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Saturday, 20 April, 2024
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नर्स बनना चाहती है शक्ति मिल रेप पीड़िता, लड़नी पड़ रही है मुआवजे की लंबी लड़ाई

2013 के शक्ति मिल्स गैंगरेप मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया था और इसे फास्ट-ट्रैक कोर्ट में भेज दिया गया. लेकिन इसमें मामले में मुआवजे का दावा करने के लिए 'फास्ट' एक लोचदार और सापेक्ष शब्द बना हुआ है.

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नौ साल पहले, जब भी शक्ति मिल्स गैंगरेप की पीड़िता अदालत में पेश होती थी तो मुंबई पुलिस उसे बुर्के में ढक देती थी और पिछले दरवाजे से अंदर ले जाती थी. वे उसकी पहचान को टेलीविजन चैनलों पर सबके सामने पेश किये जाने से बचाना चाहते थे.

आज के दिन में उस पीड़िता ने उस पहचान से निकलने का एक और बेहतर तरीका ढूंढ लिया है. वह नासिक के एक नर्सिंग डिग्री कॉलेज में दाखिला लेना चाहती है. इसके लिए निर्धारित 15 जुलाई की अंतिम समय सीमा नजदीक आ रही है और उसे 2 लाख रुपये का भुगतान करना है. लेकिन कोर्ट द्वारा उसके लिए तय किया गया 5 लाख रुपये का मुआवजा उसे मिलने में काफी समय ले रहा है.

यह पैसा अदालती लालफीताशाही, तबादलों और कोर्ट रूम के ‘लंच वाले घंटे’ के जंजाल में अटका पड़ा है.

मुआवजे के भुगतान में हो रही इस देरी के बारे में नर्सिंग की जुबान में बोलते हुए उसने कहा, ‘घाव का फ़ौरन इलाज किया जाना चाहिए, न कि इसके सड़ जाने के बाद.’ वह पहले से ही एक सहायक नर्स और दाई (ऑक्जिलरी नर्स एंड मिडवाइफ- एएनएम) बनने के लिए अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी है. कोविड की दोनों लहरों के दौरान, जब अस्पतालों को चिकित्सा कर्मचारियों की भारी आवश्यकता थी, उसने एक अस्थायी नर्सिंग सहायक के रूप में भी काम किया था.

बता दें कि साल 2013 में शक्ति मिल्स के परित्यक्त खंडहर में दो युवतियों-एक किशोरी और 20 के आस-पास की आयु वाली एक फोटो जर्नलिस्ट- के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. हालांकि, एक पत्रिका के साथ छाया पत्रकार (फोटो जर्नलिस्ट) के रूप में काम करने वाली युवती के ऊपर 22 अगस्त को किये गए यौन हमले ने पूरे देश का ध्यान खींचा, मगर इस मामले में एक किशोरी के साथ भी एक महीने से भी कम समय पहले, यानि कि 31 जुलाई 2013 को, ठीक उसी स्थान पर बलात्कार किया गया था.

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अब 26 साल की हो चुकी उस किशोरी आकांक्षा (बदला हुआ नाम) ने अपने लिए एक नर्स के रूप में दूसरों की मदद करने का मकसद चुना है. लेकिन, इससे पहले उसे पुलिस, अदालतों और मुआवजे से जुड़े वकीलों की भूलभुलैया से सफलतापूर्वक पार पाना होगा.

मुंबई का शक्ति मिल परिसर, जहां 2013 में आकांक्षा के साथ बलात्कार किया गया था | ज्योति यादव /दिप्रिंट

मुआवजे के लिए किया है अंतहीन इंतजार

मुंबई की एक उमस भरी दुपहरी में आकांक्षा अपनी मां के साथ मुंबई सत्र न्यायालय (सेशन कोर्ट) के कमरा नंबर 20 के बाहर एक बेंच पर बैठी हुई है. वे एक लम्बे बरसात वाले के दिन के लिए पूरी तरह से तैयार होकर और एक छाता, वड़ा पाव, एक पानी की बोतल और उसके मामले में अदालत के आदेश की एक फाइल से लैस होकर आईं हैं. वह उस कमरे की ओर इशारा करती है जहां उसने अब से नौ साल पहले अपनी पहली गवाही दी थी. लेकिन आज उसका धैर्य कमजोर होता जा रहा है. दोपहर के भोजन अवकाश का समय बहुत लंबा खिंच रहा है.

वह सहायकों से पूछती है, ‘यह कब खत्म होगा?’

शक्ति मिल गैंगरेप कांड ने राष्ट्रीय स्तर पर उसी तरह से लोगों का ध्यान आकर्षित किया था, जैसे कि दिल्ली में हुए 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद हुआ था, और फिर इसे फास्ट-ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था. लेकिन यहां ‘फास्ट’ एक लोचदार और सापेक्ष शब्द है.

वास्तव में, यह सब कभी न खत्म होते दिखने वाले लंच के घंटे के बारे में नहीं है. पिछले नौ वर्षों में, आकांक्षा का पूरा जीवन ही पहचान से परे हो गया है.

अपनी आपबीती को कई बार दोहराना, आक्रामक जांच की प्रक्रिया से गुजरना, रोज-ब-रोज की सुनवाई के लिए हाजिर होना, दो साल का ट्रॉमा काउंसलिंग सत्र पूरा करना, अपनी स्कूल की परीक्षा पूरी करने में आये तीन साल के अंतराल पर नियंत्रण पाना, अस्थायी रूप से पड़ोसी के यौन उत्पीड़न से बचना और छह महीने का ऑक्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफरी (एएनएम) कोर्स करने के साथ नर्सिंग के पेशे में अपने मकसद का पता लगाना – इस सब के दौरान आकांक्षा ने इंतजार का असहनीय बोझ महसूस किया है. अब तो उसे लंच का यह अतिरिक्त समय भी चुभने लगा है.

वह कहती है, ‘मैं बस यहां से भाग जाना चाहती हूँ और लोगों के दर्द को कम करके अपने आप के लिए राहत पाना चाहती हूं.’

लेकिन उसकी शिक्षा और करियर अब उस मुआवजे की राशि पर निर्भर करता है जिसके बारे में उससे वायदा किया गया था.

दिसंबर 2021 में जब से उसे खुद को दिया जाने वाले मुआवजे के बारे में अपराध शाखा से फोन कॉल आया था, तभी से उसने अपने भविष्य की रूपरेखा बनानी शुरू कर दी थी. उसने अदालत में सुनवाई के कई सत्रों में भाग लेने के दौरान ही जेनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी (जीएनएम) कॉलेजों के बारे में खोज की और प्रवेश परीक्षाओं के लिए फॉर्म भरे.

उसके साथ हुए सामूहिक बलात्कार के एक साल से भी कम समय के बाद, मुंबई की एक सत्र अदालत, जो शक्ति मिल के दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ कर रही थी, ने मार्च 2014 में पांच लोगों को दोषी ठहराया, जिनमें से तीन को मौत की सजा दी गई थी. लेकिन इसके सात साल बाद, नवंबर 2021 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसके बलात्कारियों द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील किये जाने के बाद उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.


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लालफीताशाही से जारी है जंग

आकांक्षा के लिए, इसका मतलब उन घावों का फिर से हरा हो जाना था जो बड़ी मुश्किल से ठीक हुए थे. लेकिन, अपने बलात्कारियों की किस्मत पर ध्यान देने के बजाय, उसने मुआवजे की उस राशि के ऊपर जोर लगाना शुरु किया जो उसके लिए तय किया गया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपराधियों की मौत की सजा को रद्द करते हुए राज्य को सूचित किया था कि सामूहिक बलात्कार की यह पीड़िता राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा तय की गयी योजना के तहत 10 लाख रुपये के मुआवजे की हकदार है. इसने आगे यह भी कहा था कि वह (पीड़िता) महाराष्ट्र राज्य पीड़ित योजना के तहत भी मुआवजे की हकदार है.

साथ ही, उच्च अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि उसके फैसले को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को भेजा जाए और साथ ही यह भी स्पष्ट किया था कि वे पीड़िता को सूचित करें और फैसले की प्रति के प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर उसे देय राशि का भुगतान करें. आकांक्षा को दिसंबर 2021 में क्राइम ब्रांच से इस वारे में एक फोन जरूर आया था, जिसमें बताया गया था कि उसे मुआवजा मिलेगा, लेकिन अभी तक उसे कोई पैसे नहीं मिले हैं. दरअसल, उसे देय रकम अब आधी कर के 5 लाख रुपये कर दी गई है.

फरवरी 2022 में, मुंबई डिस्ट्रिक्ट बोर्ड फॉर क्रिमिनल इंजरी रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन ने प्रिंसिपल सेशन कोर्ट जज (प्रधान सत्र न्यायालय के न्यायाधीश) के साथ हुई एक बैठक के बाद मुआवजे की राशि को आधा करने का फैसला किया था.

मगर वह राशि भी उसे अब तक नहीं मिली है. उसने कहा, ‘मैं यह पैसा मांगने के लिए कभी अदालत के पास नहीं गयी. लेकिन यह अदालत है जिसने कहा, मैं इस (मुआवजे के) राशि की हकदार हूं, और तभी मैंने फिर से सपने देखना शुरू कर दिया जो सम्मान से भरे एक नर्सिंग वाले जीवन का है.’

मार्च में, उसने सत्र अदालत में अपने बैंक खाते का विवरण प्रस्तुत किया. अब जुलाई आ गया है. लगभग सात महीने बीत गए हैं और सात अदालती मुलाक़ातें हो चुकी हैं, लेकिन अदालती सहायक ने उसे एक हफ्ते और इंतज़ार करने के लिए कहा था. यह 27 जून की बात थी. उसके बाद से जाहिर तौर पर उक्त सप्ताह कब का बीत चुका है, मगर मुआवजे का कोई अता-पता नहीं हैं.

वह अपनी बायीं कलाई पर बने कटे के निशान को देखते हुए कोर्ट से बाहर निकलती है और कहती है ‘सात बार – मैंने खुद को मारने की कोशिश की है.’

वह दिन जिसने उसकी जिंदगी बदल के रख दी

तीन बहनों में दूसरे नंबर पर आने वाली आकांक्षा हमेशा अपनी विधवा मां की मदद करने के लिए लालायित महसूस किया करती थी. उसे अभी भी वह दिन याद है जब उसे कक्षा 10 में पढाई करते हुए ही एक टेलीमार्केटिंग फर्म में नौकरी मिली थी. वह 19 जुलाई 2013 का दिन था. वह किसी तरह से अपने परिवार की मदद कर सकने में सक्षम होने को लेकर बहुत उत्साहित थी.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरा नामांकन शाम के शिफ्ट वाले स्कूल में हुआ था. मैं दिन में अपना काम करती थी और रात में अपनी कक्षाओं में जाती थी.’ 31 जुलाई को, अपना काम खत्म करने के बाद, उसने अपने दोस्त करन के साथ महालक्ष्मी मंदिर जाने का फैसला किया.

महालक्ष्मी रेलवे स्टेशन, मुंबई | ज्योति यादव /दिप्रिंट

 

वे भांडुप से एक लोकल ट्रेन में सवार हुए और शाम साढ़े सात बजे महालक्ष्मी रेलवे स्टेशन पर उतर गए. जैसे ही वे मंदिर की ओर बढ़ रहे थे, उसे एक पत्थर पर ठोकर लग गई और उसका बायां पैर घायल हो गया. उसका खून बह रहा था और उसे जोरों का दर्द हो रहा था, इसलिए उन दोनों ने घर वापस लौटने का फैसला किया.

अदालत में दी गई अपनी गवाही में, आकांक्षा ने कहा कि एक राहगीर ने उन्हें बताया था कि स्टेशन पर वापस जाने का सबसे छोटा रास्ता परित्यक्त और खंडहर बन चुके शक्ति मिल्स के परिसर से होकर जाता है. उस निर्जन और सुनसान जगह से गुजरते हुए आकांक्षा का घायल पैर एक लत्ती में फंस गया.

इसके बाद जब वह और करन एक मंच पर आराम कर रहे थे, तभी दो लोगों- जिनकी बाद में मोहम्मद कासिम शेख बंगाली और मोहम्मद सलीम अब्दुल कुद्दुस अंसारी के रूप में पहचान की गई – ने उन पर हमला बोल दिया. उन्होंने आकांक्षा के दुपट्टे से करन के हाथ बांध दिए और उसे खींच कर दूसरी तरफ ले गए. जब वह मदद के लिए चिल्लाने लगी तो विजय जाधव और एक किशोर के साथ एक तीसरा व्यक्ति -मोहम्मद अशफाक दाऊद शेख- भी उनके साथ आ मिला.

इसके बाद जो कुछ भी हुआ उसके गवाह एक पानी की बोतल, एक रजाई, एक इस्तेमाल किया हुआ कंडोम, एक जूता, एक फटी शर्ट और एक टूटा हुआ ब्रेसलेट – जिसके नीले और सफेद मोतियों को जमीन पर बिखेर दिया गया था – आदि बने बाद में पुलिस ने उन सब को सबूत के तौर पर जब्त कर लिया.

जिस वक्त तक हमलावरों ने उन दोनों को वापस रेलवे ट्रैक पर छोड़ा तब तक काफी देर हो चुकी थी. इस सब के बाद आकांक्षा वापस घर नहीं जाना चाहती थी. उसने मुकदमे के दौरान अदालत से कहा कि उसे डर था कि अगर उसकी मां को पता चला कि उसके साथ क्या कुछ हुआ है तो वह खुद को मार डालेगी.

करन ने अपने एक दोस्त से 1,500 रुपये का कर्ज लिया, जिसे उन दोनों ने ओवरब्रिज पर एक पटरी वाले से एक टी-शर्ट खरीदने के लिए इस्तेमाल किया. फिर उन्होंने पूरी रात छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में बिताई, और सुबह- सुबह मुंबई-हावड़ा गीतांजलि एक्सप्रेस से छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हो गए. तब तक उसकी मां, जो उस रात अपनी बेटी के घर नहीं लौटने पर बुरी तरह से घबरा गई थी, ने स्थानीय पुलिस में उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करा दी थी.

छत्तीसगढ़ पहुंचने पर आकांक्षा ने अपनी मां को शांत करने के लिए उन्हें फोन किया. इस दौरान उसने वादा किया कि वह अपने एक दोस्त के साथ सुरक्षित है और जल्द ही घर लौट आएगी. फिर वे करन के कुछ रिश्तेदारों के साथ एक गांव में रुके.


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न्याय तो मिला, मगर सहानुभूति नहीं

1 सितंबर 2013 को, आकांक्षा मुंबई लौट आई और उसने पहले अपनी मां और बाद में पुलिस को बताया कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. तब तक, पूरे राष्ट्र का आक्रोश और नाराज़गी पुरुषों के उस गिरोह – जिसमें एक किशोर भी शामिल था- पर केंद्रित हो चुका था जो शक्ति मिल्स में एक फोटो जर्नलिस्ट के साथ बलात्कार के लिए जिम्मेदार थे.

गार्ड संत राम खाली पड़े शक्ति मिल परिसर की देख रेख करते हैं | ज्योति यादव /दिप्रिंट

शुरुआत में, स्थानीय पुलिस बलात्कार के इन दोनों मामलों के बीच को सीधा संबंध नहीं बना पायी. अभी भी आहत महसूस कर रही आकांक्षा को ‘शक्ति मिल्स’ जैसी कोई जगह या नाम याद ही नहीं आ रही थी. यह गूगल मानचित्र ही था जिसकी सहायता से उन्होंने अपराध स्थल का पता लगाया और यही वह वक्त था जब पुलिस ने बिखरे हुए बिंदुओं को आपस में जोड़ा. फोटो जर्नलिस्ट के साथ रेप करने वाले में से तीन लोगों को आकांक्षा के मामले में भी दोषी पाया गया था.

दोनों ही मामलों में जिला अपराध शाखा (डिस्ट्रिक्ट सीआईडी) ने जांच की कमान अपने हाथ में ली. इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम काफी अधिक दबाव में थे. यह मामला निर्भया बलात्कार मामले (जो 2012 में दिल्ली में हुआ था) के बाद हुआ था. उस वक्त केवल एक ही खबर चल रही थी और वह थी शक्ति मिल बलात्कार का मामला.‘

सत्र न्यायालय में रेप के इन दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ चल रही थी. आकांक्षा के मामले में 31 और फोटो जर्नलिस्ट के मामले में 44 गवाहों ने गवाही दी. सामूहिक बलात्कार के एक साल से भी कम समय के बाद, 20 मार्च 2014 को, सत्र अदालत ने इस मुकदमे में अपराधियों के दोषी होने फैसला सुनाया. कासिम और सलीम को गिरोह के एक अन्य सदस्य विजय जाधव के साथ फांसी पर लटका के मौत की सजा सुनाई गई (जिसे बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कम कर दिया), जबकि अशफाक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

इन दोनों महिलाओं को न्याय तो दिया गया – लेकिन एक ऐसी कानूनी प्रणाली द्वारा जो सहानुभूतिपूर्ण बनने के लिए एकदम से थकी-मांदी लगती है. पुलिस को अपना बयान देने के बाद आकांक्षा के मामले में शुरूआती जांच का काम एक पुरुष डॉक्टर को सौंपा गया था. उसके द्वारा इस डॉक्टर से अपनी जांच कराये जाने से इनकार करने के बाद ही उसके लिए एक महिला डॉक्टर को नियुक्त किया गया था, लेकिन इसके लिए उसे एक दूसरे सरकारी अस्पताल में जाना पड़ा जहां उसका ‘टू-फिंगर टेस्ट’ किया गया. सेशन कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट दोनों ने इन मामलों की सुनवाई करते हुए ‘अवैज्ञानिक’ माने जाने वाले ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के इस्तेमाल की आलोचना की थी.


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अभी भी जारी है आकांक्षा की लड़ाई

पिछले साल, आकांक्षा ने अदालत के फैसले की अपनी उस प्रति को फाड़ कर चिथड़े कर दिए, जिसे उसने वर्षों से संजों के रखा था. वह कहती है, ‘जब भी मैं इसे देखती, तो मुझे अपनी चमड़ी को उस जगह से खरोंचने जैसा महसूस होता, जहां भी उन्होंने मुझे छुआ था. इसलिए पिछले साल, मैंने इससे छुटकारा पा लिया.’

इस मामले में विशेष लोक अभियोजक डीएन साल्वी, जिन्होंने दोषियों की अपील के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व किया था, यह लड़ाई आगे भी जारी रखना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने मौत की सजा की बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने हेतु कानून मंत्रालय को एक मसौदा भेजा है. सुप्रीम कोर्ट में राज्य के वकील इसे आगे बढ़ाएंगे.’

लेकिन, आकांक्षा इससे कुछ लेना-देना रखना नहीं चाहती. उसने अपने बाल काट लिए हैं और अपने करियर की रूपरेखा तैयार कर ली है. यह उन आघात और अवसाद के दौरों से लड़ने का एक तरीका है जिनसे वह आज तक पीड़ित है. मुंबई के एक उपनगरीय इलाके में बनी एक चॉल में स्थित उनके एक कमरे के मकान में, जैसे ही उसकी मां भविष्य और ‘नए जीवन’ के बारे में बोलती है, आकांक्षा अचानक जम सी जाती है. शून्य में निहारते हुई उसकी भावशून्य हो उठती हैं. उसकी मां उसे झकझोरती है, और वह कांपते हुए इस अर्ध-चेतन अवस्था से बहार निकलती है. अपनी त्वचा को तेजी के साथ खरोंचते हुए, वह कहती है, ‘हर एक सीन जैसे मेरी आंखों के सामने है. मैं उन्हें अपनी त्वचा, अपने शरीर, अपने बालों को छूते हुए देख सकती हूं.’

अतीत की कड़वाहट भविष्य के प्रति उसकी आशा के साथ टकराती है, उसके चेहरे पर परस्पर विरोधी भावनाएं आती जाती रहतीहैं. उसका कहना है कि शिक्षा ही इससे निकलने का एकमात्र रास्ता है. सामूहिक बलात्कार के तीन साल बाद, वह 10 वीं कक्षा की पढाई पूरी करने के लिए उसी सरकारी स्कूल में लौट गई थी. फिर उसने जूनियर कॉलेज (कक्षा 11 और 12) में वाणिज्य विषय चुना क्योंकि उसकी मां विज्ञान विषय के लिए लगने वाली फीस नहीं दे सकती थी. उसकी मां ने कहा, ‘मैं दूसरे लोगों के घरों में काम करती हूँ. मैं इतना महंगा कोर्स कैसे वहन करती? मुझे अपनी छोटी बेटी की भी शादी करनी थी.‘

एक नर्स के रूप में अपने भावी करियर के बारे में बात करते हुए आकांक्षा की आंखें चमक उठीं. वह कहत है, ‘जब भी कोई बच्चा बिना दर्द के इंजेक्शन लगाए जाने के बाद धन्यवाद कहता है, तो मेरा दिल खुशी और गर्व से भर जाता है. मैं नर्सिंग के पेशे में बहुत सम्मान और आराम महसूस करती हूं.’

नर्सिंग उसके लिए न केवल लोगों की मदद करने का मौका है, बल्कि उस इलाके को छोड़ने के बारे में भी है जिसमें वह पली-बढ़ी है. वह मुंबई के उपनगरीय इलाके में एक चॉल के अंत में अपनी मां के साथ एक छोटे से कमरे में रहती है, जिसमें कोई इनडोर प्लंबिंग या शौचालय नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में वह अपने पड़ोसियों, चाहे वह 80 वर्षीय शराबी हो या 15 वर्षीय किशोर लड़का हो, द्वारा की जा रही उस छींटाकशी के प्रति अभ्यस्त हो गई है जिसमें वे बड़ी आसानी से उसके साथ जो कुछ भी हुआ उसे उसके ‘उपलब्ध’ रहने के साथ जोड़ देते थे.

वह उस मीडिया पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती है, जिसने इस खबर के सामने आने पर लगातार उसका पीछा किया. लेकिन उसने उस फोटो जर्नलिस्ट के साथ एक रिश्ता सा बना लिया था, जिसके साथ भी शक्ति मिल्स में रेप हुआ था. आकांक्षा कहती है, ‘वह अपनी मां के साथ हमसे मिलने आई थी. हम पहली मुलाकात में एक दूसरे से ज्यादा नहीं बोल पाए, लेकिन बाद में हम एक-दूसरे की ताकत बन गए. हम महीनों तक संपर्क में रहे, लेकिन अब अपने अलग रास्ते चले गए हैं.’ उसकी आंखें फिर से भावशून्य हो गई, मानो वह फिर से 31 जुलाई 2013 की उस शाम को वापस चली गई हो.

भुतहा पड़ा है शक्ति मिल्स

महालक्ष्मी स्टेशन के पास स्थित शक्ति मिल्स, जो 25,067 वर्ग मीटर में फैली है, अन्य पुरानी मिलों की ही तरह कभी मुंबई के मजदूर वर्ग का धड़कता दिल थी. आज, उगी घास के बीच में इसका परित्यक्त अग्रभाग लोगों में भय और संदेह पैदा करता है.

बलात्कार की घटनाओं के बाद इसकी चारदीवारी का निर्माण किया गया, और मिल में गार्ड तैनात किए गए. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के संत कुमार शर्मा, जो अपने चचेरे भाई के साथ यहां गार्ड का काम करते हैं, ने कहा, ‘(रु) 15,000 के वेतन के लिए, हम जंगली सांपों और कीड़ों का सामना करते रहते हैं.’ रात में, पुलिस इस सारे इलाके में गश्त लगाती है, जबकि गली के कुत्तों का एक झुंड इस पर निगरानी रखता है. उनके भौंकने की आवाज इस विशाल परिसर के सन्नाटे में गूंजती हैं.

आकांक्षा कभी महालक्ष्मी वाले इलाके के पास वापस नहीं गई. और उसने अभी तक उस प्रसिद्ध महालक्ष्मी मंदिर की यात्रा भी नहीं की है, जहां उसने और करण ने 31 जुलाई 2013 को जाने का फैसला किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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