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Thursday, 28 March, 2024
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IIT में ही मेडिसिन कोर्स? UGC नियमों में खास डोमेन वाले संस्थानों को धीरे-धीरे खत्म करने का प्रस्ताव

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरफ से शनिवार को जारी ड्राफ्ट गाइडलाइन मौजूदा उच्च शिक्षा प्रणाली को व्यापक तौर पर बदलने की कोशिश करती नजर आती है.

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नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरफ से शनिवार को जारी ड्राफ्ट गाइडलाइन में सुझाव दिया गया है कि स्टैंडअलोन और किसी खास डोमेन वाले संस्थानों को चरणबद्ध तरीके से खत्म किया जाना चाहिए और इसकी जगह बहु-विषयक संस्थानों के लिए रास्ता खोलना चाहिए.

इसका सीधा-सा मतलब है कि मेडिसिन, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट जैसे एकल विषयक कोर्स की पेशकश करने वाले संस्थानों की जगह ऐसे संस्थान होने चाहिए जहां सभी विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाते हों.

मौजूदा उच्च शिक्षा प्रणाली को बदलने की संभावनाएं तलाशते हुए इस ड्राफ्ट गाइडलाइन में स्वायत्त डिग्री प्रदान करने वाले कॉलेजों का सुझाव भी दिया गया है. मौजूदा समय में अधिकांश कॉलेज किसी न किसी यूनिवर्सिटी से जुड़े होते हैं, जो उन्हें डिग्री प्रदान करने का अधिकार देते हैं. लेकिन नए नियमों में इस प्रावधान को बदलने का प्रस्ताव रखा गया है.

शनिवार को जारी ड्राफ्ट गाइडलाइन का शीर्षक ही ‘उच्च शिक्षा संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों में बदलना’ रखा गया है. इन गाइडलाइन पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया मांगी गई है. आयोग ने इस पर राय मांगने के लिए 20 मार्च तक की समयसीमा तय की है.

देश के कई उच्च शिक्षा संस्थानों ने पहले ही बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया है. उदाहरण के तौर पर कुछ पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में अब इंजीनियरिंग के साथ-साथ प्रबंधन और मानविकी विभाग भी है.
शिव नादर यूनिवर्सिटी और ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी जैसे कई निजी विश्वविद्यालय भी बहु-विषयक हैं. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) ने भी एक इंजीनियरिंग विभाग खोला है और यहां अब एक मेडिकल कॉलेज शुरू करने पर भी विचार किया जा रहा है.

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गाइडलाइन में कहा गया है, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बहु-विषयक विश्वविद्यालयों की स्थापना और उसे जारी रखने की संस्कृति तेजी से बढ़ रही है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान और विकास, इनोवेशन और इनक्यूबेशन पर ज्यादा फोकस करके उत्पादकता को अधिकतम बढ़ाना है.’\

दस्तावेज में आगे कहा गया है, ‘इसे देखते हुए उच्च शिक्षा प्रणाली (एचईएस) के तहत स्टैंड-अलोन, फ्रेगमेंटेड और डोमेन-आधारित उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना और इसके बजाय एचईआई क्लस्टर और बहु-विषयक एचईआई बनाना उचित नजर आता है.’

दोहरी-प्रमुख डिग्री? दो अलग-अलग स्ट्रीम में दोहरी डिग्री?

मसौदा दिशानिर्देशों से पता चलता है कि समग्र उच्च शिक्षा क्षेत्र में पेशेवर और व्यावसायिक शिक्षा को जोड़कर एक एकीकृत व्यवस्था करने का प्रस्ताव किया गया है.

इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि बहु-विषयक व्यवस्था के लिए कुछ आवश्यक विभागों को खोलने की जरूरत होगी, जिनमें लैंग्वेज, साहित्य, संगीत, दर्शन, इंडोलॉजी, कला, नृत्य, रंगमंच, शिक्षा, गणित, सांख्यिकी, प्योर एंड एप्लाइड साइंस, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, खेल, अनुवाद और व्याख्या आदि शामिल हैं.

यह मसौदा तीन प्रकार के संस्थानों की जरूरत बताता है—बहु-विषयक अनुसंधान आधारित विश्वविद्यालय, बहु-विषयक शिक्षण आधारित विश्वविद्यालय और डिग्री प्रदान करने वाले बहु-विषयक स्वायत्त कॉलेज.

दिशानिर्देश उन तरीकों के बारे में भी बताते हैं जिनमें कोई भी दो संस्थान दो अलग-अलग डिग्रियां प्रदान करने या फिर दो अलग-अलग स्ट्रीम में दोहरी-डिग्री प्रदान करने के लिए कैसे साझेधारी कर सकते हैं.

दोहरी-प्रमुख डिग्री के संदर्भ में दिशानिर्देश कहते हैं, ‘सहयोगी व्यवस्था के तहत कोई सिंगल-स्ट्रीम संस्थान अपने प्रोग्राम का दायरा बढ़ाने के लिए नजदीकी बहु-विषयक संस्थान की सहायता ले सकता है. इससे वह अपने प्रोग्राम को बहु-विषयक बना सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, एक बी.एड. कोर्स को बीए के साथ जोड़कर इसे एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (आईटीईपी) और बीए-बीएड की साझी डिग्री का रूप दिया जा सकता है.

एक अन्य व्यवस्था में, किसी एक संस्थान में नामांकन कराने वाला छात्र पहली डिग्री मेजबान संस्थान में और दूसरी डिग्री सहयोगी संस्थान से ले सकता है जिससे उसे दोहरी डिग्री मिल सकती है. उदाहरण के तौर पर, दो संस्थान बीएससी और एमबीए की दोहरी डिग्री संबंधी प्रोग्राम की पेशकश के लिए साझेदारी कर सकते हैं.

दिशानिर्देश में आगे कहा गया है, ‘विश्वविद्यालय, राज्य सरकार और/या नियामक निकायों की मंजूरी के साथ भागीदार संस्थान दोहरी डिग्री की पेशकश के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, जिसमें सीटों की संख्या, एक संस्थान से दूसरे संस्थान में जाने और डिग्री प्रदान करने के संबंधी सभी पहलुओं को शामिल किया गया हो.

इसके अतिरिक्त, दिशानिर्देश में उन कॉलेजों का क्लस्टर बनाने का सुझाव भी दिया गया है जहां बहुत ज्यादा नामांकन नहीं होते.

इसमें कहा गया है, ‘एक ही परिसर में या आसपास चल रहे मौजूदा कॉलेज एक क्लस्टर बना सकते हैं. इससे ये सुनिश्चित हो सकेगा कि कम दाखिले और कम संसाधन वाले कॉलेज बहु-विषयक कार्यक्रमों की पेशकश कर पाएं और सभी को बेहतर सुविधाओं का लाभ मिल सके.

दस्तावेज में कहा गया है कि छात्र आंशिक रूप से मूल संस्थान के प्रोग्राम की पढ़ाई कर सकते हैं और आंशिक रूप से क्लस्टर में भागीदार संस्थान (संस्थानों) में पढ़ सकते हैं.

दिशानिर्देशों में कहा गया है कि एक समय के बाद ‘ऐसी परिकल्पना है कि प्रत्येक कॉलेज या तो एक स्वायत्त डिग्री देने वाले कॉलेज के तौर पर विकसित होगा या किसी विश्वविद्यालय का एक कांस्टीट्यूंट कॉलेज बन जाएगा. बाद वाले मामले में यह पूरी तरह से यूनिवर्सिटी का एक हिस्सा होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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