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Friday, 27 September, 2024
होमदेशसिविक बॉडीज़ के पास आय का केवल 35% और प्रॉप्रटी टैक्स का 13% हिस्सा है, प्रजा फाउंडेशन की स्टडी में खुलासा

सिविक बॉडीज़ के पास आय का केवल 35% और प्रॉप्रटी टैक्स का 13% हिस्सा है, प्रजा फाउंडेशन की स्टडी में खुलासा

प्रजा फाउंडेशन और राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान द्वारा तैयार शहरी शासन सूचकांक 2024 के अनुसार, केरल सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य पाया गया, उसके बाद ओडिशा है.

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नई दिल्ली: गुरुवार को जारी शहरी सरकारों के राजकोषीय सशक्तीकरण रिपोर्ट के अनुसार, भारत में नागरिक एजेंसियां ​​केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान पर काफी हद तक निर्भर हैं, क्योंकि कुल आय में उनके अपने स्रोत राजस्व का औसत परसेंटेज शेयर लगभग 35 प्रतिशत है.

यह रिपोर्ट मुंबई स्थित गैर-लाभकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन द्वारा आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान (NIUA) के सहयोग से तैयार की गई थी.

दोनों संगठनों ने शहरी शासन सूचकांक (अर्बन गवर्नेंस इंडेक्स) 2024 भी जारी किया, जिसमें शहरों और राज्यों को उनके प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग दी गई और नागरिक शासन में कमियों को उजागर किया गया. शहरी शासन के मामले में केरल सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाला राज्य पाया गया, उसके बाद ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का स्थान रहा.

रिपोर्ट की एक मुख्य बात यह थी कि संपत्ति कर का औसत हिस्सा, जो नगर निगमों के राजस्व का मुख्य स्रोत है, सर्वेक्षण किए गए शहरों में नागरिक निकायों के कुल बजट का लगभग 13.85 प्रतिशत है. देश में नागरिक एजेंसियों के राजकोषीय ढांचे का आकलन करने के लिए 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 43 शहरों के सात साल (2017-18 से 2023-24) के नगरपालिका बजट का अध्ययन किया गया.

प्रजा फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मिलिंद म्हस्के ने कहा कि सात वित्तीय वर्षों के 320 बजट दस्तावेजों और 12 ऑडिट अकाउंट दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया. “निष्कर्षों से पता चलता है कि सिविक एजेंसियां ​​अनुदान पर अत्यधिक निर्भर हैं. हमारे द्वारा मूल्यांकन किए गए शहरों में कुल आय में संपत्ति कर राजस्व का औसत हिस्सा केवल 13.8 प्रतिशत है. अधिकांश शहरों में, उनका स्वयं के राजस्व का स्रोत कुल बजट का एक छोटा प्रतिशत है, जो दर्शाता है कि नागरिक निकाय अनुदान पर निर्भर हैं.”

रिपोर्ट के अनुसार, 30 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में हैदराबाद में कुल आय में स्वयं के राजस्व स्रोत का सबसे अधिक औसत प्रतिशत शेयर 61.63 प्रतिशत है. इसके बाद दिल्ली में 55 प्रतिशत और मुंबई में 50.23 प्रतिशत है. जयपुर में कुल आय में स्वयं के राजस्व स्रोत का सबसे कम औसत प्रतिशत शेयर 22.9 प्रतिशत है.

इन शहरों के सात साल के बजट डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि संपत्ति कर शहरों की कुल आय का एक छोटा प्रतिशत बना हुआ है. उदाहरण के लिए, मुंबई में, औसत संपत्ति कर राजस्व बृहन्मुंबई नगर निगम की कुल आय का केवल 3.09 प्रतिशत है.

30 लाख से अधिक आबादी वाले 43 शहरों में, हैदराबाद में कुल आय में संपत्ति कर का सबसे अधिक औसत प्रतिशत हिस्सा (36.06 प्रतिशत) है. रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में संपत्ति कर कुल आय में लगभग 26.7 प्रतिशत का योगदान देता है.

रिपोर्ट के लॉन्च पर, एनआईयूए की निदेशक (अतिरिक्त प्रभार) देबोलिना कुंडू ने कहा, “मजबूत नगरपालिका राजस्व कुशल सेवा वितरण और शहर की सरकारों के स्वतंत्र कामकाज के लिए रीढ़ की हड्डी है. सही वित्तीय साधनों के साथ, शहर की सरकारें सही रास्ते पर आगे बढ़ सकती हैं. उन्हें अपने कामकाज में खुद को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाने के लिए वित्तीय शक्तियों और अधिकारों के साथ विकसित करने की आवश्यकता है.”

वित्तीय अधिकार का अभाव

सिविक एजेंसियों की खराब वित्तीय हालत का एक मुख्य कारण यह है कि उनके पास राजकोषीय प्रबंधन में बदलाव करने का अधिकार नहीं है.

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि 43 शहरों में से 23 के पास संबंधित राज्य नगरपालिका अधिनियमों के अनुसार “करों की निर्धारित सूची में दिए गए नए करों को लागू करने के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण नहीं है”.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 74वें संविधान संशोधन के बावजूद, 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों- अरुणाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान और सिक्किम- ने तीन वित्तीय शक्तियों में से कोई भी हस्तांतरित नहीं की है.

गुरुवार को जारी किए गए शहरी शासन सूचकांक 2024 में निर्वाचित प्रतिनिधियों को दी गई शक्तियों के प्रदर्शन, शासन में नागरिक भागीदारी के लिए तंत्र और वित्तीय प्रबंधन जैसे मापदंडों के आधार पर शहरों को रैंक किया गया.

यह पाया गया कि सर्वेक्षण किए गए 43 शहरों में से केवल 12 शहरों (जैसे रायपुर, दिल्ली, मुंबई, भोपाल) में नागरिक निकायों के पास नए कर या शुल्क लागू करने का अधिकार है.

74वें संविधान संशोधन के बावजूद, कई राज्यों ने शहरी नियोजन, जल आपूर्ति और अन्य सहित सभी 18 कार्यों को शहरों को नहीं सौंपा है.

शहरी शासन सूचकांक 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है, “मुंबई में, सभी राज्यों में सर्वाधिक 11 कार्य शहर के स्वतंत्र नियंत्रण में हैं, जबकि तीन राज्यों (मेघालय, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में केवल एक कार्य शहर की सरकारों के स्वतंत्र नियंत्रण में है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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