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Wednesday, 24 April, 2024
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हिंदी में शब्दों की संख्या 20,000 से बढ़कर 1.5 लाख हो गई और लोगों को पता नहीं चला

हिंदी के सरकारी शब्दकोशों में बिना शोरगुल के नए शब्द शामिल किए जाते हैं. ना तो इस विषय में कोई घोषणा की जाती है, ना ही इस प्रक्रिया का कोई रिकॉर्ड रखा जाता है.

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क्या आप कट्टर हिंदीवादी हैं जो ट्रेन को ‘लौहपथगामिनी’ कहना पसंद करता है? यदि ऐसा है, तो अब आप ‘ट्रेन’ कहें तो भी आपकी शुद्धतावादी छवि खराब नहीं होगी.

गत दो दशकों के दौरान रोज़मर्रा के उपयोग की हिंदी का शब्द-भंडार कई गुना बढ़ चुका है. हिंदी की संभाल के लिए उत्तरदायी शीर्ष सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि भारी संख्या में ‘ट्रेन’ जैसे विदेशी शब्दों को आत्मसात करने से आम बोलचाल की हिंदी के शब्द-भंडार में शब्दों की संख्या करीब 20,000 से बढ़ कर 1.5 लाख के आंकड़े को छू चुकी है.

लेकिन, सरकार द्वारा प्रकाशित हिंदी शब्दकोश में नए शब्दों को बिना धूमधड़ाके के शामिल कर लिया जाता है, जबकि ब्रिटेन से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा के प्रतिष्ठित शब्दकोश ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में नए शब्दों को शामिल किए जाने पर विधिवत सार्वजनिक घोषणा कर दुनिया को बताने की परंपरा है.

भारत में हिंदी के शब्दकोश संकलित और प्रकाशित करने की जिम्मेवारी केंद्रीय हिंदी निदेशालय की है. मानव संसाधन मंत्रालय के अधीनस्थ यह संस्था हिंदी के प्रसार और संरक्षण का काम देखती है. निदेशालय के निदेशक प्रोफेसर अवनीश कुमार ने कहा, ‘बीते वर्षों में हिंदी भाषा विकसित हुई है. हमने दूसरी भाषाओं से नए शब्द लिए हैं और शब्दकोश को लगातार अद्यतन किया जाता रहा है.’

उन्होंने बताया, ‘आधिकारिक हिंदी शब्दकोश को हर तीन से पांच वर्ष में अपटेड किया जाता है और नए शब्द जोड़े जाते रहे हैं.’ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के विपरीत, केंद्रीय हिंदी निदेशालय ना तो नए शब्दों को जोड़े जाने की कोई घोषणा करता है, ना ही जोड़े गए शब्दों की सूची तैयार करता है. इतना ही नहीं, नए जुड़े शब्दों की संख्या का रिकॉर्ड तक नहीं रखा जाता है.

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कुमार ने भी माना कि सरकार शब्दकोश में शामिल नए शब्दों का रिकॉर्ड नहीं रखती है, पर उन्होंने बताया कि आम बोलचाल और सरकारी कामकाज में इस्तेमाल शब्द-भंडार पिछले 20 वर्षों में 7.5 गुना बढ़ा है. शब्दों की संख्या 20,000 से बढ़ कर 1.5 लाख पहुंच चुकी है.


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ये शब्द उन अनुमानित 6.5 लाख शब्दों की वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली के अतिरिक्त हैं, जिनमें कि विज्ञान और मानविकी की सभी शाखाएं सम्मिलित हैं. और, इन सबको मिला कर हिंदी का व्यापक शब्द-भंडार बनता है.

हिंदी शब्दकोश के 20,000 शब्दों का पिछला आंकड़ा एक पुरानी भाषा के संदर्भ में कम लग सकता है, पर विशेषज्ञों के अनुसार शब्दकोश के आरंभिक प्रकाशन को ‘औपचारिकता मात्र’ माना गाया था. जब 20 वर्ष पूर्व पहली बार शब्दों का संकलन किया गया था तो सिर्फ तत्काल ध्यान में आने वाले शब्दों को ही उसमें रखा गया था.

‘भाषा विकसित नहीं होगी’

जानकारों का कहना है कि भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी भाषा की प्रगति का रिकॉर्ड रखने का संगठित प्रयास नहीं किया जाना भाषा के विकास की दृष्टि से हानिकारक है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अपूर्वानंद का कहना है कि विभिन्न संस्थानों से जुड़े शिक्षाविद हिंदी की एक परियोजना शुरू करने के लिए सरकार से अनेकों बार आग्रह कर चुके हैं, पर इसका कोई असर नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘भारत के साथ समस्या ये है कि हमारे यहां ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी जैसी एक निरंतर चलने वाली हिंदी शब्दकोश परियोजना नहीं है. ऐसी किसी परियोजना की अनुपस्थिति में हिंदी भाषा का विकास नहीं हो सकेगा. नए शब्द जोड़े जाने पर सरकार कोई घोषणा नहीं करती, जबकि भाषा की प्रगति के लिए ऐसी घोषणाएं अवश्य की जानी चाहिए.’

नए शब्द अपनाए जाने के नियम

हिंदी शब्दकोश में नए शब्दों को शामिल करने के संदर्भ में कतिपय नियमों का पालन किया जाता है और एक समिति इस प्रक्रिया की देखरेख करती है.

जब दूसरी भाषा का कोई शब्द चलन में आ गया दिखता है, तो समिति उस पर विचार करती है, उसकी उत्पत्ति पर गौर करती है और उसका निकटतम हिंदी विकल्प ढूंढने का प्रयास करती है. यदि कोई हिंदी विकल्प नहीं मिलता है तो फिर दूसरी भाषा के उस शब्द को ही हिंदी शब्दकोश में शामिल कर लिया जाता है.

इस संबंध में मानव संसाधन मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार जहां तक संभव हो, व्यापक चलन में आ चुके किसी अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्द के मौजूदा अंग्रेजी रूप को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की लिपि में आत्मसात किया जाना चाहिए.

उदाहरण के लिए हाइड्रोजन (H) और कार्बन डाइआक्साइड (CO2) को हिंदी में इन्हीं नामों से जाना जाता है. यही बात रेडियो, रडार, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि के बारे में भी कही जा सकती है. पश्चिमी नामों से उत्पन्न शब्दों के बारे में भी यही प्रावधान है, जैसे कार्ल मार्क्स से मार्क्सवाद और लुई ब्रेल के नाम से ब्रेल लिपि.

जब पारिभाषिक शब्दों के हिंदी समतुल्य चुनने की बात आती है तो, निर्धारित प्रावधानों के अनुसार, सरलता, अर्थ की सटीकता और समझने में आसानी को महत्व दिया जाना चाहिए. संस्कृत मूल वाले शब्द ढूंढने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए जो कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी एक जैसे हो सकते हैं. अंग्रेजी, पुर्तगाली और फ्रेंच भाषा के शब्द खूब प्रचलन में है, जैसे- टिकट, सिग्नल, पेंशन, ब्यूरो, रेस्टोरेंट, डिलक्स आदि.

‘शुद्ध अराजकता’

हालांकि, शब्दकोश के विस्तार से आमतौर पर भाषा का दायरा बढ़ा है, पर विज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे तकनीकी विषयों की किताबों के अनुवाद से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों, खास कर नए सिद्धांतों और नई खोजों से संबंधित शब्दों के हिंदी समतुल्य को लेकर अराजकता का आलम है.

माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला की किताब ‘हिट रिफ्रेश’ और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की ‘आई डू व्हाट आई डू’ समेत कई किताबों का अनुवाद कर चुके दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभात रंजन का कहना है कि विषय विशेष से संबंधित पारिभाषिक शब्द विकसित करने में, जिन्हें कि साहित्य में एकरूपता से इस्तेमाल किया जा सके, हिंदी नाकाम रही है.

उन्होंने कहा, ‘जब लोग हिंदी में अनुवाद ढूंढते हैं, तो वे बहुत सरल हिंदी चाहते हैं, पर हिंदी हमेशा आसान नहीं हो सकती है.’

एक उदाहरण के ज़रिए अपनी बात को विस्तार देते हुए रंजन ने कहा, ‘जब ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ जैसे तकनीकी शब्द का हिंदी में अनुवाद किया जाता है तो वह ‘कृत्रिम बुद्धि’ बन जाता है, जो कि आम पाठकों को शायद आसानी से समझ नहीं आए, ऐसे में हम ऐसे शब्दों को जस का तस रहने देते हैं.’


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उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके लिए अलग-अलग लोग अलग-अलग हिंदी अनुवाद पेश करते हैं…मानक प्रयोग की कोई व्यवस्था नहीं है और इससे काफी अराजकता फैलती है.’

दिप्रिंट ने जिन अनुवादकों से संपर्क किया उनका कहना है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2017 में सभी हिंदी अनुवादकों से सरकार के आधिकारिक शब्दकोश को निर्णायक मानने को कहा था, जो कि उनके अनुसार व्यावहारिक नहीं है.

एक अनुवादक ने कहा, ‘यदि आप सरकार के आधिकारिक हिंदी शब्दकोश के तकनीकी शब्दों को देखें तो सिर धुनने का मन करेगा. हिंदी में वैज्ञानिक शब्दावली का ढंग से विकास नहीं हो पाया है क्योंकि भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अच्छी किताबें हिंदी में नहीं लिखी गई हैं… यह बात बहुत मायने रखती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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