प्रयागराज, 31 अक्टूबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत एक किशोर की दोषसिद्धि, किसी भी सेवा में उसकी नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं मानी जाएगी।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 19 यह व्यवस्था देती है कि अपराध करने के लिए इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी करार दिए गए किसी किशोर को दोषसिद्धि की वजह से अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने शिक्षा विभाग द्वारा संपन्न कराए गए भर्ती अभियान 2019 में पीजीटी पद के लिए आवेदन करने वाले एक व्यक्ति की याचिका स्वीकार कर ली।
भर्ती में सफल याचिकाकर्ता को अमेठी के गौरीगंज स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय द्वारा नियुक्ति पत्र जारी किया गया था। दो महीने बाद नियुक्ति के लिए आवेदन करते समय आपराधिक इतिहास छिपाने के संबंध में उसके खिलाफ एक शिकायत की गई और उसे फिर से आवेदन करने को कहा गया। विस्तृत जांच के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा, “इस अधिनियम की धारा 19(1) यह स्पष्ट करती है कि एक किशोर के मामले में जहां कोई दूसरा कानून लागू नहीं होता, एक अपराध करने वाले किशोर का दोष सिद्ध होने पर वह दोषसिद्धि के कारण अयोग्य नहीं होगा।”
अदालत ने कहा कि इसका अर्थ है कि भले ही एक किशोर का अपराध सिद्ध हो जाता है, वह दोषसिद्धि के कारण अयोग्य नहीं माना जाएगा।
सेवा से बर्खास्तगी के खिलाफ याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, इलाहाबाद से संपर्क किया जिसने उसका आवेदन स्वीकार कर लिया और विभाग को अवतार सिंह बनाम केंद्र सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के मुताबिक नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया गया।
हालांकि, इस आदेश के खिलाफ विभाग ने उच्च न्यायालय का रुख किया जिसने 16 अक्टूबर को दिए निर्णय में अधिकरण के आदेश को सही ठहराया।
भाषा सं राजेंद्र
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