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Tuesday, 23 April, 2024
होमदेशहालात 1990 से भी बदतर- गुमनाम 'लश्कर की धमकी' से घबराए कश्मीरी पत्रकारों ने इस्तीफा दिया, कुछ छिपे

हालात 1990 से भी बदतर- गुमनाम ‘लश्कर की धमकी’ से घबराए कश्मीरी पत्रकारों ने इस्तीफा दिया, कुछ छिपे

पाकिस्तान से चलाए जा रहे एक ब्लॉग में मिली धमकी के बाद पिछले 10 दिनों में कश्मीर के कम से कम 6 पत्रकारों ने इस्तीफा दे दिया है. कई लोगों ने मीडिया संस्थानों से अलग होने की घोषणा सोशल मीडिया पर की है.

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श्रीनगर: कश्मीर में 20 से ज्यादा पत्रकारों को कथित रूप से प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के एक सहयोगी संगठन, द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) की ओर से कथित तौर पर दी गई गुमनाम ऑनलाइन धमकियों के बाद घाटी में मीडिया दहशत की चपेट में है. दिप्रिंट को पता चला है कि जहां कई पत्रकार छिप गए हैं, वहीं अन्य ने सुरक्षित ठिकाने की तलाश में अस्थायी रूप से कश्मीर छोड़ दिया है.

पिछले 10 दिनों में राइजिंग कश्मीर और एएनएन न्यूज सहित क्षेत्रीय समाचार संगठनों के कम से कम छह पत्रकारों ने इस्तीफा दिया है. कथित धमकी में इन दोनों मीडिया संस्थानों और ग्रेटर कश्मीर के पत्रकारों का नाम लिया गया था.

कई पत्रकारों ने मीडिया घरानों से अपने अलग होने की घोषणा के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.

पत्रकार जहांगीर सोफी ने 14 नवंबर को ट्वीट किया, ‘मैं रिपोर्टर के पद से इस्तीफा देने और मीडिया हाउस राइजिंग कश्मीर से अलग होने की घोषणा करता हूं.’ सोफी का नाम उन पत्रकारों की सूची में शामिल था जिनके खिलाफ गुमनाम नोट में धमकी दी गई थी.

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सोमवार को एएनएन ‘कैमरामैन’ के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले यासरब खान ने भी सोशल मीडिया पर अपने इस्तीफे की घोषणा की.

शुक्रवार को एक बयान में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों को कथित धमकी की निंदा की. उन्होंने कश्मीर घाटी में मौजूदा स्थिति की तुलना 1990 के उग्रवाद के समय से की.

बयान में कहा गया है, ‘कश्मीर में पत्रकार अब खुद को राज्य के अधिकारियों और आतंकवादियों, दोनों तरफ से फायरिंग लाइन में पा रहे हैं, जो 1990 के दशक में बढ़े हुए उग्रवाद के वर्षों की वापसी जैसा है.’

दिप्रिंट ने सोमवार को कुछ ऐसे पत्रकारों से मुलाकात की, जिनके नाम सूची में शामिल थे. लेकिन उनमें से ज्यादातर अपना नाम जाहिर करने से डर रहे थे.

ऑनलाइन धमकी में जिन पत्रकारों का नाम था, उनमें से एक ने दिप्रिंट को बताया. ‘मैं धमकियों से बिल्कुल भी नहीं डरता. लेकिन मैं सावधान हूं. मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो मैं क्यों डरूं?’

यह दावा करते हुए कि उनका नाम अतीत में भी इस तरह की सूचियों में शामिल था, उन्होंने कहा, ‘मैं 2019 से सावधान हूं, क्योंकि मुझे पता था कि चीजें खराब होने वाली हैं (कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से). समय ऐसा है कि मैं अपनी पत्नी को भी नहीं बता सकता कि मैं कहां जा रहा हूं. अभी माहौल बहुत खराब चल रहा है और यह दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है.’

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि एक तरफ पत्रकार प्रशासन से परेशान हैं (अगर उनका कवरेज प्राधिकरण के खिलाफ है), वहीं ऐसे आतंकी संगठन भी उनके लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं.

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने 12 नवंबर को कश्मीर में स्थित रिपोर्टर्स और पत्रकारों को ऑनलाइन धमकी देने वाले पत्र के प्रकाशन और प्रसार के सिलसिले में आतंकवादी संगठन लश्कर और उसके शाखा टीआरएफ के हैंडलर्स, सक्रिय आतंकवादियों और ओजीडब्ल्यू (ओवर ग्राउंड वर्कर्स) के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

लगभग एक हफ्ते बाद 19 नवंबर को पुलिस ने इस सिलसिले में श्रीनगर, अनंतनाग और कुलगाम की कई जगहों पर ‘बड़े पैमाने पर तलाशी’ की.

श्रीनगर के सीनियर पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राकेश बलवाल ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि ‘यहां से कुछ इनपुट के साथ पाकिस्तान से धमकियां मिलनी शुरू हुईं. हम उन लोगों को भी देख रहे हैं जो कभी इन (समाचार) संस्थानों से जुड़े थे. कुल 12 जगहों पर तलाशी ली गई है.

उन्होंने कहा कि जिन 12 जगहों की तलाशी ली गई है, उनमें से तीन कथित टीआरएफ गुर्गों बासित धर, मोमिन गुलजार और सज्जाद गुल (जो पाकिस्तान से संचालित होते हैं) से जुड़े थे.

बलवाल ने कहा, ‘सज्जाद गुल ने इन सूचियों और टीआरएफ पोस्टर का मसौदा तैयार किया था. इसके अलावा इस मामले में मुख्तार बाबा (कश्मीर के एक पूर्व पत्रकार) की भूमिका भी सामने आई है. उन्होंने इस लिस्ट को तैयार करने में मदद की है. अन्य आठ संदिग्ध हैं जिनकी धमकियों में कुछ भूमिका हो सकती है.’

पत्रकारों को सुरक्षा देने के मसले पर एसएसपी ने कहा कि जिन ऑफिसों और घरों के लिए सुरक्षा देना जरूरी था, वहां इसे मुहैया करा दिया गया है. उन्होंने बताया कि कुछ मीडिया कर्मियों को पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर भी दिए गए हैं.

इस महीने की शुरुआत में ‘मुख्य धारा से जुड़े पत्रकारों’ और उनके नजरिए से ‘देशद्रोहियों और कठपुतलियों’ के खिलाफ एक ब्लॉग के जरिए धमकी जारी की गई थी. माना जा रहा है कि यह ब्लॉग पाकिस्तान से संचालित होता है. इसमें दावा किया था, ‘पिछले कुछ सालों में कई विश्वसनीय आवाजों को खामोश कर दिया गया है और नकली आवाजों को तैयार किया गया है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘उनका समय और भाग्य सील कर दिया गया है’.


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‘पता नहीं असल में उग्रवादी कौन हैं’

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब कश्मीर में मीडिया और मीडिया के लोगों को मुश्किल सामना करना पड़ रहा है.

जनवरी में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कश्मीर प्रेस क्लब को बंद कर दिया और श्रीनगर में ‘संभावित कानून और व्यवस्था की स्थिति’ पर अपना नियंत्रण कर लिया. यह कदम क्लब के फिर से पंजीकरण पर रोक लगाने के कुछ दिनों बाद आया था.

अतीत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया फरवरी में फहद शाह (एडिटर-इन-चीफ, कश्मीर वाला) सहित कश्मीर के कई पत्रकारों की गिरफ्तारी की निंदा कर चुका है. 2020 में, गिल्ड ने मसरत ज़हरा (फ्रीलांस फोटो जर्नलिस्ट) और और पीरजादा आशिक (द हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार) के खिलाफ पुलिस कार्रवाई को लेकर हैरानी और चिंता व्यक्त की थी. जहरा पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) तहत आरोप लगाये गए थे जबकि आशिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी.

2018 में श्रीनगर में राइजिंग कश्मीर के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की दिनदहाड़े हत्या से कश्मीर में मीडिया हिल गया था.

एएनएन न्यूज के प्रधान संपादक तारिक भट ने कहा, ‘अब स्थिति 1990 के दशक से भी बदतर है. आप नहीं जानते कि वास्तव में आतंकवादी कौन है.’ उनका नाम भी उस लिस्ट में था, जिन्हें ऑनलाइन धमकी मिली थी.

भट्ट को 2019 से टीआरएफ और लश्कर-ए-तैयबा की ओर से बार-बार धमकी दी जा रही है. एएनएन उसी साल से अस्तित्व में आया था. उसके बाद से सरकार ने उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रखी है.

भट कहते हैं, ‘आज कश्मीर से जो चीज गायब है, वह है ‘हीलिंग टच’. माना कि ‘कठोर नीतियां जरूरी हैं, लेकिन इसके साथ लोगों को मरहम भी चाहिए होता है. फिलहाल तो यह हीलिंग टच गायब हो गया है.’

एक वरिष्ठ मीडिया कर्मी ने दिप्रिंट को बताया, मौजूदा हालातों को देखते हुए एक पत्रकार के रूप में काम करना जारी रखने के लिए परिवार के साथ रोजाना एक लड़ाई लड़नी पड़ रही है.

एक पत्रकार, जिनके नाम का हाल ही में कथित धमकी में जिक्र था, ने दावा किया कि पहले भी ऐसे कई मामलों में उनका नाम लिया गया था और कहा कि कई सूचियां ‘फर्जी’ थीं.

उन्होंने कहा, ‘कई बार ऐसा होता है कि पत्रकार खुद एक लिस्ट बना लेते हैं. वे सुरक्षा चाहते हैं. ऐसी किसी भी लिस्ट में नाम आने वालों को सुरक्षा मुहैया कराने से पहले हर बार प्रोफाइलिंग की जानी चाहिए.’

उनके अनुसार, ‘राष्ट्र-विरोधी’ माने जाने वाले पत्रकार को सुरक्षा एजेंसियों से परेशानी का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘अगर आप कहते हैं कि सड़कें नहीं बनी हैं, सिस्टम में भ्रष्टाचार है, तो यह ‘राष्ट्र-विरोधी’ नहीं हो सकता है. लेकिन अगर आप भारत में रह रहे हैं और कश्मीर को एक संघर्ष क्षेत्र कहते हैं, तभी आप ‘राष्ट्र-विरोधी’ हैं.’

लिस्ट में शामिल मीडिया मालिकों में से एक ने दिप्रिंट को बताया कि वह अपने संस्थान को बंद करने की योजना बना रहा था, लेकिन उनके कर्मचारियों ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी. और वैसे भी सरकार ने कहा है कि धमकियों के बाद किसी को भी इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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