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Tuesday, 16 April, 2024
होमएजुकेशनफंडिग पर कानून, विश्वस्तरीय टीचर ट्रेनिंग और ओवर रेग्युलेशन से छुटकारा- नई शिक्षा नीति पर मनीष सिसोदिया ने दी सलाह

फंडिग पर कानून, विश्वस्तरीय टीचर ट्रेनिंग और ओवर रेग्युलेशन से छुटकारा- नई शिक्षा नीति पर मनीष सिसोदिया ने दी सलाह

दिल्ली के शिक्षा मंत्री के मुताबिक नई नीति सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने की बात से भागती है और प्राइवेट स्कूल को बढ़ावा देती नज़र आती है. उन्होंने कहा, 'पॉलिसी में 'प्राइवेट फिलेंथ्रोपिक शिक्षा' को बढ़ावा देने की बात है.'

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नई दिल्ली: दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को एक अच्छा दस्तावेज बताया लेकिन कहा कि इसमें लिखी बातों के साथ समस्या ये है कि नीति पुरानी परंपरा और समझ मुक्त नहीं हो पाई है. उन्होंने कहा कि जिन सुधारों की बात की गई है वो कैसे होंगे इसे लेकर पॉलिसी या तो चुप है या भ्रमित करती है.

सिसोदिया ने इसपर तीन सलाह देते हुए कहा, ‘सबसे पहले फंडिंग को लेकर कानून बनाना चाहिए. 1966 से शिक्षा का बजट बढ़ाने की बात हो रही है. जब तक जीडीपी के 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च का कानून नहीं बनेगा तब तक सब ख़्याली पुलाव है.’

उन्होंने कहा कि मिड-डे मील में नाश्ता देने की जो बात है और भविष्य में जिन शिक्षकों की भर्ती करनी पड़ेगी उसका पैसा कहां से आएगा?

दूसरी सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि जो वर्तमान शिक्षक हैं उनकी विश्वस्तरीय ट्रेनिंग होनी चाहिए और तीसरी सलाह में ‘ओवर रेग्युलेशन’ (अति नियमन) के मोह माया से बाहर निकलने की बात दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने की.

सिसोदिया के अनुसार नई शिक्षा नीति ‘हाईली रेग्युलेटेड’ और ‘पुअर्ली फंडेड’ शिक्षा मॉडल देती है.

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‘हाईली रेग्युलेटेड’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने नीति में एजुकेशन डिर्माटमेंट, एसीईआरटी, डायरेक्टरेट ऑफ एजुकेशन और शिक्षा आयोग जैसी कई एजेंसियों के ज़िक्र की चर्चा की और कहा कि ये एजेंसियां आपस में टकराती रहेंगी.

एमएचआरडी का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय किए जाने की उन्होंने सराहना की लेकिन साथ ही ये भी कहा कि खाली नाम बदलने से कुछ नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘बचपन की शुरुआत में बच्चों को औपचारिक शिक्षा में लाना काफी अच्छा कदम है. इसमें कम्युनिटी को शामिल करना भी अच्छी बात है. मातृभाषा में पढ़ाया जाना अच्छी बात है.’


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समान शिक्षा कैसे मिले, इसे लेकर गहरे सवाल

उन्होंने नीति में सबको समान शिक्षा की बात का ज़िक्र करते हुए सवाल उठाया कि आंगनवाड़ी और डीपीएस में जाने वाले बच्चे को समान शिक्षा कैसे मिलेगी? उन्होंने कहा, ‘सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जिस समुदाय से आते हैं उनकी पहली पीढ़ी स्कूल में पढ़ रही है. ऐसे समुदाय से शिक्षित करने वाले लोग कैसे मिलेंगे?’

दिल्ली के शिक्षा मंत्री के मुताबिक नई नीति सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने की बात से भागती है और प्राइवेट स्कूल को बढ़ावा देती नज़र आती है. उन्होंने कहा, ‘पॉलिसी में ‘प्राइवेट फिलेंथ्रोपिक शिक्षा’ को बढ़ावा देने की बात है.’

उन्होंने कहा, ’34 साल बाद ये महामारी के समय में ऐसी नीति लेकर आए हैं जो शिक्षा की निजीकरण की बात करती है.’

उन्होंने मिड-डे मील में नाश्ता देना का प्रस्ताव, कोर्स ऑप्शन खोलने, बीएड को चार साल का करने और एक रेग्युलेटरी बॉडी बनाने की भी सराहना की.

उन्होंने ये भी कहा कि देश के 30 करोड़ बच्चे 80 लाख शिक्षकों से पढ़ रहे हैं. इन शिक्षकों को नई शिक्षा नीति में कैसे लगाया जाएगा इसपर इस दस्तावेज का कोई ज़िक्र नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘2009 की शिक्षा का अधिकार कानून में ये कहा गया कि पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों का आंकलन होता रहेगा. किसी को फेल नहीं किया जाएगा. लेकिन इसके लिहाज़ से शिक्षकों की ट्रेनिंग पर कोई काम नहीं हुआ और नीति की नो डिटेंशन पॉलिसी एक विलेन बनकर रह गई.’

वोकेशनल शिक्षा पर उन्होंने कहा कि इसे प्रोमोट तो अभी भी किया जा रहा है लेकिन ये असफल है क्योंकि उच्च शिक्षा में इसका कोई सम्मान नहीं है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने वाले को इसका कोई फायदा नहीं मिलता.

उन्होंने कहा कि बच्चे के आगे के एडमिशन की चेन पर क्या प्रभाव होगा इस पर पॉलिसी खामोश है.


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‘बोर्ड की परीक्षा पर पॉलिसी फेल’

नीति में बोर्ड परीक्षा को आसान बनाने और छात्रों को दो बार मौका देने की बात कही गई है.

हालांकि, सिसोदिया का कहना है कि होना ये चाहिए था कि रटने की क्षमता के बजाए समझने की क्षमता का मूल्यांकन किया जाए. उन्होंने कहा, बोर्ड की परीक्षा पर पॉलिसी फेल है.’

उन्होंने कहा कि नीति में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी बनाने की भी बात है. बहुत सारी परीक्षाओं को एक परीक्षा में तब्दील करने की बात है. उन्होंने कहा, ‘जब नेशनल टेस्ट लिया ही जाएगा तो बोर्ड की परीक्षा क्यों ली जा रही है. एनटीए भी लेंगे, बोर्ड भी लेंगे? ये भ्रम की स्थिति है!’

नीति में उच्च शिक्षा में सबसे ज़्यादा ज़ोर मल्टी डिसिप्लिनरी हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट (एमडीएचईएल) पर है. इसपर सिसोदिया ने कहा, ‘डीयू, जामिया, बीएचयू पहले से ये काम कर रहे हैं. देश के सारे संस्थानों को ऐसा बनाने की बात है. लेकिन हमें एमडीएचईएल के बजाए दोनों तरह के संस्थानों की ज़रूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘आईआईटी में एक्टिंग और एफटीआईआई में इंजीनियरिंग कराने की कोई ज़रूरत नहीं है. नई नीति से ये बर्बाद हो जाएंगे.’


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