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Friday, 31 October, 2025
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नौकरी देने में अब नियोक्ता व्यावहारिक कौशल, विश्लेषणात्मक सोच को देंगे प्राथमिकता : अधिकारी

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नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) कार्यस्थल पर तेजी से प्रौद्योगिकीय परिवर्तन हो रहे हैं, इसलिए आवश्यक दक्षता में भी बदलाव देखने को मिल रहा है तथा संचार और विश्लेषणात्मक सोच जैसे कौशल को सभी उद्योगों में प्राथमिकता दी जा रही है। एक डिजिटल भर्ती कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।

इस बदलते परिवेश में, नियोक्ता अपना ध्यान पारंपरिक शैक्षणिक योग्यताओं से हटाकर उम्मीदवार के व्यावहारिक कौशल और किसी भूमिका में तुरंत योगदान देने की क्षमता पर केंद्रित कर रहे हैं।

उद्योग, अकादमिक जगत और छात्र कौशल में इन अंतराल को पाटने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहे हैं। नौकरी चाहने वाले लोग संचार और विश्लेषणात्मक सोच, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और नेतृत्व जैसे कौशल हासिल करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

‘टैग्ड’ के संस्थापक सदस्य और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) देवाशीष शर्मा के अनुसार, भारत में नियुक्ति की अगली लहर डिग्री से नहीं, बल्कि उम्मीदवार के कौशल से परिभाषित होगी, जिनमें परियोजनाएं, इंटर्नशिप और डेटा-संचालित क्षमता आकलन द्वारा प्रमाणित कौशल शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘नियोक्ता, विशेष रूप से बड़े संगठन, शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर कौशल विकास कार्यक्रम बनाकर और पाठ्यक्रम तैयार कर नौकरी की तैयारी सुनिश्चित कराने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं।’’

भारत के नियोक्ता प्रतिभा की भारी कमी से जूझ रहे हैं तथा शिक्षा जगत और उद्योग के बीच की दूरी को पाटने के लिए, कंपनियां ‘फिनिशिंग स्कूलों’, ‘बूटकैंप’ (जहां किसी विशिष्ट कौशल या समझ के विकास पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है) और एकीकृत प्रशिक्षुता कार्यक्रमों से जुड़ रही हैं।

फिनिशिंग स्कूल ऐसे संस्थान हैं जो छात्रों को शैक्षणिक योग्यता के अलावा शिष्टाचार और ‘सॉफ्ट स्किल’ के बेहतरीन पहलुओं की शिक्षा देता है।

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि उद्योग-अकादमिक सहयोग स्नातकों को वास्तविक दुनिया के कौशल से लैस कर सकता है जिनकी उन्हें कार्यस्थल में सफल होने के लिए आवश्यकता होगी।

शर्मा ने उदाहरण देते हुए कहा कि आईआईटी दिल्ली में आईएनएई-इंफोसिस फाउंडेशन सेंटर फॉर इंजीनियरिंग एजुकेशन एंड रिसर्च (आईएनएई-सीईईई) और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार तथा घरेलू प्रतिभा विकास के लिए आईआईटी हैदराबाद और रेनेसास के बीच साझेदारी, ऐसे ही दो उद्योग-अकादमिक सहयोगों के उदाहरण हैं।

सरकार कार्यबल की रोजगार क्षमता में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है और उसने राष्ट्रीय शिक्षुता (अप्रेंटिसशिप) प्रोत्साहन योजना (एनएपीएस) और शिक्षुता अधिनियम जैसे नीतिगत हस्तक्षेप शुरू किए हैं।

शर्मा ने कहा कि 2023-24 के दौरान एनएपीएस में नामांकन लगभग 9.3 लाख तक पहुंचने का अनुमान है और सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के अंत तक 46 लाख के आंकड़े तक पहुंचना है।

ये पहल अधिक से अधिक पेशेवरों को कौशल और वास्तविक दुनिया के ज्ञान तक पहुंच प्रदान करती हैं, जिनकी उन्हें सफल करियर बनाने के लिए आवश्यकता होगी।

कंपनियां ऐसे योग्य उम्मीदवारों की एक श्रृंखला तैयार कर रही हैं जो उनके व्यवसाय और कार्य संस्कृति को पहले से ही समझते हों। इस प्रकार, भर्ती एवं प्रशिक्षण की लागत में उल्लेखनीय कमी आती है।

भाषा सुभाष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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