना होगा.’

एक अन्य ड्राइवर अब्दुल कलाम ने शिकायत की कि असम से आने वालों को पेट्रोल या अन्य आवश्यक चीजें भी नहीं दी जाती हैं.
उन्होंने बताया, ‘पिछले हफ्ते मेरे ट्रक में पेट्रोल खत्म हो गया और मुझे असम लौटना था. इसलिए, मैं टैंक भराने के लिए इलाके के एक पेट्रोल पंप पर पहुंचा. मेरे ट्रक पर असम का नंबर देखते ही पेट्रोल पंप पर मौजूद एक व्यक्ति ने न केवल मुझे पेट्रोल देने से मना कर दिया, बल्कि मुझे काफी बातें भी सुनाईं और पीटने की धमकी तक देने लगा.’

एक अन्य ड्राइवर ताजुद्दीन ने वैरेंगटे के दुकानदारों पर उसे पानी देने से इनकार करने का आरोप लगाया. उसने बताया, ‘इस झड़प से ठीक एक दिन पहले मैं कुछ सामान देने के लिए दूसरी तरफ गया था. मुझे प्यास लगी तो मैं एक दुकान पर पानी की बोतल और बिस्कुट खरीदने चला गया, लेकिन उन्होंने मुझे देने से मना कर दिया.
हालांकि, मिजोरम के लोगों ने इन आरोपों से इनकार किया है.

वैरेंगटे के एक निवासी लालमुआनपुइया ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक समुदाय के तौर पर हम दूसरों का बहुत ज्यादा ख्याल रखने वालों में शामिल हैं. हम तब तक किसी से कुछ नहीं कहते, जब तक कि हमें उकसाया न जाए. वे हमारी पुलिस द्वारा उन्हें परेशान किए जाने की बात कहते हैं और हमारे उन लोगों का क्या जो असम जाते हैं? पिछले हफ्ते असम पुलिस द्वारा अकारण एक जोड़े को बेरहमी से पीटा गया था.’

उन्होंने कहा, ‘असम पुलिस हमारे खेतों में घुस जाती है, हमारी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करती है, हमारे खेतों को तहस-नहस कर देती है और हमसे चुप रहने की उम्मीद की जाती है.’

वैरेंगटे के एक निवासी लालनुनपुइया ने कहा कि कोविड के दौरान असम ने मिजोरम से टीके भी लिए और राज्य ने कई ट्रक ड्राइवरों को भोजन-पानी आदि मुहैया कराकर मदद भी की, जो लॉकडाउन के कारण यहां फंस गए थे.
सीमा पर मिजोरम की ओर के लोगों का कहना है कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है.

इस इलाके में दुकान चलाने वाली बेबी वनलालजारी ने कहा, ‘हमें किस बात से डरना चाहिए? अगर सीमा पर कुछ होता है तो हम अपने पुलिस बल की मदद के लिए वहां जाते हैं. वे इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं, सभी नागरिक उनके साथ हैं. चाहे पुरुष हो या महिला, युवा हो या बूढ़ा, हम सब अपनी भूमि के लिए अपनी जान दे सकते हैं.’

इलाके की ही एक अन्य निवासी जेनी ने कहा कि बातचीत से ही समाधान निकाला जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘कोई भी लड़ाई नहीं चाहता. हम सब शांति चाहते हैं. हम दोनों ही भारत का हिस्सा हैं लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि वे हमें और पीछे नहीं धकेल सकते. अगर यथास्थिति बनाए रखी जाती है, तो कभी लड़ाई नहीं होगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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