नैनीताल, 12 नवंबर (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टिहरी के जिला एवं सत्र अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत एक जांच अधिकारी के वेतन से मुआवजे के रूप में 500 रुपये काटे जाने थे ।
अदालत ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को सुनवाई का अवसर दिए बिना उस पर वेतन कटौती सहित कोई भी जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक माहरा ने की।
यह मामला पुलिस उप निरीक्षक सरिता शाह द्वारा दायर किया गया था जिसमें नवंबर 2013 में टिहरी गढ़वाल के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गयी थी ।
अगस्त 2013 में, टिहरी गढ़वाल की जिला बाल कल्याण समिति की सदस्य प्रभा रतूड़ी ने नई टिहरी में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी जिसमें जिले के एक गांव के एक व्यक्ति पर अपनी ही बेटी से कथित रूप से दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था । सरिता शाह ने मामले की जांच की और दो आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 506 के तहत आरोपपत्र दायर किया । निचली अदालत ने हालांकि दोनों आरोपियों को बरी कर दिया ।
आरोपियों को बरी करते हुए सत्र न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी ने बिना किसी आधार के एक आरोपी को गलत तरीके से फंसाया था और उसे अनावश्यक रूप से गिरफ्तार किया था ।
न्यायाधीश ने यह भी निर्देश दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 358 के तहत सरिता शाह आरोपी को 500 रुपये मुआवजे के रूप में दें । इस संबंध में अदालत ने टिहरी गढ़वाल के पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए कि यह राशि सरिता शाह के वेतन से काट कर आरोपी को दी जाए ।
शाह ने उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी । उनकी ओर से दलील दी गयी कि जांच कर रहे पुलिस अधिकारी के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 358 नहीं लगायी जा सकती और यदि गिरफ्तारी अनुचित पाई जाती है, तो भी केवल मजिस्ट्रेट ही मुआवजे का आदेश दे सकता है ।
शाह की ओर से यह तर्क भी दिया गया कि वेतन कटौती एक दंडात्मक कार्रवाई है जो किसी अधिकारी के सेवा करियर पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इसलिए सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना ऐसी सजा या प्रतिकूल टिप्पणी नहीं दी जा सकती।
इन तर्कों से सहमत होते हुए उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायाधीश के आदेश को अनुचित और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत बताया और उनके द्वारा लगाए गए जुर्माने और की गयी टिप्पणी, दोनों को रद्द कर दिया ।
भाषा सं दीप्ति शोभना
शोभना
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