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Wednesday, 12 November, 2025
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भारत में तीन दशक में जलवायु आपदाओं के कारण 80,000 लोग मारे गए, 170 अरब डॉलर का नुकसान: रिपोर्ट

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नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) पिछले तीन दशक में जलवायु आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत नौवें स्थान पर है, जहां लगभग 430 ऐसी घटनाओं में 80,000 से अधिक लोग मारे गए हैं। एक नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

ब्राजील के बेलेम में आयोजित कॉप30 सम्मेलन में पर्यावरण क्षेत्र के थिंक टैंक ‘जर्मनवॉच’ द्वारा मंगलवार को जारी ‘जलवायु जोखिम सूचकांक (सीआरआई) 2026’ में कहा गया है कि जलवायु आपदाओं ने 1995 से 2024 तक 1.3 अरब लोगों को प्रभावित किया और लगभग 170 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान पहुंचाया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश को मुख्य रूप से बार-बार आने वाली बाढ़, चक्रवात, सूखे और लू के कारण नुकसान हुए हैं, जो ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के साथ और भी तीव्र हो गए हैं।

इसमें कहा गया है कि 1998 में गुजरात में आए चक्रवात, 1999 में ओडिशा के ‘सुपर साइक्लोन’, 2013 की उत्तराखंड बाढ़ और हाल में लू जैसी कई घटनाओं ने इस सूचकांक में भारत की रैंकिंग को बढ़ाया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की स्थिति छिटपुट आपदाओं के बजाय एक ‘निरंतर खतरे’ का संकेत देती है, क्योंकि बार-बार होने वाली मौसमी घटनाओं ने विकास के लाभों को लगातार कमजोर किया है और आजीविका को नुकसान पहुंचाया है।

इसमें कहा गया है कि भारत की विशाल जनसंख्या और मानसून की परिवर्तनशीलता के प्रति उच्च जोखिम इसे विशेष रूप से संवेदनशील बनाते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले 2024 में, भारत भारी मानसूनी बारिश और अचानक आई बाढ़ से इतनी बुरी तरह प्रभावित हुआ था कि उससे 80 लाख से अधिक लोगों पर असर पड़ा था और खासकर गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में इस तरह के हालात बने थे।

‘जर्मनवॉच’ ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 1995 और 2024 के बीच 9,700 से अधिक मौसमी आपदाओं ने 8.3 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली, लगभग 5.7 अरब लोगों को प्रभावित किया और लगभग 4,500 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान पहुंचाया।

पिछले तीन दशक में इस तरह की आपदाओं से डोमिनिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश रहा है। उसके बाद म्यांमा, होंडुरास, लीबिया, हैती, ग्रेनाडा, फिलीपीन, निकारागुआ, भारत और बहामास का स्थान है।

संस्थान ने कहा कि विकासशील देश कमजोर सहन क्षमता और अनुकूलन के सीमित संसाधनों के कारण असमान रूप से प्रभावित रहे हैं।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत सहित कई विकासशील देशों के लिए ऐसी आपदाएं ‘नई सामान्य’ स्थिति बनती जा रही हैं, जिसके लिए तत्काल और अच्छी तरह से वित्त पोषित अनुकूलन उपायों की आवश्यकता है।

इसमें कहा गया कि बढ़ती आर्थिक और मानवीय लागतें भारत जैसे देशों के लिए अनुकूलन योजना, पूर्व चेतावनी प्रणालियों और कमजोर समूहों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।

थिंक टैंक ने विश्लेषण में आंकड़ों की सीमाओं को भी स्वीकार किया और कहा कि हो सकता है कि अधूरी रिपोर्टिंग के कारण कुछ देश, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की सही जानकारी नहीं उपलब्ध हुई हो।

‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है और ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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