नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) एक अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा है कि वीडियोकॉन समूह से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एवं प्रबंध निदेशक (एमडी) चंदा कोचर और उनके पति के खिलाफ धनशोधन का ‘प्रथम दृष्टया’ मामला बनता है। न्यायाधिकरण ने दंपत्ति के करोड़ों रुपये मूल्य के मुंबई स्थित फ्लैट को कुर्क करने के ईडी के 2020 के आदेश को बरकरार रखा।
न्यायाधिकरण ने तीन जुलाई के आदेश में कहा कि वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चंदा कोचर के खिलाफ लगाए गए ‘‘लेन-देन के बदले लाभ’’ के आरोप में आधार पाता है। यह आरोप 300 करोड़ रुपये का ऋण वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (वीआईईएल) को मंजूर करने से जुड़ा है। ऋण मिलने के बाद, वीडियोकॉन ग्रुप ने 64 करोड़ रुपये की राशि एनआरपीएल नाम की कंपनी को हस्तांतरित की। एनआरपीएल चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी है।
उक्त ऋण को आईसीआईसीआई बैंक की स्वीकृति समिति द्वारा जून 2009 और अक्टूबर 2011 के बीच मंजूरी दी गई थी और चंदा कोचर निजी ऋण देने वाली कंपनी की एमडी और सीईओ होने के अलावा इस समिति की सदस्य भी थीं।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की एक प्राथमिकी पर आधारित ईडी के मामले में दावा किया गया है कि चंदा कोचर ने इस राशि को मंजूरी देते समय अपने आधिकारिक पद का ‘दुरुपयोग’ करके आईसीआईसीआई बैंक को धोखा देने के लिए एक ‘आपराधिक साजिश’ रची।
जांच एजेंसियों के अनुसार, चंदा कोचर ने अपने पति के माध्यम से वीआईएल या वीडियोकॉन समूह के प्रमोटर वी एन धूत से अवैध रूप से रिश्वत/अनुचित लाभ प्राप्त किया।
ईडी ने जनवरी 2020 में मुंबई के चर्चगेट स्थित सीसीआई चैंबर्स में स्थित कोचर के फ्लैट नंबर 45 को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया था, जो एनआरपीएल की एक संपत्ति है। इसके अलावा, एजेंसी द्वारा दीपक कोचर की एक अन्य कंपनी पर छापे के दौरान जब्त की गई 10.5 लाख रुपये की नकदी भी कुर्क की गई थी।
धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के निर्णायक प्राधिकार ने नवंबर 2020 में ईडी की कुर्की की पुष्टि करने से इनकार कर दिया था और परिणामस्वरूप, संघीय जांच एजेंसी ने अपीलीय न्यायाधिकरण में अपील की।
न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘यह सही हो सकता है कि इस मुद्दे का फैसला निचली अदालत द्वारा किया जाएगा, लेकिन हम प्रथम दृष्टया प्रतिवादियों के खिलाफ धन शोधन का अपराध करने का मामला पाते हैं और इसलिए, (ईडी का) अस्थायी कुर्की आदेश उचित है।’’
इसने कहा कि ‘‘दीपक कोचर और यहां तक कि वीडियोकॉन समूह द्वारा शुरू किए गए उद्योगों के काम में पूरी तरह से हेराफेरी की गई थी।’’
न्यायाधिकरण ने चंदा कोचर की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्हें ‘‘अपने पति के व्यावसायिक मामलों की जानकारी नहीं थी’’ और उन्होंने अपनी दलील में अनभिज्ञता का दावा किया था।
न्यायाधिकरण ने 82 पृष्ठों के आदेश में कहा कि प्रतिवादी (चंदा कोचर) से बैंक के नियमों और नीति के अनुसार आचरण करने की अपेक्षा थी और वह अपने पति के संबंधों और मामलों के बारे में अनभिज्ञता का दावा नहीं कर सकतीं।
न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘…आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन उद्योग समूह को 300 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत करना, जिसकी समिति में चंदा कोचर भी शामिल थीं, बैंक के नियमों और नीति के विरुद्ध था।’’
न्यायाधिकरण ने कहा कि फ्लैट उपरोक्त 64 करोड़ रुपये में से खरीदा गया था और इसलिए ईडी ने इसे अपराध की आय बताते हुए जब्त कर लिया था।
न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘हमें उस (ईडी) आदेश में कोई अवैधता नहीं दिखती, बल्कि मामले से संबंधित सभी मुद्दों पर निर्णायक प्राधिकार के निष्कर्ष गलत लगते हैं।’ न्यायाधिकरण ने चंदा कोचर की इस दलील को खारिज कर दिया कि वीडियोकॉन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज को ऋण स्वीकृत करने का निर्णय उन्होंने नहीं, बल्कि एक समिति ने लिया था और इसलिए, ऋण की मंजूरी और वीडियोकॉन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज द्वारा 64 करोड़ रुपये के हस्तांतरण के बीच ‘कोई संबंध’ नहीं था।
भाषा अमित नरेश
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