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Thursday, 7 November, 2024
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दिल्ली HC ने महिला आरोपियों की न्यायिक या पुलिस हिरासत में वर्जिनिटी टेस्ट को बताया असंवैधानिक 

दिल्ली हाईकोर्ट ने केरल के सिस्टर अभया मर्डर केस में आरोपी सिस्टर सेफी के वर्जिनिटी टेस्ट से जुड़े एक मामले में ये निर्देश दिए हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी महिला आरोपी की न्यायिक या पुलिस हिरासत में, जांच के दौरान उसका वर्जिनिटी (कौमार्य) टेस्ट करना असंवैधानिक है. यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसमें कि गरिमा का अधिकार शामिल है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने केरल के सिस्टर अभया मर्डर केस में आरोपी सिस्टर सेफी के वर्जिनिटी टेस्ट से जुड़े एक मामले में ये निर्देश दिए हैं.

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट की असंवैधानिकता के संबंध में आवश्यक जानकारी सभी सरकार की जांच एजेंसियों/हितधारकों को सचिव, केंद्रीय गृह मंत्रालय, सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और सचिव, विभाग, दिल्ली के एनसीटी के माध्यम से भेज दी गई है.

दिल्ली न्यायिक अकादमी को निर्देश दिया जाता है कि वह इस मुद्दे से संबंधित जानकारी को अपने पाठ्यक्रम में और जांच अधिकारियों, अभियोजकों और अन्य हितधारकों के लिए कार्यशालाओं में शामिल करे.

इसी तरह, दिल्ली पुलिस प्रशिक्षण अकादमी भी इस मुद्दे से संबंधित आवश्यक जानकारी को अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल करेगी. दिल्ली के उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस आयुक्त, दिल्ली को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि जांच अधिकारियों को इस संबंध में जानकार और संवेदनशील बनाया जाए.

जांच एजेंसी, केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 2020 में सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या का दोषी पाया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. ट्रायल कोर्ट ने वर्जिनिटी टेस्ट के नतीजों पर भरोसा किया था.

सजा अब अपील के जरिए केरल उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है.

याचिकाकर्ता के मामले के अनुसार, उसकी सहमति के खिलाफ 25 नवंबर, 2008 को केंद्रीय जांच ब्यूरो के दबाव में उसे जबर्दस्ती ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ से गुजरना पड़ा था.

27 मार्च, 1992 को एक कुएं में मृत पाई गई पीड़िता के मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी ने वर्जिनिटी टेस्ट किया था.

उक्त टेस्ट का परिणाम कथित रूप से सीबीआई द्वारा मीडिया में लीक किया गया था और सीबीआई ने याचिकाकर्ता की मर्जी के बगैर जबरन वर्जिनिटी टेस्ट किया था और संबंधित अदालत के समक्ष परिणाम प्रस्तुत करने से पहले ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को जांच एजेंसी द्वारा जानकारी लीक की गई जो याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.


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