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Friday, 29 March, 2024
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चीनी सेनिटाइज़र डिस्पेंसर – भारत की आत्मनिर्भरता और कोविड की लड़ाई की राह में बड़ी बाधा

एमएसएमई मंत्रालय फर्मों के साथ इस बात पर काम कर रहा है कि देश में ही किस तरह से कम कीमत पर सैनिटाइज़र डिस्पेंसर पंपों का निर्माण हो सके.

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नई दिल्ली: कोविड -19 महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में, भारत ने घरेलू सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, मास्क, परीक्षण किट, वेंटिलेटर और अल्कोहल-आधारित हाथ का सैनिटाइज़र उत्पादन में भले ही तेजी लाई हो लेकिन एक मोर्चें पर उसे अप्रत्याशित रूप से कमियों का सामना करना पड़ रहा है.

सैनिटाइज़र की बोतलों में इस्तेमाल किए जाने वाले डिस्पेंसर पंप भारत की कोविड-19 की लड़ाई और आत्मनिर्भरता में एक बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं.

अब तक, डिस्पेंसर पंप मुख्य रूप से चीन से आयात किए जाते रहे हैं. भारत देश के भीतर अपने उत्पादन को सफलतापूर्वक बढ़ाने के तरीकों की जुगत में है, लेकिन अभी तक सीमित सफलता ही मिली है.

हालांकि डिस्पेंसर कोई महंगी वस्तु नहीं है, इसकी कीमत लगभग 5-20 रुपये तक ही है, और आकार में अपेक्षाकृत छोटा है. ये पंप मुख्य रूप से प्लास्टिक के बने होते हैं और इसके निर्माण में 16 कंपोनेंट का प्रयोग होता है. भारत में इसका उत्पादन इसलिए मुश्किल बना दिया है क्योंकि इसका अधिकतर सामान चीन से आयातित होता रहा है.

भारत सरकार के विभाग में कार्यरत एक सचिव जो इन मामलों पर नजर बनाए हुए हैं, कहते हैं. हालांकि सरकार की इकाईंया इस बात पर जोर दे रही हैं कि इस समस्या से कैसे निजात पाई जाए.

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नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि सैनिटाइज़र प्रभावशाली है. इसके लिए 70 फीसदी एल्कोहल की जरूरत होती है. हमलोगों ने सैनिटाइज़र के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इथेनॉल का उपयोग किया, जो चीनी उद्योग और डिस्टीलरीज में बनाई जा रही हैं. लेकिन डिस्पेंसर पंप तो चीन से ही आयतित हो रहा है.

अधिकारी ने यह भी कहा, ‘ भारत में शायद एक या दो मैनुफैक्चरर हैं जो इसे बना भी रहे होंगे, लेकिन घरेलू मांगों को पूरा करने के लिए यह काफी नहीं है . अब हमलोग इसे सूक्ष्म और मध्यम इंटरप्राइजेज के द्वारा भारत में इसके निर्माण की कोशिश कर रहे हैं.

अधिकारी ने कहा कि माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इंटरप्राजेज (एमएसएमई) मंत्रालय अब इस बात पर ध्यान दे रहा है कि किस तरह से भारत में ही इसका उत्पादन शुरू हो वह भी कम कीमत पर. ‘सरकार इसका विकल्प विकसित करने पर भी काम कर रही है. ‘


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चीन एक पहेली

अब जब इस समय स्वदेशी लॉबी द्वारा चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने और सरकार द्वारा आत्मनिर्भर बनने की बात कहे जाने के बीच अब पता चल रहा है कि भारत सिर्फ डिस्पेंसर पंपों के उत्पादन को लेकर जिस तरह संघर्ष कर रहा है यह दिखाता है कि भारत अपने कई दैनिक उपयोग के लिए चीन पर निर्भर है.

स्थानीय रूप से डिस्पेंसर पंपों की कमी के जवाब में, भारत ने 1 जून को एक अधिसूचना के माध्यम से डिस्पेंसर पंपों के साथ कंटेनरों में अल्कोहल-आधारित हैंड सेनिटाइज़र के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि, किसी भी अन्य पैकेजिंग में अल्कोहल-आधारित हैंड सैनेटाइजर के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था.

भारत के आयात में चीन की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, इसके बाद अमेरिका और यूएई और सऊदी अरब के तेल उत्पादक देश हैं.

2018-19 में भारत का लगभग 14 प्रतिशत आयात चीन से हुआ, जिसकी कीमत 70 अरब अमेरिकी डॉलर (बिलियन अमेरिकी डॉलर) थी. व्यापार आंकड़ों से पता चला है कि 2019-20 की अप्रैल-जनवरी अवधि में इसमें मामूली वृद्धि भी हुई है. इसकी तुलना में, भारत के आयात में अमेरिका का हिस्सा 2018-19 में लगभग 7 प्रतिशत और 2019-20 के पहले दस महीनों में 7.5 प्रतिशत था.


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शुद्ध आयातक से, भारत पीपीई, वेंटिलेटर का बड़ा निर्यातक भी बन सकता है.

12 मई को अपने संबोधन में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थानीय निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए भारतीयों से ‘स्थानीय के लिए मुखर’ (वोकल फॉर लोकल) होने की बात कही. उन्होंने न केवल स्थानीय निर्माताओं की जरूरतों पर जोर दिया बल्कि उसे खरीदने और उसे प्रमोट (प्रचार करने) करने पर भी बल दिया.

मोदी ने इस दौरान इस बात पर भी प्रकाश डाला था कि भारत किस तरह उत्पादन को बढ़ाने और प्रतिदिन 2 लाख पीपीई किट और एन -95 मास्क बनाने में कामयाब रहा है. उन्होंने कहा था, ‘जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तो भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनाई जाती थी और भारत में बहुत कम मात्रा में एन -95 मास्क का उत्पादन किया जाता था लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान दिलाया कि कैसे इस संकट ने इसे अवसर में बदल दिया है.

पिछले सप्ताह उद्योग लॉबी समूह भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के संबोधन में, मोदी ने उद्योग जगत के लोगों से ‘इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ की ओर काम करने की सलाह भी दी.

अगर आज की बात करें तो भारत में प्रतिदिन 4-4.5 लाख पीपीई और 2.5 लाख एन -95 मास्क का उत्पादन किया जा रहा है.

अधिकारी ने कहा कि वर्तमान में 600 घरेलू कंपनियां हैं जिनके पीपीई बनाने के नमूनों पर मुहर लगा दी गई है.
पीपीई और एन -95 मास्क के अलावा, भारत वेंटिलेटर और वेंटिलेटर में उपयोग किए जाने वाले कंपोनेंट के उत्पादन में भी तेजी ला रहा है.

अधिकारी ने कहा, ‘भारत में, वेंटिलेटर ज्यादातर आयात किए जाते थे और इसकी कीमत 15 लाख से 16 लाख रुपये की आती थी. जिससे इलाज महंगा हो जाता था. लेकिन आज बढ़ी आवश्यकताओं और वैश्विक स्तर पर इसकी कमी के कारण, सरकार इसे घरेलू स्तर पर बनाने के लिए काम कर रही है. ‘ ‘सरकार ने बेंगलुरु, दिल्ली और आंध्र प्रदेश में कुछ कंपनियों के साथ करार किया है जो वेंटिलेटर का निर्माण कर रही हैं. वेंटिलेटर कंपोनेंट को बनाने के लिए कुछ स्टार्ट-अप को भी प्रोत्साहित किया गया है.’

अधिकारी ने कहा कि भारत में जो वेंटिलेटर बनाए जा रहे हैं, उनकी कीमत 2 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच होगी. और ये वैश्विक मानकों के आधार को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं. ‘ वर्तमान में भारत में 65,000-70,000 वेंटिलेटर की आवश्यकता है.

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