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Friday, 19 April, 2024
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कैसे 3 नॉन-टेकी महिलाएं भारतीय नॉन-प्रॉफिट संस्थाओं में टेक्नोलॉजी को लेकर हिचकिचाहट दूर कर रहीं

भले ही उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि टेक्नोलॉजी से जुड़ी नहीं है, लेकिन भारत के विभिन्न हिस्सों की तीन महिलाएं गैर-लाभकारी संस्थाओं का मदद कर ही हैं ताकि वो अपना काम बढ़ाने के लिए पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकें.

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नई दिल्ली: भारत के विभिन्न हिस्सों की रहने वाली तीन महिलाएं रिंजू राजन, अनुषा मेहर भार्गव और अखिला सोमनाथ कहने को तो तकनीकी तौर पर कोई विशेषज्ञता नहीं रखती हैं. लेकिन प्रौद्योगिकी—और एक सकारात्मक ताकत के तौर पर इसकी क्षमताएं—ही उनके पूरे कामकाज के संचालन का आधार हैं.

सूचना प्रौद्योगिकी में कोई शैक्षणिक पृष्ठभूमि न रखने वाली राजन, भार्गव और सोमनाथ ने एक गैर-लाभकारी संस्था बनाई है जो भारत की गैर-लाभकारी संस्थाओं—खासकर जो छोटी हैं—की प्रौद्योगिकी को लेकर उनके डर से उबरने में मदद कर रही है. इसके पीछे विचार उनके आधार को और व्यापक बनाना और उन्हें बड़ी कंपनियों के साथ मुकाबले की स्थिति में लाना है.

2018 में स्थापित कंपनी टेकफोरगुड (टी4जी) कम्युनिटी टेकी वॉलंटियर के एक समूह के जरिये काम करती है—जिन्हें ‘तकनीकी सलाहकार’ कहा जाता है और इन्हें गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों से लिया जाता है. ये किसी निर्धारित लक्ष्य के लिए एक आदर्श सॉफ्टवेयर के साथ विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से गैर-लाभकारी संस्थाओं का मार्गदर्शन करते हैं.

इनकी संस्था सोशल मीडिया के जरिये प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के बारे में जागरूकता फैलाती है और वर्कशॉप आयोजित करती है, जिसमें हिस्सा लेने वाली सभी गैर-लाभकारी संस्थाएं अपने-अपने मुद्दों को सामने रखती हैं. फिर यह सुनिश्चित किया जाता है कि कौन ‘तकनीकी सलाहकार’ इस समस्या को सुलझा सकता है.

टी4जी का काम सॉफ्टवेयर की सोर्सिंग आसान बनाना भी है, वे संस्थाओं को सही सॉफ्टवेयर की खरीद के लिए उचित सलाह देते हैं और इसके लिए सौदे पर बातचीत में भी मदद करते हैं. वह उन्हें बजट के अनुकूल समाधान बताते हैं. कई प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ विकसित संपर्कों का नेटवर्क इस काम को आसान बनाने में मदद करता है.

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कंपनी का दावा है कि पिछले तीन वर्षों में उसने करीब 600 गैर-लाभकारी संस्थाओं की मदद की है.


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एक साथ कैसे आईं

तीन सह-संस्थापकों में से राजन एकमात्र ऐसी सदस्य हैं जिन्होंने एक प्रौद्योगिकी संस्थान में अध्ययन किया है. हालांकि, आईआईटी-मद्रास की इस पूर्व छात्रा ने लिबरल आर्ट्स और सोशल साइंस के अपने प्रोग्राम के तहत इस संस्थान से डेवलपमेंट स्टडीज में इंटीग्रेटेड मास्टर डिग्री ली है.

राजन का मानना है कि तकनीक को एक समाधान के तौर पर देखने की दिशा में का उनका झुकाव उनके आईआईटी से जुड़ाव की वजह से हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘मेरे दोस्त इंजीनियर हैं, और मुझे लगता है प्रौद्योगिकी को एक सकारात्मक ताकत मानने की मेरी सोच इन दोस्तों और आईआईटी के प्रोफेसरों से प्रभावित होने के कारण ही बनी है.’

सोमनाथ मनोविज्ञान, पत्रकारिता और अंग्रेजी में स्नातक हैं, जिन्होंने 17 साल की उम्र में ही बतौर वालंटियर गैर-लाभकारी संस्था के साथ काम करना शुरू किया था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मैं करीब 18 साल की थी, मेरे दोस्त पार्टियों आदि में व्यस्त रहते थे और मैंने खुद को किसी तरह बच्चों को पढ़ाते पाया. यह कुछ ऐसा है जिसे करना मुझे बहुत पसंद था.’

वहीं, भार्गव साहित्य में स्नातक हैं और इंटरनेशनल रिलेशन पर मास्टर की डिग्री हासिल की है. उन्हें डिजिटल आर्ट बनाना पसंद है, लेकिन वह कुछ ऐसा है जिसे वह खुद से ही सीखा एक शौक बताती हैं.

इस तिकड़ी के लिए न तो कोई ‘आह मोमेंट’ था और न ही अकस्मात ऐसा कुछ हुआ, जिसने उन्हें टी4जी स्थापित करने के लिए प्रेरित किया. इसके बजाय एक के बाद एक हुई कई घटनाओं ने कुछ ऐसी स्थितियों को जन्म दिया जिससे ये तीनों एक साथ आ गईं.

इन तीनों ने गैर-लाभकारी क्षेत्र में काम किया था और सीधे तौर पर यह अनुभव किया कि कैसे टेक्नोलॉजी ग्रामीण कर्नाटक में किसी छोटी नॉन-प्रॉफिट संस्था को तुलनात्मक तौर पर बराबरी की स्थिति में ला सकती है, उदाहरण के तौर पर फंडिंग (ऑनलाइन क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म आदि के माध्यम से) जैसे संसाधनों को खोजने में उन्हें भी बड़ी नॉन-प्रॉफिट संस्थाओं के समान अवसर मिल सकेंगे.

तीनों की मुलाकात एनजीओ एमनेस्टी इंटरनेशनल में हुई थी, जहां उन्होंने एक साथ काम किया और वहीं इनकी दोस्ती बढ़ी.

भार्गव ने कहा, ‘मैंने उन्हें (राजन और सोमनाथ को) काफी ईमानदार इंसान के तौर पर देखा और महसूस किया कि इन मूल्यों की छाप उनके काम में भी नजर आएगी.’

इसके बाद में उन्होंने टी4जी शुरू करने का फैसला किया.

अपने उद्देश्यों के बारे में बताते हुए सोमनाथ ने कहा, ‘गैर-लाभकारी संस्थाएं दुनिया की कुछ सबसे कठिन समस्याओं को हल करने की कोशिश कर रही हैं…फिर भी, मेरा अनुभव बताता है कि गैर-लाभकारी क्षेत्र प्रौद्योगिकी को अपनाने में संकोच कर रहा है.’

भार्गव ने कहा, यह आम धारणा है कि यदि कोई बड़ी, लाभकारी कंपनी किसी सॉफ़्टवेयर या एप का उपयोग कर रही है तो वह महंगा होगा और उपयोग के लिहाज से जटिल होगा.’

टी4जी की कोर टीम मौजूदा समय में पूरे देश में फैली है. भार्गव लखनऊ और मुंबई दोनों जगहों से काम करती हैं, जबकि राजन और सोमनाथ बेंगलुरु से काम करती हैं. दो रेजिडेंट टेक एक्सपर्ट संतोष लौरदराज और गुरुप्रकाश सेकर चेन्नई से काम करते हैं. ये दोनों टी4जी वर्कशॉप का काम देखते हैं और इसके ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का प्रबंधन संभालते हैं.

(L-R) Lourdraj, Bhargava, Rajan, Sekar, Somanath | Credit: Tech4Good Community
(बाएं से दाएं) लौरदराज, भार्गव, राजन, सेकर, सोमनाथ | Credit: Tech4Good Community

गठन के बाद से ही यह पूरी टीम अपने-अपने शहरों से ही काम करती है, और केवल कभी-कभी बेंगलुरु में व्हीलर रोड स्थित अपने कार्यालय में मिलती है.

भार्गव ने बताया, ‘नॉन-टेकी लोगों की एक टीम के तौर पर करीब तीन साल से रिमोटली काम करने के बाद अब हम इसका एक उदाहरण पेश करना चाहते हैं कि तकनीकी से डरने जैसी कोई बात नहीं है.’

टी4जी भारतीय कंपनी अधिनियम की धारा-8 के तहत एक गैर-लाभकारी संस्था के तौर पर पंजीकृत है, जो उन फर्मों पर लागू होती है जिनका उद्देश्य ‘वाणिज्य, कला, विज्ञान, खेल, शिक्षा, अनुसंधान, सामाजिक कल्याण, धर्म, दान, पर्यावरण संरक्षण सुरक्षा या ऐसी किसी अन्य चीज’ को प्रोमोट करना होता है.

ऐसी कंपनियां लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ काम नहीं करती हैं और इससे मिलने वाले लाभ को उन्हें संगठन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में ही इस्तेमाल करना होता है. भारत में अनुमानित तौर पर 30 लाख गैर-लाभकारी संस्थाएं हैं.

टी4जी का संचालन—तीन सह-संस्थापकों और इसके दो अन्य कर्मचारियों के वेतन सहित—मौद्रिक अनुदान के माध्यम से होता है.

मौजूदा समय में इसे दो अनुदान मिल रहे हैं जिसमें एक दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के प्रगति/द नज सेंटर फॉर सोशल इनोवेशन एक्सेलेरेटर प्रोग्राम के तहत भारत स्थित तकनीकी गैर-लाभकारी इनक्यूबेटर की एक सीएसआर पहल है और दूसरा ग्रांट मुंबई स्थित एडेलगिव फाउंडेशन की तरफ से मिल रहा है जो वित्तीय सेवा फर्म एडलवाइस की एक सीएसआर पहल है जो गैरसरकारी संगठनों को फंड और सहयोग देती है.

इसमें गैर-लाभकारी संस्था में अभी 25 वालंटियर काम कर रहे हैं, इनकी संख्या दोगुनी करने पर विचार किया जा रहा है.


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महामारी के दौरान मदद

प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए टी4जी का अब तक का सबसे बड़ा अवसर महामारी के दौरान आया, क्योंकि लगभग सभी काम कोविड प्रतिबंधों के कारण ऑनलाइन होने लगे हैं.

जैसे ही कोविड संकट सामने आया गैर-लाभकारी क्षेत्र तेजी से और ज्यादा राहत कार्यों को चलाने की कोशिश में जुट गया था. टी4जी को भी लगा कि यह बताने के लिए यही सही मौका है कि कैसे केवल ऑनलाइन काम करने वाले संगठनों के लिए टेक्नोलॉजी कितनी मददगार हो सकती है.

टी4जी ने ऑनलाइन वर्कशॉप आयोजित कीं और लगभग 350 गैर-लाभकारी संस्थाओं को यह प्रशिक्षण दिया कि वे महामारी के दौरान कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल कर सकते हैं जिसमें डेटा-कलेक्शन टूल और प्रॉसेस मैनेजमेंट टूल से लेकर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट टूल तक शामिल हैं. गैर-लाभकारी संस्थाओं को सब्सक्रिप्शन छूट और सॉफ्टवेयर पर छूट के बारे में भी जानकारी दी गई.

राजन ने कहा कि टी4जी मॉडल लगातार आगे बढ़ने की एक बड़ी वजह है उन संगठनों के साथ लगातार नेटवर्क बनाए रखना जो गैर-लाभकारी संस्थाओं का वित्त पोषण करते हैं, और सॉफ्टवेयर फर्मों से छूट दिलाने वाले सौदे कराना.

उदाहरण के तौर पर कोविड के दौरान आयोजित वर्कशॉप सीरीज को सॉफ्टवेयर फर्म सेल्सफोर्स, सामाजिक कार्य क्षेत्र में काम करने वाली निवेश फर्म ओमिडयार नेटवर्क इंडिया और एडेलगिव फाउंडेशन ने स्पांसर किया था.

सह-संस्थापकों के मुताबिक, टेक कंपनियों के साथ रिश्ते बनाना भी महत्वपूर्ण है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि उनके कर्मचारी वर्कशॉप के दौरान टी4जी के माध्यम से आवश्यक जानकारियां देने के लिए उपलब्ध हों. अब तक टी4जी वालंटियर गूगल, फेसबुक, सेल्सफोर्स, एटलसानिया, रेजरपे और चेंजडॉटओआरजी (change.org.) से लिए गए हैं.

दिप्रिंट से बातचीत में दो गैर-लाभकारी संस्थाओं, जिनके साथ टी4जी ने काम किया है, ने बताया कि कैसे उनके सहयोग ने उन्हें अपने काम को बेहतर ढंग से संचालित करने में मदद की.

शिक्षा क्षेत्र की गैर-लाभकारी संस्था ट्रांसफॉर्म स्कूल, पीपल फॉर एक्शन में ऑपरेशंस डायरेक्टर तनुश्री नारायण शर्मा ने कहा कि उन्हें टी4जी की एक वर्कशॉप में एक ऑनलाइन वर्क टूल ट्रेलो की जानकारी मिली.

उन्होंने बताया कि ट्रेलो के साथ, ‘मैं दर्जनों ईमेल के झंझट के बिना ही हमारे पूरे संगठन के कामकाज को विजुअली देख पा रही हूं.’

पूर्वोत्तर में काम करने वाले शिक्षा क्षेत्र के एक अन्य एनजीओ, सनबर्ड ट्रस्ट के सदस्य प्रतीप गांगुली ने बताया कि उन्हें सैकड़ों लाभार्थियों का विवरण लिखने और फिर उन्हें एक्सेल शीट में भरने का काम करने में काफी कठिनाई होती थी.

गांगुली ने बताया कि टी4जी की एक ऑनलाइन वर्कशॉप में उन्होंने ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर ओपेनडाटाकिट के बारे में पता चला जिसे ‘संसाधन सीमित सेटिंग्स’ में डाटा कलेक्ट करने के उद्देश्य से बनाया गया है.

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘सनबर्ड जैसे सुदूर क्षेत्रों में काम करता है उसके लिए ओपनडाटाकिट एकदम आदर्श सॉफ्टवेयर है क्योंकि इसके काम करने के लिए इंटरनेट की जरूरत नहीं होती है और जब भी कनेक्टिविटी उपलब्ध होती है, डाटा आसानी से अपलोड किया जा सकता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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