(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अधीन प्रयोगशालाओं के नेटवर्क द्वारा किए गए परीक्षणों में, 4.5 लाख मरीजों में से 11.1 प्रतिशत मरीजों में रोगजनक (पैथोजन्स) पाए गए। यह अध्ययन सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण विषाणु संक्रमणों की पहचान के प्रयासों का हिस्सा था।
पाए गए शीर्ष पांच रोगजनक में तीव्र श्वसन संक्रमण (एआरआई)/गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) मामलों में इन्फ्लूएंजा ए, तेज बुखार के मामलों में डेंगू वायरस, पीलिया के मामलों में हेपेटाइटिस ए, तीव्र दस्त रोग (एडीडी) के प्रकोप में नोरोवायरस और तीव्र इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) शामिल हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट के अनुसार, संक्रामक रोगों का प्रसार 2025 की पहली तिमाही के 10.7 प्रतिशत से बढ़कर दूसरी तिमाही में 11.5 प्रतिशत हो गया।
आईसीएमआर के वायरस अनुसंधान एवं निदान प्रयोगशाला (वीआरडीएल) नेटवर्क के अनुसार, जनवरी से मार्च के बीच 2,28,856 नमूनों में से 24,502 (10.7 प्रतिशत) में रोगाणु पाए गए। वहीं, अप्रैल से जून 2025 तक, 2,26,095 नमूनों में से 26,055 (11.5 प्रतिशत) में रोगाणु पाए गए।
इस प्रकार, संक्रमण दर पिछली तिमाही की तुलना में 0.8 प्रतिशत बढ़ गई, जो संक्रमण के प्रसार की कड़ी निगरानी की आवश्यकता का संकेत है।
एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, हालांकि यह वृद्धि बहुत ज्यादा प्रतीत नहीं होती, लेकिन इसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए, क्योंकि यह मौसमी बीमारियों और उभरते संक्रमणों के लिए एक चेतावनी का काम कर सकती है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम संक्रमण दर में तिमाही बदलावों पर नजर रखना जारी रखें, तो भविष्य में होने वाली महामारियों को समय रहते रोका जा सकता है।’’
संक्रामक रोगों के मद्देनजर वीआरडीएल नेटवर्क देश के लिए एक पूर्व चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
वर्ष 2014-2024 तक 40 लाख से अधिक नमूनों का परीक्षण किया गया, जिनमें से 18.8 प्रतिशत में रोगाणु की पहचान की गई थी।
भाषा शफीक दिलीप
दिलीप
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