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Friday, 19 April, 2024
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MP के मैहर मंदिर में गैर-हिंदुओं को हटाने का सरकार का निर्देश, मुस्लिम वर्कर बोला- मां शारदा पर भरोसा है

मप्र के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मंत्रालय के उप सचिव द्वारा मुस्लिम श्रमिकों को हटाने के लिए मां शारदा मंदिर प्रबंधन को लिखे जाने के बाद, समिति के वरिष्ठ सदस्य का कहना है कि 'किसी की नौकरी नहीं जाएगी'.

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रायपुर: मध्य प्रदेश के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मंत्रालय द्वारा राज्य के सतना जिले की मैहर तहसील में मां शारदा मंदिर की प्रबंधन समिति को मंदिर में कार्यरत दो मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने के लिए पत्र लिखे जाने के कुछ दिनों बाद मीडिया में यह खबर आने के बाद मंदिर समिति के सदस्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी की नौकरी नहीं जाएगी.’

सूत्र ने कहा, “ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कहता है कि अन्य धर्मों के सदस्यों को [मंदिर में] श्रमिकों के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है.”

इस हफ्ते की शुरुआत में, मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि मप्र के धार्मिक न्यास और बंदोबस्ती मंत्रालय की उप सचिव पुष्पा कलेश ने जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली मैहर मंदिर समिति को मंदिर में काम करने वाले मुसलमानों को तुरंत हटाने के लिए लिखा था.

मंदिर समिति के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केवल दो मुसलमान वहां काम करते हैं, उनकी पहचान आबिद हुसैन और मोहम्मद अयूब के रूप में हुई है.

मध्य प्रदेश मां शारदा देवी मंदिर अधिनियम, 2002 के बिंदु 17 की धारा सी, जो मंदिर के संचालन के प्रावधानों का विवरण देती है, कहती है कि श्रमिकों और प्रबंधन समिति के सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा विचार-विमर्श के बाद काम पर रखा जाएगा.

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दिप्रिंट ने शुक्रवार को व्हाट्सएप पर कलेश से संपर्क किया, लेकिन उप सचिव के कार्यालय ने कहा कि वह एक कार्यक्रम में थे. इस रिपोर्ट के पब्लिश होने तक दिप्रिंट को उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

दिप्रिंट ने राज्य के धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री उषा ठाकुर से भी फोन पर संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के पब्लिश होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

जिलाधिकारी अनुराग वर्मा, जो मंदिर प्रबंधन समिति के प्रमुख भी हैं, ने कहा कि नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी. वर्मा ने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘हम नियमों और विनियमों के अनुसार कार्रवाई करेंगे.’ उसने कलेश से पत्र प्राप्त करने की बात स्वीकार की.

एक मुस्लिम कार्यकर्ता हुसैन के अनुसार, वह और अयूब तीन दशकों से अधिक समय से मंदिर में काम कर रहे हैं. जहां हुसैन कानूनी विभाग में क्लर्क के रूप में काम करता है, वहीं अयूब मंदिर के जल आपूर्ति विभाग में काम करता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, हुसैन ने कहा कि उन्हें अभी तक अपने कर्तव्यों से मुक्त होने पर कोई नोटिस नहीं मिला है, और इस्तीफा देने की कोई योजना नहीं है. दिप्रिंट अयूब से संपर्क करने में असमर्थ था क्योंकि उसका फोन पहुंच से बाहर था.


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हुसैन ने हिंदुत्व संगठनों बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (बजरंग दल वीएचपी का हिस्सा है) पर हिंदू मंदिर में मुसलमानों के काम करने का मुद्दा उठाने का भी आरोप लगाया.

फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए, बजरंग दल के नेता और विश्व हिंदू परिषद की सतना इकाई के पूर्व जिला अध्यक्ष महेश तिवारी ने कहा, “मध्य प्रदेश मां शारदा मंदिर अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि एक गैर-हिंदू प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं हो सकता है”.

हालांकि हुसैन और अय्यूब केवल मंदिर में काम करते हैं और समिति के सदस्य नहीं हैं, तिवारी ने तर्क दिया, “यदि गैर-हिंदू प्रबंधन में नहीं हो सकते, तो वे कर्मचारी कैसे हो सकते हैं”.

पिछले दो साल से विरोध

हालांकि हुसैन ने दावा किया, ‘मैं मंदिर में काम करता हूं, मां शारदा में भी मेरी आस्था है. मैं कई बार मेहमानों को भी दर्शन के लिए लेकर गया हूं, और दो साल पहले तक किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया, जब तक कि बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने इसे मुद्दा बनाना नहीं शुरू कर दिया.

पिछले दो वर्षों से, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के सदस्य मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों से संपर्क कर रहे हैं और हुसैन और अय्यूब को हटाने के लिए कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि समिति ने हालांकि इस तरह की मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया.

हुसैन ने आरोप लगाया,“उन्होंने अतीत में प्रबंधन समिति को भी लिखा था. वे कुछ समय से मैहर में भाईचारे के माहौल को प्रदूषित करने की कोशिश कर रहे हैं.”

मैहर मंदिर के कार्यकर्ता ने कहा: “मैं 55 साल का हूं. मैंने 1993 से यहां काम किया है, मैं कहां जाऊंगा? मुझे कौन काम पर रखेगा?

इस साल 3 जनवरी को, बजरंग दल के सदस्यों ने कथित तौर पर मां शारदा मंदिर में मुस्लिम श्रमिकों के रोजगार को समाप्त करने की मांग करते हुए मंत्री उषा ठाकुर को एक पत्र प्रस्तुत किया.

इसके बाद उप सचिव कलेश ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मंदिर से मुस्लिम कार्यकर्ताओं को हटाने के साथ-साथ मैहर में शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया.

ठाकुर को लिखे पत्र के प्रमुख ड्राफ्टर्स में से एक होने का दावा करने वाले तिवारी ने कहा कि भारतीय संविधान को मंदिर में मुसलमानों के रोजगार को सही ठहराने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया, “कोई फर्क नहीं पड़ता कि संविधान समानता [अवसर] के बारे में क्या कहता है, मां शारदा मंदिर अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि गैर-हिंदू सदस्य नहीं हो सकते,”.

तिवारी 2002 के अधिनियम में सब-हेड ‘समिति के गठन’ के तहत बिंदु 3 का उल्लेख कर रहे थे, जिसमें कहा गया है, “कोई भी व्यक्ति जो हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करता है या मंदिर में प्रार्थना करने के तरीके को स्वीकार नहीं करता है, समिति का सदस्य बनने के योग्य नहीं है”.

उनके अनुसार श्रमिकों पर भी यही नियम लागू होना चाहिए.

बजरंग दल के नेता ने कहा कि न केवल मंदिर में काम करने वाले, बल्कि प्रसाद की दुकानों में भी मुस्लिम काम कर रहे थे और मंदिर के बाहर भक्तों द्वारा भगवान को चढ़ाए जाने वाले सामान बेच रहे थे. तिवारी ने दावा किया, “दुकान का नाम त्रिपाठी या तिवारी प्रसाद भंडार होगा, लेकिन एक मुस्लिम कर्मचारी प्रसाद बेच रहा होगा.”

कलेश के पत्र में जिक्र किए गए मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध के बारे में बात करते हुए, बजरंग दल के नेता ने कहा, “एक दशक से अधिक समय से हम इस तीर्थ नगरी में शराब और मांस की बिक्री का विरोध कर रहे हैं. धार्मिक नेताओं ने सात साल पहले [मैहर में] घंटा घर चौक पर विरोध प्रदर्शन किया था. प्रशासन ने हमसे तरह-तरह के झूठे वादे किए थे. फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है”.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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