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Friday, 29 March, 2024
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MEA की नई स्टडी कैसे ‘रीजनल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क’ बनाने और चीन के BRI खतरे से निपटने में सहायक होगी

नॉर्थ ईस्टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड की स्टडी ‘सरकार को यह समझने में मदद करेगी कि रीजनल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तैयार करने के लिए कैसे भारत के अंदर और बाहर से होने वाले मौजूदा निवेश का फायदा उठाया जा सकता है.’

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नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय (एमईए) ने देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के मौजूदा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट और पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार में भारतीय सहायता से चलने वाले विकास संबंधी प्रोजेक्ट की मैपिंग के लिए एक विस्तृत स्टडी शुरू की है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में ये बात सामने आई है.

एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि एक बार पूरा हो जाने पर यह अध्ययन सरकार को ‘यह पता लगाने में सक्षम बनाएगा कि भारत और भारत के बाहर मौजूदा निवेश को कैसे एक साथ जोड़ा जा सकता है और एक रीजनल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तैयार करने में इसका लाभ उठाया जा सकता है.’

यह अध्ययन सरकार संचालित सार्वजनिक वित्तीय संस्थान नॉर्थ ईस्टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनईडीएफआई) की तरफ से किया जाएगा.

एक दूसरे अधिकारी के मुताबिक, भारत अब देश के पूर्वोत्तर और पड़ोसी क्षेत्रों के कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है.

अधिकारी ने कहा कि ये सब देश के व्यापक सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा, खासकर यह देखते हुए कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार आदि पड़ोसी देशों पर चीनी खतरा बढ़ रहा है.

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मोदी सरकार में कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, खासकर तब जब ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के साथ-साथ ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ पर पूरा जोर दिया जा रहा है.

सूत्रों ने कहा कि यह स्टडी ‘चीन पर नजर’ रखते हुए और पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत की तरफ से निभाई जा रही बड़ी भूमिका को और मजबूत करने के लिए कराई जा रही है.


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मौजूदा प्रोजेक्ट और नए प्रयास

पूर्वोत्तर में भारत की कुछ प्रमुख परियोजनाओं—जिसमें पड़ोसी देशों की भी भागीदारी है—में कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना और री-टिड्डीम रोड प्रोजेक्ट शामिल हैं. ये एक दशक से अधिक समय से चल रहे हैं और इसका उद्देश्य भारत को म्यांमार और बांग्लादेश के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ना है.

इस साल के शुरू में भारत ने बुनियादी ढांचे के स्तर पर बांग्लादेश के साथ कनेक्टिविटी व्यापक स्तर पर बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी.

मार्च में प्रधानमंत्री मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ‘मैत्री सेतु’ का वर्चुअली उद्घाटन किया था जिससे हर तरफ से घिरे पूर्वोत्तर क्षेत्र को चटगांव पोर्ट तक आसान पहुंच उपलब्ध कराई गई है.

इन परियोजनाओं से इतर भारत ऐसे कई अन्य प्रस्तावों पर अमल कर रहा है या फिर उनकी योजना बना रहा है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करना है.

इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स को संबोधित करते हुए विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला ने स्टडी का उल्लेख किया जब उन्होंने देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र और उससे आगे कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की अहमियत बताई.

श्रृंगला ने बताया, ‘हमने नॉर्थ ईस्टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड से एक स्टडी शुरू कराई है जिसमें पूर्वोत्तर के कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट और इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों में भारतीय समर्थित कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की ‘मैपिंग’ की जाएगी. इसके पीछे इरादा तालमेल बैठाना और विकास के लिए संभावित कॉरीडोर की पहचान करना है.’

भारत पूर्वी क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए कई सार्वजनिक कूटनीतिक प्रयास भी कर रहा है.

श्रृंगला ने कहा, ‘हमने कई सार्वजनिक कूटनीति पहल के जरिये ऐसे हितधारकों और भागीदारों के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाने की कोशिश की है.’

श्रृंगला के मुताबिक, विदेश मंत्रालय (एमईए) भारत की पब्लिक डिप्लोमैसी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ कई नए ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 संवादों और सम्मेलनों का भी समर्थन कर रहा है जो परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में और भी फायदेमंद साबित होंगे.

विदेश सचिव ने बताया कोलकाता में बिम्सटेक पर केंद्रित संवाद, कोलकाता-ढाका संवाद आदि ऐसे ही हालिया प्रयासों में शामिल हैं जिसके तहत भारत और बांग्लादेश के थिंक टैंक और शैक्षणिक संस्थान एक मंच पर आते हैं. इसी तरह शिलांग का ‘नदी’ सम्मेलन क्षेत्र के भीतर सहयोग पर केंद्रित है और उत्तरी बंगाल और सिक्किम में होने वाले कंचनजंगा संवाद को बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) पर केंद्रित किया गया है.


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‘पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट में भारत अच्छा काम कर रहा है’

एक अनुभवी राजनयिक और थिंक टैंक गेटवे हाउस में विशिष्ट फेलो राजीव भाटिया का मानना है कि इस स्टडी का मकसद यह भी हो सकता है कि बहुत से लोग यह बात जानते ही नहीं हैं कि पूर्वोत्तर में बुनियादी कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के विकास में भारत काफी प्रगति कर रहा है. .

उन्होंने कहा, ‘जानकारी और समझ के अभाव में हम केवल मेगा प्रोजेक्ट ही रेखांकित करते हैं और यह देश के लिए शर्मिंदगी का सबब भी बनता है. इसलिए, देश के उस हिस्से में चलने वाले प्रोजेक्ट की मैपिंग करने वाले इस तरह के एक अध्ययन की बेहद जरूरत थी. आम धारणा के उलट हमने उस क्षेत्र में काफी कुछ किया है और कनेक्टिविटी के मामले में बहुत कुछ हासिल किया है.’

इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी की कमी ने व्यापार को काफी प्रभावित भी किया है. उदाहरण के तौर पर सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) के एक अध्ययन—क्षेत्रीय संपर्क के लिए भारत का नया दृष्टिकोण—के मुताबिक पूर्वोत्तर क्षेत्र में 1,500 किलोमीटर लंबी सीमा के जरिये म्यांमार के साथ होने वाला भारत का व्यापार देश मध्य अमेरिकी क्षेत्र निकारागुआ के साथ होने वाले कुल व्यापार के बराबर ही है.

सीएसईपी अध्ययन में बताया गया है, ‘चीन और उपमहाद्वीप में उसके अभूतपूर्व दखल को भू-रणनीतिक स्तर पर जवाब देना नई कनेक्टिविटी पॉलिसी तैयार करने की पहली और सबसे महत्वपूर्ण वजह रही है. भारत का क्षेत्रीय प्रभाव खत्म करते हुए चीन ने दक्षिण एशिया में राजनयिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अपना दबदबा कायम कर लिया है.’

अध्ययन के मुताबिक, बुनियादी ढांचे के संदर्भ में नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार के साथ सीमाओं पर व्यापार और आवाजाही की सुविधा बढ़ाने के लिए एक दर्जन से अधिक नए एकीकृत चेक पोस्ट का निर्माण या विस्तार किया जा रहा है.

भाटिया ने कहा कि 2022 में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन से पूर्वोत्तर की परियोजनाओं को और गति मिलेगी, जिसमें कनेक्टिविटी संबंधी एक मास्टरप्लान जारी किए जाने की उम्मीद है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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