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Friday, 29 March, 2024
होमदेश'धोखे से कराई गई मेरी शादी, यह औरत नहीं है': कोर्ट में ‘जेंडर संबंधी धोखाधड़ी’ के मामले बताते हैं पूरी कहानी

‘धोखे से कराई गई मेरी शादी, यह औरत नहीं है’: कोर्ट में ‘जेंडर संबंधी धोखाधड़ी’ के मामले बताते हैं पूरी कहानी

सुप्रीम कोर्ट में हरिओम के मामले की सुनवाई चल रही है. इसमें यह दावा किया गया है कि उनकी शादी धोखे से ‘एक तरह के ट्रांसजेंडर के साथ कर’ दी गई. हालांकि, इस तरह के मामलों में सिर्फ़ मर्द ही पीड़ित नहीं हैं.

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नई दिल्लीः मानसून में हुई शादी शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गई. पानी की एक भी बूंद इसमें कोई बाधा नहीं बनी. लेकिन बारात के जाने के बाद, 29 साल के हरिओम की उम्मीदों पर उसकी पत्नी प्रियंका ने जैसे घड़ों पानी उडेल दिया. पहले उसने हरिओम को बताया कि उसके पीरियड्स चल रहे हैं, इसलिए उसे थोड़ा इंतजार करना होगा. यह इंतजार उसने कुछ दिनों तक किया लेकिन जैसे ही शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की, 22 वर्षीय प्रियंका अपने परिवार वालों से मिलने के लिए मायके चली गई. अब हरिओम अपना धैर्य खो चुका था.

उसे शक भी होने लगा था. जब प्रियंका वापस आई, तो फिर उसने शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की. उस समय उसे पता चला कि प्रियंका के गुप्तांग में बच्चे की तरह जननांग है.

हरिओम अपनी शादी को खत्म करने के लिए तमाम अदालतों में अपनी यह कहानी सुना चुके हैं. वह अब 34 साल के हो चुके हैं. उनकी शादी 13 जुलाई, 2016 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के नजदीक के लश्कर में हुई थी. उसके बाद से ही वे दावा करते रहे हैं कि उनकी पत्नी ‘वास्तव में औरत नहीं है’ और उनके साथ धोखा हुआ है. वह दूसरों की तरह सेक्स नहीं कर सकती या मां नहीं बन सकती है.

हरिओम ने पिछले अक्टूबर में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. प्रदेश के हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं जिसके आधार पर प्रियंका और उसके पिता के ऊपर धोखाधड़ी का मामला दर्ज हो सके. इस मामले की सुनवाई अब शीर्ष कोर्ट कर रहा है, जिसकी कॉपी दिप्रिंट के पास है.

हालांकि, प्रियंका ने इन दावों का खंडन करते हुए दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया है. पिछले साल एमपी हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में प्रियंका ने कहा था कि हरिओम ‘बिना किसी वजह’ के उसको प्रताड़ित करता है और ‘लगातार’ दहेज की मांग करता रहा है.

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यह कहानी बहुत असामान्य नहीं लगती है. लेकिन, यह जैसी दिखती है उतनी सरल भी नहीं है. पूरे देश के कोर्ट के आदेशों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कई पतियों ने इस बात का दावा किया है कि उनकी पत्नियां वास्तव में औरत नहीं हैं.

हालांकि, ये मामले सीधे तौर पर पुरुषों के ‘पीड़ित’ या ‘धोखाधड़ी के शिकार’ होने से संबंधित नहीं हैं. ऐसे तमाम मामलों में आमतौर पर जन्म के साथ इंटरसेक्स के साथ पैदा होने वाली महिलाएं अपने जैविक मानदंडों को पूरा न कर पाने की वजह से पारिवारिक और सामाजिक कलंक का सामना करती हैं, पहचान छिपाने को मजबूत होती हैं और हिंसा की शिकार होती हैं.

गुवाहाटी की ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट और एडवोकेट स्वाति बरुआ कहती हैं कि जब वे पुलिस में शिकायत करती हैं तब भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता है. उन्होंने कहा, ‘मेरा अनुभव रहा है कि पुलिस इन ट्रांसजेंडर की शिकायत दर्ज करने को लेकर बहुत गंभीर नहीं रहती. लेकिन, अगर उनके खिलाफ कोई मामला आता है, तो पुलिस केस दर्ज करने से नहीं चूकती.’

इस तरह के मामलों में अक्सर कानूनी दिक्कतें भी देखने को मिलती हैं, जहां कोर्ट में आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच जटिल लड़ाइयां होती हैं. एक ओर जहां पति धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शादी खत्म करने की बात कहते हैं. वहीं, औरतें दहेज की मांग और उत्पीड़न का आरोप लगाती हैं. एक प्रकार से महिलाओं की निजी मेडिकल रिपोर्ट, सार्वजनिक रिकॉर्ड बन जाती है. उनको एक तरह से ‘लेबल’ करने की कोशिश की जाती है और उन्हें एक इंसान तो मानते हैं, लेकिन वह ‘औरत नहीं होती.’

हरिओम का पक्ष : ‘एक खास तरह की ट्रांसजेंडर’

जब हरिओम को पता चला कि उसकी औरत को ‘पुरुष जननांग’ है, तो उसकी शादी 2016 में टूट गई. तबसे वह प्रियंका और उसके पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति हथियाना) के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराने के लिए निचली कोर्ट से लेकर, हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काट रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में हरिओम ने कहा है कि प्रियंका में शादी को जारी रखने के लिए महिलाओं जैसे जैविक गुण नहीं हैं, वह बच्चे नहीं पैदा कर सकती’ और वह ‘एक ट्रांसजेंडर की तरह है.’ हालांकि, मेडिकल रिपोर्ट में कुछ ज्यादा ही जटिलता देखने को मिलती है.

शादी के सिर्फ दो हफ्तों बाद 28 जुलाई 2016 को एक मेडिकल जांच में पता चला कि प्रियंका को ‘इंपरफोरेट हाइमेन’ की समस्या है. यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें हाइमन के कारण योनि खुल नहीं पाती. कुछ दिनों बाद 3 अगस्त 2016 को प्रियंका के डाक्टरों ने उसे ऑपरेशन कराने की सलाह दी. उस समय उसमें कंजेटियल एड्रेनल हाइपरप्लासिया (सीएएच) पाया गया. यह एक ऐसी जैविक स्थिति है, जिसकी वजह से जननांग का निर्धारण मुश्किल हो जाता है.

याचिका में यह भी कहा गया कि सितंबर 2016 में उसकी वेजिनोप्लास्टी की शल्य क्रिया (योनि की संरचना को ठीक करना) कराई गई, ताकि क्लिटरल को कम किया जा सके.

इसी बीच हरिओम ने प्रियंका के पिता से मुलाकात की और उन पर आरोप लगाया कि उसकी शादी में धोखाधड़ी हुई है. साथ ही, उसने यह भी कहा कि प्रियंका को वे उसके मायके ‘वापस ले जाएं’. हालांकि, हरिओम का कहना है कि उसके ससुर अपने दूसरे रिश्तेदारों के साथ उसके घर आए, उसके साथ ‘गाली-गलौज’ की. याचिका में कहा गया है कि विवाद बढ़ने पर प्रियंका के पिता बेमन से प्रियंका को अपने साथ लेकर गए. ‘उसने यह भी कहा कि उन्होंने धोखे से शादी क्यों की?’

बाद में, हरिओम ने हिंदू विवाह कानून के सेक्शन 12 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें उसने मांग की उसकी शादी को निरस्त किया जाए क्योंकि प्रियंका ‘शादी को बनाए रखने के लिए ज़रूरी शारीरिक संबंध को बनाए रख पाने में असमर्थ है.’ .

सेक्शन 12 के तहत विवाह को रद्द करने की बात कई आधार पर की गई है, इसमें यह भी कहा गया है कि अगर पति या पत्नी ‘नपुंसकता के शिकार है और शारीरिक संबंध बनाने में अक्षम है तो विवाह निरस्त किया जा सकता है.’

ग्वालियर के प्रथम श्रेणी ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के यहां अगस्त 2017 में उन्होंने एक याचिका दायर में दावा किया कि ‘वास्तव में उनकी पत्नी औरत नहीं है.’ जब ट्रायल कोर्ट ने प्रियंका को मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया तो उसने यह जांच कराने से इंकार कर दिया. उसके बाद, हरिओम और उसकी बहन की ओर से मई 2019 में दायर याचिका के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने प्रियंका और उसके पिता के ऊपर सेक्शन 420 के तहत शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया.

जब मध्य प्रदेश की हाईकोर्ट ने पिछले साल जुलाई में ट्रायल कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया, तो हरिओम ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उसने दावा किया कि 2013 से ही सीएएच की जानकारी होने और हार्मोन की दवाइयां लेने के बावजूद प्रियंका यह बात शादी से पहले उससे छिपाई थी.

निजता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार : प्रियंका का मामला

प्रियंका ने जनवरी 2017 में हरिओम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज किया. उन्होंने यह भी कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है कि वह महिला नहीं हैं.

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में उनकी ओर से दायर की गई याचिका के मुताबिक, सेक्शन 498ए (महिला के पति या पति के रिश्तेदारों की ओर किया गया उत्पीड़न) के तहत इस मामले में ग्वालियर अस्पताल की ओर से चिकित्सकीय जांच की गई और ‘ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया जिससे यह कहा जा सके कि याचिकाकर्ता में महिला के गुण नहीं हैं.’

उन्होंने आरोप लगाया कि उन पर ‘सिर्फ़ दबाव बनाने’ के लिए हरिओम ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज करवाया. महिला ने ट्रायल कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से कहा कि वह फिर से चिकित्सकीय जांच नहीं करवाना चाहती, क्योंकि वह 498ए मामले में पहले ही इससे गुजर चुकी है. उन्होंने यह भी कहा कि फिर से जांच करवाने से इंकार की वजह से ट्रायल कोर्ट उसके खिलाफ किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकती.

हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसे ‘निजता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार’ है और इसलिए, ‘उनकी बार-बार चिकित्सकीय जांच नहीं की जा सकती.’

छुपी हुई हिंसा

जिन मामलों में महिलाओं के जननांगों की बनावट पूरी तरह से स्पष्ट नहीं होते, उन मामलों में ‘धोखा’ खाये पुरुषों पर ही अक्सर ध्यान जाता है. वहीं, इन मामलों में अक्सर महिलाओं के साथ हिंसा होती है और बदले की कार्रवाई की जाती है, जिसकी आमतौर पर अनदेखी कर दी जाती है.

तमिलनाडु के सेल्वन और अनबुसेल्वी मामले को लें. इन दोनों की शादी सितंबर, 2013 में हुई थी. मद्रास हाई कोर्ट में सेल्वन ने याचिका दायर करके यह दावा किया कि उनकी पत्नी पिछले दो सालों से उनके साथ सेक्स करने से मना करती रही है. इसमें दावा किया गया कि वह पहले मास्टर डिग्री पूरी करना चाहती थी और ‘खेल में ढ़ेर सारी उपलब्धियां हासिल’ करना चाहती थी.

मद्रास हाईकोर्ट के आदेश में इसका जिक्र सामान्य ढ़ंग से है कि सेल्वन को पहली बार तब पता चला कि उसकी पत्नी ‘ट्रांसजेंडर’ है, जब साल 2015 उसने ‘उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास किया’. सेल्वन ने सेक्शन 420 के तहत अपनी पत्नी और उसके पिता के खिलाफ मामला दर्ज करवाया. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उन्होंने ‘महिला’ कैटगरी में खेल संबंधी प्रमाण-पत्र हासिल किया है, तो उसने तमिलनाडु स्टेट कमीशन फॉर वुमेन से उन प्रमाण-पत्रों को रद्द करने की अपील भी की.

उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट में भी अपील की, तब कोर्ट ने तमिलनाडु महिला आयोग को सेल्वन की याचिका पर विचार करने और उसपर निर्णय लेने का आदेश दिया.

पिछले साल नवंबर में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने प्रेरणा के मामले में आदेश जारी किया था. प्रेरणा ने अप्रैल, 2018 में अपनी शादी के छह महीने के भीतर ही शावर हेड में चुन्नी का फंदा लगाकर अपनी जान दे दी थी. उसकी शादी अंकित कुमार से हुई थी.

वहीं, प्रेरणा के परिवार वालों का आरोप लगाया कि दहेज की वजह से उसकी हत्या हुई है. वहीं, अंकित कुमार ने कोर्ट से कहा कि ‘वह महिला नहीं थी, बल्कि एक ट्रांसजेंडर’ थी और उसके रिश्तेदारों ने ‘जबरदस्ती’ उनसे उसकी शादी करवाई थी. उसने कहा कि ‘शादी के बाद वह अवसाद में थी क्योंकि उसके माता-पिता ने उसकी जबरदस्ती शादी करवा दी थी, जिसकी वजह से वह शर्मिंदा थी और अपमानित महसूस करती थी.’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह साबित हुआ कि वह ‘ट्रू हर्माफ्रोडाइट (उसके पास पुरुष और महिला दोनों के बाहरी अंग/जननांग) थे.’ हालांकि, उसके पिता उसके दावे को खारिज करते हैं और फिलहाल, दहेज हत्या का ट्रायल लंबित है.

ट्रांसजेंडर रिसर्च एंड राइट एक्टिविस्ट डॉक्टर अक्सा शेख ने कहा, ‘कई नपुंसक, जिनमें इंटरसेक्स और ट्रांसजेंडर शामिल हैं, हो सकता है कि उन्हें अपनी पहचान या स्थिति के बारे में जानकारी न हो. इनमें से कुछ की, खासकर महिलाओं के परिवार की ओर से जबरन चुपचाप शादी करवा दी जाती है.’

उनके मुताबिक, जेंडर और सेक्सुअलिटी से जुड़ी ‘जानकारी को जानबूझकर छिपाने’ का अंजाम बुरा हो सकता है.

शेख ने कहा, ‘यह स्वाभाविक है कि किसी व्यक्ति को अपने पार्टनर के इंटरसेक्स या ट्रांसजेंडर होने के बारे में पता चलने पर सदमा लगेगा और उसे भविष्य में अपनी पसंद चुनने के लिए परामर्श की ज़रूरत होगी. कई मामलों में इसकी वजह से इंटरसेक्स और ट्रांसजेंडर लोगों के साथ हिंसा होती है और कभी-कभी उन्हें आत्महत्या करनी पड़ती है.’

दावे और प्रतिदावे

दहेज और/या हिंसा के कुछ मामलों में एक खास तरह का पैटर्न दिखने को मिलते हैं. भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 498ए के तहत कोई महिला अपने पति या पति के रिश्तेदारों के खिलाफ, महिला के साथ क्रूरता बरतने का मामला दर्ज करवाती है. इसके बचाव में पति यह दावा करता है कि उसकी पत्नी महिला नहीं है. इस तरह के दावे या तो क्रूरता के आरोपों के बचाव में किए जाते हैं या फिर शादी को अवैध ठहराने के लिए किए जाते हैं, ताकि गुजारा भत्ता देने से बचा जा सके.

इस दावे की पुष्टि के लिए आमतौर पर पति कोर्ट में अपनी पत्नी की चिकित्सकीय जांच के लिए आवेदन करता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मैट्रिमोनियल कोर्ट के पास तलाक प्रक्रिया के दौरान किसी भी पक्ष को चिकित्सकीय जांच का आदेश देने का अधिकार है. हालांकि, इसमें इस बात की सावधानी बरतने की सलाह दी गई है कि ‘कोर्ट वेबजह जांच के आदेश नहीं दे सकती’ और यह विकल्प तभी अपनाया जाना चाहिए, जब इस जांच के लिए पर्याप्त मैटेरियल उपलब्ध हो.

हालांकि, कोर्ट अब तक इस तरह की जांच के निर्देश देने से बचती रही हैं. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने फरवरी 2020 में पुट्टास्वामी जजमेंट का हवाला देते हुए एक मामले में महिला के निजता के अधिकार के तहत चिकित्सकीय जांच का आदेश देने से मना कर दिया था. महिला पर उसके पति ने ‘ट्रांसजेंडर’ होने का आरोप लगाते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन, इस मामले में याचिकाकर्ता के दावे के समर्थन में कोर्ट को पर्याप्त दस्तावेज नहीं मिले.

पटना हाईकोर्ट के समक्ष 2019 में निजता से जुड़ा एक मामला आया.

इस मामले में अर्चना कुमारी नाम की महिला ने फैमली कोर्ट के अप्रैल 2019 के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फैमली कोर्ट ने ‘उसके जेंडर के निर्धारण’ के लिए मेडिकल जांच करने का आदेश दिया था. कुमारी के वकीलों ने इसके विरोध में कहा कि उसके पति का दावा ‘सिर्फ़ उन्हें हतोत्साहित करने, न्याय पाने से दूर करने और कोर्ट को गुजारा भत्ता देने के आदेश देने से रोकने के लिए है.’

दूसरी तरफ, पति ने कहा कि वह ‘प्रजनन करने योग्य नहीं है, क्योंकि उसमें महिलाओं के गुण नहीं हैं’, ऐसे में महिला को छोड़ने के आधार पर गुजारा भत्ता संबंधित कोई भी आदेश लागू नहीं होगा.

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें पत्नी की चिकित्सकीय जांच कराने का निर्देश दिया गया था. फैमिली कोर्ट ने पत्नी के मेडिकल जांच को लेकर जो ऑर्डर दिया था उसपर रोक लगा दी. उसके बाद कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले पर भी विचार करेगी कि शादी में शामिल एक पक्ष ट्रांसजेंडर है और दूसरा पक्ष हेट्रोसेक्सुअल नहीं है, तो वह शादी निरस्त कर दी जाए या रद्द करने योग्य मानी जाए और वह भी किस पक्ष को आधार बनाकर फैसला लिया जाए.

हाईकोर्ट की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, यह मामला अब भी लंबित है, और उसके बाद से मामले की सुनवाई नहीं हुई है.

कानूनी विकल्प

अगर पति को शादी के बाद पता चलता है कि उसकी पत्नी के पास महिला के जननांग नहीं है, तो उसके पास क्या विकल्प हैं?

इस तरह के ज्यादातर मामलों में पति हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 12 के तहत कोर्ट में याचिका दर्ज करता है.

जिन पति या पत्नी को लगता है कि उनके साथ गलत हुआ है यह उनके लिए हमेशा काफी नहीं होता है. उदाहरण के लिए, हरिओम, अपनी पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों को धोखाधड़ी का दोषी ठहराना चाहते थे.

हालांकि, दिल्ली में रहने वाले, आपराधिक मामलों के वकील अजय वर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि यह दृष्टिकोण, ‘पारिवारिक कानून की भावना के खिलाफ’ था.

उन्होंने कहा, ‘अगर बीमारी को छिपाया जाता है, तो इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत धोखाधड़ी माना जा सकता है…उदाहरण के लिए, ठीक नहीं हो सकने वाले गुप्त रोग को छुपाने को धोखाधड़ी माना जाता है, ऐसे मामलों में जब दूसरे पक्ष को इसके बारे में पता चलता है, तब वे तुरंत शादी को तोड़ सकते हैं.’

वर्मा ने कहा कि किसी मेडिकल दिक्कत की वजह से अगर शादी को बरकरार रखना मुश्किल हो जाता है या असंभव हो जाता है, तब यह सेक्शन 420 के तहत धोखाधड़ी की श्रेणी में नहीं आता है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसे में पति या पत्नी को सेक्शन 420 के तहत धोखाधड़ी का दोषी ठहराना, मेरे हिसाब से फैमिली लॉ की भावना के खिलाफ है.’

ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट और एडवोकेट स्वाती बरूआ भी मानती हैं कि इस तरह के मामलों में ‘सेक्शन 420 के कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करने’ से किसी को भी फायदा नहीं मिलेगा.

बरूआ ने कहा, ‘जब इस तरह के आरोप किसी पर लगाए जाते हैं, तब यह सिर्फ़ ट्रांसजेंडर (या इंटरसेक्स पर्सन) के सम्मान पर ही हमला नहीं होता है, ऐसा जब भी होता है, यह उनकी निजता पर भी हमला होता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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