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Tuesday, 23 April, 2024
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स्पेशल ट्रेनों का किराया बढ़ाने, लोकल ट्रेन न चलाने पर छत्तीसगढ़ HC ने रेलवे और केंद्र को जारी किया नोटिस

जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया गया कि केंद्र सरकार रेल किराये में डेढ़ से दोगुना वृद्धि कर रही है और पैसेंजर ट्रेनों को जानबूझकर नहीं चला रही है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रेलवे बोर्ड और केंद्र सरकार को देश भर में चलाई जा रही स्पेशल ट्रेनों में भारी किराया वृद्धि को लेकर नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

हाई कोर्ट ने यह आदेश एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया जिसमें यह आरोप लगाया गया कि केंद्र सरकार द्वारा रेल किराया में डेढ़ से दोगुना वृद्धि की जा रही है और पैसेंजर ट्रेनों को जानबूझकर नहीं चलाया जा रहा है.

याचिकाकर्ता ने दिप्रिंट को इसे केंद्र सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण के एजेंडे का हिस्सा बताया.

इस मामले की ऑनलाइन हुई सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रामचन्द्र मेनन और जस्टिस पी पी साहू की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को याचिकाकर्ता और हाई कोर्ट वकील सुदीप श्रीवास्तव के आरोपों का जवाब दो सप्ताह के अंदर देने के लिए कहा है.


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‘डेढ़ से दोगुना वसूला जा रहा है किराया’

खंडपीठ के आदेश से पहले याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कोरोनाकाल में 24 मार्च 2020 को सभी यात्री गाड़ियों का संचालन रेलवे बोर्ड ने बंद कर दिया था. जून के बाद कुछ गाड़ियों को दोबारा चालू किया गया लेकिन इनको स्पेशल ट्रेनों की केटेगरी के तहत चलाया जा रहा है.

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श्रीवास्तव ने कोर्ट में कहा, ‘इन स्पेशल गाड़ियों का समय, उनके डिब्बों की संख्या एवं सुविधाएं और स्टेशन सामान्य एक्सप्रेस और मेल गाड़ियों के समान बताए गए हैं फिर भी किराया डेढ़ से दोगुना वसूला जा रहा है.’

श्रीवास्तव ने अपनी याचिका में तीन गाड़ियों के किराया का हवाला भी दिया है. इसमें कहा गया है, ‘कोरोना काल से पूर्व केरल एक्सप्रेस में ग्वालियर से भोपाल का एसी2 का किराया ₹850 था जो बढ़कर अब ₹1017 हो गया है. वहीं छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में रायपुर और नागपुर के बीच एसी 3 का किराया ₹450 से बढ़कर ₹999 हो गया है और राजधानी में बिलासपुर से भोपाल के बीच एसी3 का किराया ₹1350 से ₹1869 कर दिया गया है.’

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है, ‘केंद्र सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत अक्टूबर 2020 में जारी अनलॉक 4-5 के गाइडलाइन में कहा गया था कि रेल यात्रा फ्री रहेगी लेकिन बेतहाशा किराया वृद्धि से सरकार के करनी और कथनी में काफी अंतर दिख रहा है.’

याचिकाकर्ता का यह भी आरोप है कि राजधानी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में भोजन का चार्ज भी वसूला जा रहा है लेकिन खाना उपलब्ध नहीं कराया जाता. बल्कि अनाधिकृत वेंडरों को खाद्य सामाग्री बेचने की अनुमति दी जा रही है जो कोरोना प्रोटोकाॅल के विरुद्ध है.

याचिका में रेलवे बोर्ड और केंद्र सरकार के विरुद्ध राज्यों के बीच भेदभाव करने का भी आरोप लगाया गया है.

आरोप में कहा गया है कि, ‘दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में मेट्रो एवं कई लोकल और पैसेंजर ट्रेन चल रही हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में जहां आम आदमी स्पेशल ट्रेन का किराया वहन कर पाने में सक्षम नहीं है वहां कोई लोकल और पैसेंजर गाड़ी बहाल नहीं की गई है.’

सुनवाई के दौरान रेलवे बोर्ड की तरफ से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल रमाकांत मिश्र ने कोर्ट को बताया कि बोर्ड द्वारा सभी निर्णय केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार लिया गया है.

मिश्र ने ज्यादा जानकारी देने के लिए और समय मांगा है जिसे कोर्ट ने मान लिया और अगली सुनवाई फरवरी के पहले सप्ताह के लिए निर्धारित की है.


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‘महामारी के नाम पर रेलवे के निजीकरण की बड़ी तैयारी’

दिप्रिंट से बात करते हुए श्रीवास्तव ने बताया, ‘रेलवे को लेकर बोर्ड और केंद्र सरकार के इस व्यवहार से जाहिर है कि महामारी के नाम पर भारतीय रेलवे के निजीकरण की बड़ी तैयारी हो रही है.’

श्रीवास्तव ने कहा, ‘केंद्र सरकार और रेलवे बोर्ड ने कोर्ट के सामने माना है कि जिन गाड़ियों को स्पेशल ट्रेन बताकर चलाया जा रहा है उनमें कुछ भी स्पेशल नहीं है और उनकी समय सारिणी, हॉल्टिंग स्टेशन और सुविधाएं सामान्य गाड़ियों के समान है. फिर किराया डेढ़ से दो गुना ज्यादा क्यों है. सरकार और रेलवे द्वारा इसपर आजतक कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है.’

श्रीवास्तव ने आरोप लगाया, ‘केंद्र सरकार की यह मुहिम रेलवे को निजी हांथों में देने की तैयारी का हिस्सा है. लोकल गाड़ियों को बंद रखने और किराया अधिक वसूलने के पीछे मंशा आम जनता को आने वाले दिनों के लिए तैयार रहने के लिए अगाह करना है क्योंकि यह सबको पता है कि कॉर्पोरेट जगत के हांथों में जाने के बाद रेलवे की क्या सूरत होगी.’

गौरतलब है कि इस जनहित याचिका पर पहला नोटिस पिछले साल 9 अक्टूबर को जारी हुआ था पर रेलवे बोर्ड से इसका जवाब नहीं आया. इस बार हाई कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए दो सप्ताह में बोर्ड को जवाब दाखिल करने को कहा है.


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