scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमएजुकेशनपहले कोविड, अब लद्दाख : चीन से आये भारतीय छात्रों का डर 'भविष्य दांव पर लग गया है'

पहले कोविड, अब लद्दाख : चीन से आये भारतीय छात्रों का डर ‘भविष्य दांव पर लग गया है’

कोरोना से प्रभावित चीन से निकाले जाने के महीनों के बाद भारतीय छात्रों को सीमा तनाव के मद्देनजर अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है.

Text Size:

नई दिल्ली: चीन के युन्नान प्रांत में कुनमिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली भारतीय कीर्ति पाठक लद्दाख में दो एशियाई देशों भारत और चीन के बीच सीमा तनाव के कारण चिंतित हैं और और वह चिंता करने वालों में अकेली नहीं है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया ‘मेरे साथी भारतीय छात्र और मैं भारत और चीन के बीच तनाव को लेकर थोड़े चिंतित हैं, लेकिन हम कॉलेज से बाहर निकलने के बारे में नहीं सोच रहे हैं.’

कीर्ति कोविड-19 का प्रकोप चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आने के बाद चीन से आये सैकड़ों छात्रों में से एक है. इस साल की शुरुआत में इस बीमारी ने महामारी का रूप लेना शुरू कर दिया था.

यहां तक कि कोविड-19 का खतरा दुनिया पर डगमगा रहा है. छात्रों को सीमा पर तनाव के बीच चिंता का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी.

इस बीच, शिक्षा सलाहकारों का सुझाव है कि मई में तनाव शुरू होने के बाद से नए आवेदकों में चीन की लोकप्रियता कम है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इस वक़्त ‘चीन का बहिष्कार’ देश के खिलाफ हुए ट्रांसग्रेशन के कारण चीन पर आर्थिक रूप से चोट पहुंचाने का अभियान जोर पकड़े हुए है. कुछ सलाहकारों का यह भी कहना है कि वे भारत के पूर्वी पड़ोसी देश की ओर छात्रों का मार्गदर्शन करने से परहेज करेंगे, जो सस्ते शिक्षा के विकल्प के लिए चिकित्सा उम्मीदवारों के लिए विशेष रूप से एक बड़ा झटका है.

चिंता बढ़ जाती है

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 23,000 भारतीय छात्रों को 2019 तक चीन के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला दिया गया था. उनमें से 21,000 लोग चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे थे, शेष छात्र इंजीनियरिंग और भाषा अध्ययन में नामांकित थे.

कृति जैसे छात्र, जो चीन के विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रमों के बीच में हैं. सीमा मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीद कर रहे हैं, चिंतित हैं कि लगातार तनाव उनकी शिक्षा को प्रभावित कर सकता है.

उसने कहा कि मुख्य रूप से मेरे जैसे छात्रों के लिए कोई विकल्प नहीं है. क्योंकि वो बाहर निकलने के बारे में नहीं सोच रही थी.

कृति ने कहा, ‘मैं अपने पाठ्यक्रम के चौथे वर्ष में हूं और अगर मैं बाहर हो जाती हूं, तो मुझे पहले साल से फिर से पाठ्यक्रम शुरू करना होगा और मैं अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष बर्बाद कर दूंगी, अन्य छात्र और मैं हमारे विश्वविद्यालय के अधिकारियों के साथ संपर्क बनाए हुए हैं और वे हमें आश्वस्त कर रहे हैं कि वे हमारे शैक्षणिक हितों का ध्यान रखेंगे.’

आकांक्षा, उसी विश्वविद्यालय की एक छात्रा हैं वह भी इस बात से सहमत हुईं. कॉलेज वापस नहीं जाना हमारे लिए कोई विकल्प नहीं है, लेकिन हम निश्चित रूप से हमारे कॉलेज के अधिकारियों के संपर्क में हैं और उन्होंने हमें आश्वासन दिया है कि निश्चित रूप से कुछ ऐसा किया जाएगा कि अगर चीजें खराब हो जाती हैं तो.’

एक तीसरे छात्र, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि सीमा तनाव उनके लिए एक ताजा झटका के रूप में आया था क्योंकि वे अपने कॉलेजों में वापस जाने के लिए तैयार हो रहे थे.

इस साल की शुरुआत में (कोविड -19) कठिनाइयों का सामना करने के बाद मेरे अन्य सहपाठी और मैं सितंबर तक चीन लौटने की उम्मीद कर रहे थे क्योंकि भारत की तुलना में वहां स्थिति काफी बेहतर है. लेकिन अब एक नई समस्या है. हम सभी उम्मीद कर रहे हैं कि सीमा तनाव कम हो जाएगा या नहीं तो फिर हमारा भविष्य दांव पर होगा.

चीनी विश्वविद्यालयों में नए प्रवेश के बारे में सवालों में कमी

शिक्षा सलाहकारों ने दिप्रिंट को बताया हालांकि जो छात्र सीमा पार अपने कोर्स के बीच में हैं. वे उलझन में हैं और जो दाखिला लेना चाहते हैं, उनका झुकाव अन्य एशियाई देशों की ओर है.

शिक्षा सलाहकारों ने सुझाव दिया कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में स्थिति के कारण प्रवेश पाने के इच्छुक छात्रों में चीनी विश्वविद्यालयों के बारे में पूछे जाने वाले सवालों के कमी आयी है. कुछ सलाहकारों ने कहा कि उन्होंने इस साल चीन को शिक्षा गंतव्य के रूप में बढ़ावा नहीं देने के लिए एक सचेत निर्णय लिया है.

नीरज चौरसिया, जो दिल्ली स्थित एमबीबीएस गुरुकुल के सलाहकार हैं ने कहा ‘इस वर्ष, हम अपने तरफ से चीन को एक गंतव्य के रूप में बढ़ावा नहीं देने की कोशिश कर रहे हैं. अगर छात्र फिर भी जाना चाहते हैं, तो हम उन्हें काउंसलिंग में मदद करेंगे.’

कॉलेजफी, एक परामर्श मंच जो छात्रों को अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकल्पों में मदद करता है ने कहा, ‘इस साल, पिछले दो-तीन महीनों से चीनी विश्वविद्यालयों के प्रश्नों की संख्या में भारी गिरावट आई है. लगभग शून्य हो गई है. भारत और चीन के बीच जारी तनाव के साथ यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है. भारतीय छात्र चीन जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, वे इसके बजाय सिंगापुर और हांगकांग जैसे अन्य एशियाई देशों के लिए पूछताछ कर रहे हैं.

अमित कसाना, जो विशेष रूप से एमबीबीएस काउंसलिंग से संबंधित हैं, ने कहा कि यह स्थापित करना जल्दबाजी होगी कि सीमा तनाव छात्रों के बीच चीन की लोकप्रियता में गिरावट को दर्शाता है या नहीं.

‘ज्यादातर भारतीय छात्र दवा का अध्ययन करने के लिए चीन जाते हैं. इसलिए, जब तक एनईईटी का आयोजन नहीं किया जाता है, तब तक हम सही तरीके से जज नहीं कर पाएंगे कि क्या छात्र चीन को छोड़ रहे हैं. हालांकि, एस्पिरेंट्स से मिली शुरुआती प्रतिक्रिया के अनुसार, वे चीन के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश करना चाहते हैं और हम एशिया में अन्य विकल्पों को भी बढ़ावा देना चाहते हैं.’

नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट), मेडिकल एडमिशन के लिए भारत की वन-स्टॉप परीक्षा, विदेशों में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए भी आधार है. आमतौर पर मई में आयोजित किया जाता है. इस वर्ष एनईईटी कोविड-19 महामारी के कारण जुलाई तक स्थगित कर दिया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments