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Thursday, 25 April, 2024
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जमीन हड़पने से लेकर प्राचीन फारसी किताबों की चोरी तक- सपा नेता आजम खान के खिलाफ कई केस लंबित हैं

19 मई को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद आजम खान की जेल से उनकी रिहाई का रास्ता खुला, जहां वह पिछले 27 महीनों से बंद थे.

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नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी (सपा) नेता आजम खान के खिलाफ उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में 93 आपराधिक मामले लंबित हैं जिनमें भूमि हथियाने, जालसाजी, धोखाधड़ी, विरोधियों के घर ध्वस्त करने और प्राचीन फारसी किताबें चोरी तक के आरोप लगे हैं.

19 मई को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद आजम खान की जेल से रिहाई का रास्ता खुला, जहां वह पिछले 27 महीनों से बंद थे.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल.एन. राव और जस्टिस बी.आर. गवई की बेंच ने जिस केस में आजम खान की रिहाई का आदेश जारी किया, वो उनके खिलाफ दर्ज 88वां मामला था और जालसाजी के आरोपों से संबंधित था. 87 मामलों में पहले से ही जमानत पर चल रहे आजम खान ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तब खटखटाया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी.

अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष कोर्ट ने खान को नियमित जमानत के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाने की आजादी दी.

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि अभियोजन पक्ष ने 18 मार्च, 2020 को खान के खिलाफ मामला दर्ज किया था तो फिर उन्हें गिरफ्तार करने में 18 महीने से अधिक का समय क्यों लगाया. पीठ ने कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से चार दिन पहले ही एक अन्य केस में आजम खान को जमानत दिए जाने के बाद की गई थी.

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सुप्रीम कोर्ट में बहस करते हुए आजम के वकील ने आरोप लगाया कि ये मामले उत्तर प्रदेश सरकार के राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा हैं, क्योंकि सभी एफआईआर 2017 में राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद दर्ज की गई थीं. अधिकांश मामले 2019 में लोकसभा चुनाव के ऐन पहले या उसके तुरंत बाद दर्ज किए गए थे.

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक विस्तृत हलफनामे में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली यूपी सरकार ने खान के इन आरोपों को गलत बताया कि उन्हें ‘झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया’ जा रहा है और उनके खिलाफ लंबित 93 आपराधिक मामलों की जानकारी दी.

सपा नेता के इस ‘निराधार’ दावे कि एफआईआर राज्य सरकार के इशारे पर दर्ज की गई हैं, का खंडन करते हुए सरकारी हलफनामे में ऐसे नौ उदाहरण भी दिए गए जिसमें खान के खिलाफ कुछ लोगों की तरफ से व्यक्तिगत स्तर पर शिकायतों के बावजूद मामले दर्ज नहीं किए गए.

खान के खिलाफ मामले

राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि 93 मामलों में से 61 निजी पार्टियों की तरफ से दर्ज कराए गए थे और इसमें भूमि हथियाने, धमकी देने और पिटाई के जैसे आरोप शामिल थे. दिप्रिंट के हाथ लगे यूपी सरकार के हलफनामे में दी गई जानकारी के मुताबिक, 19 मामले आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित हैं, जबकि केवल 12 मामले पुलिस/सरकारी अधिकारियों की शिकायत पर दर्ज हुए हैं.

2019 में 27 प्राथमिकी का पहला सेट यूपी में रामपुर के अजीम नगर पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले अलीगंज के कुछ किसानों की शिकायतों पर दर्ज किया गया था, जिन्होंने खान पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मालिकों को कोई मुआवजा दिए बगैर और सेल डीड पर अमल किए बिना ही उनकी तमाम जमीन हथियाकर उसे ‘जौहर यूनिवर्सिटी की चारदीवारी के भीतर कर लिया है.’

हलफनामे के मुताबिक, इस काम में आजम खान को कथित तौर पर इलाके के तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) का समर्थन हासिल था, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने किसानों को विरोध जताने से रोकने के लिए धमकाया था.
2019 में ही रामपुर में दर्ज 11 अन्य एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि खान ने 2016 में जबरन एक अनाथालय पर कब्जा कर लिया था, जब वह यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे.

शिकायतकर्ता वक्फ संपत्ति (इस्लामी कानून के तहत धर्मार्थ बंदोबस्ती) में रह रहे थे, जिनका दावा है कि यह जमीन उनके पूर्वजों को रामपुर की तत्कालीन रियासत के शाही परिवार की तरफ से प्रदान की गई थी. शिकायतकर्ता इस जगह पर डेयरी चला रहे थे. हालांकि, एफआईआर में कहा गया है कि आजम खान ने जबरन जगह खाली करा ली और वहां अपना स्कूल स्थापित कर लिया.
हलफनामे में बताया गया है, ‘जब (सरकार) बदली और अलीगंज के किसानों ने एफआईआर दर्ज कराई, तब यतीमखाना घोसियान के लोगों ने भी एफआईआर दर्ज कराई. इससे पहले उनकी शिकायतों पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया था.’

11 प्राथमिकी के एक अन्य सेट में दावा किया गया कि खान ने शिकायतकर्ताओं के घरों को जबरदस्ती ढहा दिया था क्योंकि वे उनके विरोधियों से जुड़े थे.


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धोखाधड़ी और जालसाजी

धोखाधड़ी के तीन मामले भी लंबित हैं जिनमें आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला पर जाली जन्म प्रमाणपत्र, दो पासपोर्ट और अब्दुल्ला के दो पैन कार्ड हासिल करने का आरोप है. कथित तौर पर जाली जन्म प्रमाणपत्र से संबंधित एफआईआर रामपुर के गंज पुलिस स्टेशन में दर्ज है, वहीं अन्य दोनों मामले उसी जिले के सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन में दर्ज हैं.

आरोप है कि आजम ने लखनऊ नगर निगम से फर्जी जन्म प्रमाणपत्र हासिल किया, जिसमें जन्म वर्ष 1990 दर्ज है, जो कि यह दिखाने के लिए हासिल किया गया था कि उनका बेटा 25 साल का हो गया है, ताकि वह यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के योग्य बन सके. यूपी सरकार की तरफ से दायर हलफनामे में दावा किया गया है कि इस प्रमाणपत्र का इस्तेमाल भी किया गया. जबकि अब्दुल्ला के पास पहले से रामपुर नगर पालिका द्वारा जारी एक जन्म प्रमाणपत्र भी था, जिसमें उसका जन्म वर्ष 1993 दर्ज है. आजम के बेटे के स्कूल रिकॉर्ड में भी उसका जन्म वर्ष 1993 बताया गया है.

इसके अलावा, खान ने अपने बेटे के नाम पर कथित तौर पर दो पैन कार्ड भी हासिल किए. आरोप है कि गलत जन्म वर्ष वाले पैन का इस्तेमाल विधानसभा चुनाव के लिए आवेदन भरने में किया गया और उसी पैन कार्ड का विवरण बैंक खाते के साथ संलग्न किया गया. हलफनामे में कहा गया है कि इसी तरह, खान के बेटे के पास दो पासपोर्ट भी हैं, जिनमें से एक उसका जन्म वर्ष 1990 दर्शाता है और पासपोर्ट विभाग उसे जब्त कर चुका है.

आजम खान पर इसके अलावा वह जमीन कब्जाने के लिए फर्जी तरीके से एक ‘वक्फनामा’ तैयार कराने का आरोप भी है, जो राजस्व रिकॉर्ड में शत्रु संपत्ति के तौर पर दर्ज है. शत्रु संपत्ति वह होती है जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए लोग पीछे छोड़ गए थे.

यूपी सरकार के मुताबिक, खान शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड में दर्ज भूमि हासिल करने में कामयाब रहे, उन्होंने अपने व्यक्ति को ‘मुतवल्ली’ के तौर पर नियुक्त किया और फिर इस जमीन को जौहर यूनिवर्सिटी परिसर का हिस्सा बना लिया.

खान पर आरोप है कि उन्होंने ‘एक जमीन पर स्वामित्व का दावा करने के लिए राजस्व रिकॉर्ड में अपने रिश्तेदार का नाम गलत तरीके से दर्ज कराया’, जो कि वैसे तो ‘फांसी घर’ के लिए चिह्नित की गई थी. इस जमीन का टुकड़ा रामपुर की जिला जेल से जुड़ा हुआ है.

गंज पुलिस स्टेशन में दर्ज एक अन्य एफआईआर में खान पर 100 साल पुराने स्कूल आलिया अरबी फारसी स्कूल पर गैरकानून तरीके से कब्जा करने और वहां मौजूद प्राचीन और ऐतिहासिक पुस्तकों को हटाकर जौहर यूनिवर्सिटी में रख लेने का आरोप लगाया गया है.

अन्य गंभीर ‘गैरकानूनी गतिविधियों’, जिन पर यूपी प्रशासन ने खान के खिलाफ मामले दर्ज नहीं किए, में सार्वजनिक रास्ते को बंद करना और लोक निर्माण विभाग के गेस्ट-हाउस और एक पावर हाउस इकाई का अनधिकृत कब्जा जमाना शामिल है. इन दोनों संपत्तियों को कथित तौर पर जौहर यूनिवर्सिटी का हिस्सा बनाया गया था, लेकिन बाद में राज्य सरकार ने उन्हें मुक्त करा लिया.
खान पर अनुसूचित जाति समुदाय की जमीन जबरन हथियाने और 100 साल पुराने ओरिएंटल कॉलेज पर अवैध ढंग से कब्जा कर लेने का भी आरोप लगाया गया था. हालांकि, दोनों मामलों में, यूपी सरकार ने उक्त संपत्तियों को खान के कब्जे से मुक्त कराने के लिए प्रशासनिक कार्रवाई की और इन मामलों में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई.

सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने रामपुर में एक ऐतिहासिक गेट कथित तौर पर ध्वस्त कर देने के मामले में भी खान के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की, जो कि एक शताब्दी से अधिक पुराना था. इसके अलावा किसी कानूनी प्रक्रिया या आदेश के बिना ही धरोहर भवनों को तोड़ने के मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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