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Friday, 19 April, 2024
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कैसे COVID और सरकारी फंड की कमी के कारण कौशल विकास केंद्र किराया और वेतन नहीं चुका पा रहे हैं और बंद हो रहे हैं

कुछ कौशल विकास केंद्रों ने अपनी दुकान बंद कर दी है, जबकि कुछ अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हैं. सरकार इन केंद्रों को भुगतान में देरी के लिए बजट संबंधी बाध्यताओं का हवाला दे रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली स्थित एक कौशल विकास केंद्र के मालिक संजय सिंह इसे बंद करने की कगार पर हैं. पिछले एक साल के दौरान संजय सिंह 19 ऐसे केंद्रों को बंद कर चुके हैं जिन्हें वह देश के विभिन्न हिस्सों में चलाते थे- क्योंकि उनके पास इन्हें चलाने के लिए पैसे नहीं थे.

सिंह कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) के साथ जुड़कर काम कर रहे 2,650 प्रशिक्षण भागीदारों या टीपी में से एक है. इन ट्रेनिंग पार्टनर का काम स्किल-ट्रेनिंग के उपाय करना है. कौशल केंद्रों को चलाने के लिए केंद्र की ओर से धन कुछ मापदंडों के आधार पर तीन चरणों में दिया जाता है.

लेकिन, सरकार ने कोविड-19 महामारी के कारण बजटीय बाध्यताओं का हवाला देते हुए इन केंद्रों के लिए नगद भुगतान रोक दिया था और अब भुगतान करना शुरू तो किया है लेकिन किस्तों में.

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि कौशल केंद्र चलाना एक नगद-आधारित व्यवसाय है जिसे जारी रखने के लिए ‘मजबूत जेब’ की जरूरत होती है.

युवाओं का कौशल प्रशिक्षण मंत्रालय की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का हिस्सा है. योजना का दूसरा संस्करण जुलाई 2016 में चार साल (2016-20) में एक करोड़ युवाओं को कौशल प्रदान करने के लक्ष्य के साथ 12,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ शुरू हुआ था.

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प्रशिक्षण भागीदारों ने कहा कि कौशल केंद्र पहले से ही ‘कई बुनियादी समस्याएं’ झेल रहे थे लेकिन महामारी ने उन्हें और बुरी तरह चोट पहुंचा दी है, कुछ लोग कौशल उद्योग छोड़ने पर भी विचार करने लगे हैं.

इनमें से कई केंद्रों के लिए तो धन की कमी के कारण अस्तित्व में बने रहना ही संकट बन गया है. कुछ ने अपना काम बंद कर दिया है जबकि अन्य अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हैं.

प्रशिक्षण भागीदारों का दावा है कि इस योजना के तहत देशभर में चलने वाले कुल 8,835 केंद्रों में से 1,500-2,000 बंद हो रहे हैं.

ऐसे केंद्रों के संचालन में आ रही दिक्कतों का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, ‘एक केंद्र को स्थापित करने में लगभग 50 लाख रुपये का खर्च आता है और कर्मचारियों और अन्य खर्चों पर अतिरिक्त 2 लाख रुपये की लागत आती है. नौ माह बंद रहने के बाद और सरकारी मदद के बिना प्रशिक्षण भागीदार इसे कैसे चलाते रह सकते हैं?’

उन्होंने कहा, ‘कई व्यवस्थागत समस्याएं थीं जिनसे हम जूझ रहे थे. पिछले नौ महीनों के दौरान बढ़े दबाव ने स्थिति को बदतर बना दिया है. यह कौशल उद्योग छोड़ने का समय है.’

इस बीच, मंत्रालय के अधिकारियों ने भुगतान में देरी के लिए लॉकडाउन के शुरुआती महीनों में बजटीय बाध्यताओं और फील्ड वैरीफिकेशन में आ रही मुश्किलों का हवाला दिया, साथ ही दावा किया कि अब चीजें ‘सामान्य’ हो गई हैं.

हालांकि, मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने कहा कि फंड को लॉकडाउन में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों के कौशल विकास में इस्तेमाल के लिए निर्धारित कर दिया गया था, जिससे पीएमकेवीवाई योजना के तहत फंड जारी करने की व्यवस्था प्रभावित हुई.

ये टीपी क्या करते हैं और सरकार इन्हें फंड कैसे देती है?

प्रशिक्षण भागीदारों के स्वामित्व वाले कौशल प्रशिक्षण केंद्र यहां नामांकन कराने वाले आंशिक रूप से प्रशिक्षित श्रमिकों को फिर से सिखाने और उनकी क्षमताओं को और बेहतर करने के लिए तीन महीने तक का अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाते हैं.

भर्ती होने के लिए श्रमिकों को अपने निकटतम कौशल केंद्रों पर अपनी पसंद के कौशल पाठ्यक्रम के लिए नाम लिखाना होता है.

मंत्रालय की योजना के तहत टीपी को अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए निर्धारित संख्या में छात्रों की व्यवस्था करने के लिए कौशल विकास के प्रति जागरूकता बढ़ाने का जिम्मा सौंपा जाता है.


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मंत्रालय इन केंद्रों में से हर एक के लिए छात्र नामांकन संख्या को उनके वर्तमान और पिछले प्रदर्शन के आधार पर निर्धारित करता है.

एमएसडीई के साथ जुड़कर एक प्रशिक्षण भागीदार बनने के लिए किसी निजी संस्थान को तब मंत्रालय के पोर्टल पर जाकर पंजीकरण करना पड़ता है जब इसके लिए निविदा मांगी जाती है.

फिर मंत्रालय अनुबंध देने से पहले किसी भी संस्थान का बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण क्षमता, आर्थिक क्षमता आदि मापदंडों के आधार पर आकलन करता है.

इसके बाद ऐसे संबद्ध संस्थान को तीन चरणों में धनराशि दी जाती है. पहले चरण के तहत 30 फीसदी वित्त पोषण तब होता है जब टीपी सरकार द्वारा आवंटित संख्या में छात्र जुटा लेते हैं.

दूसरे चरण में 50 फीसदी फंड छात्रों के पाठ्यक्रम पूरा करने और उन्हें प्रमाणपत्र मिल जाने के बाद दिया जाता है. तीसरे चरण में फंड जो कुल राशि का 20 प्रतिशत होता है, छात्रों को रोजगार मिलने के तीन महीने बाद दिया जाता है.

‘कामकाज जारी रखना मुश्किल हो रहा’

दिल्ली स्थित जेआईटीएम स्किल्स प्राइवेट लिमिटेड चलाने वाले योगेश कुमार इसका एक और उदाहरण हैं कि महामारी और फंड की गंभीर समस्या के बीच टीपी किस तरह अपना केंद्र बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं अभी अपने कर्मचारियों को केवल उनके आधे वेतन का भुगतान कर रहा हूं. सामान्य रूप से केंद्र चलाते रहने के लिए पर्याप्त धन नहीं है. किराया और अन्य तमाम खर्चों के साथ इसे चलाते रहना काफी मुश्किल हो रहा है.’

कुमार, जो देशभर में 48 स्किलिंग केंद्र चलाते हैं, ने बताया कि कुल्लू स्थित अपने केंद्र का किराया देने में असमर्थ होने के कारण तो उन्हें हिमाचल प्रदेश पुलिस ने तलब कर लिया था.

उन्होंने दिप्रिंट को घटना के बारे में बताते हुए कहा, ‘धन की कमी के कारण कंपनी समय पर किराया नहीं दे पा रही थी. इस पर मकान मालिक ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा और उसका किराया मांगा. यह पत्र स्थानीय पुलिस स्टेशन भेज दिया गया था. इसलिए मुझे पुलिस स्टेशन बुलाया गया और कई बार बातचीत के बाद मकान मालिक के साथ 50 प्रतिशत किराये की बात पर समझौता हुआ.’


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उन्होंने बताया, ‘मकान मालिक कानूनी नोटिस भेज रहे हैं और बकाया भुगतान के लिए प्रशिक्षण भागीदारों को हर तरह से बाध्य कर रहे हैं. हम उनकी समस्या समझते हैं लेकिन पैसे की कमी के कारण हम भी इन खर्चों को कहां से पूरा करें.’

कुमार ने कहा कि उन्होंने अपने केंद्रों को बचाए रखने के लिए लॉकडाउन के बाद राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) से 1.5 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन लिया था.

एनएसडीसी मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और प्रशिक्षण भागीदारों की मदद का जिम्मा संभालता है.

दिल्ली के रोहिणी इलाके में स्थित एक कौशल केंद्र के 40 वर्षीय मालिक गौरव मिश्रा भी फंड की कमी से जूझ रहे हैं. एक समय में लगभग 300 छात्रों को प्रशिक्षित करने में सक्षम इस केंद्र में अब गिन-चुने छात्र ही बचे हैं.

मिश्रा ने कहा, ‘आमतौर पर सरकार हमें प्रशिक्षण के लिए छात्रों की निर्धारित संख्या देती है. एक बार जब हमारे पास निर्धारित संख्या में छात्रों का पंजीकरण हो जाता है, तो मंत्रालय पूरे फंड का 30 प्रतिशत हिस्सा पहले चरण के तौर पर हमें भेज देती है. इस वर्ष मार्च में वो बैच रद्द कर दिए गए जिनमें कोविड के कारण छात्रों की निर्धारित संख्या पूरी नहीं हो पाई थी. कम संख्या में छात्रों के साथ फंड की राशि भी घट गई है और हमें इस राशि का अब तक केवल एक छोटा हिस्सा ही मिला है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अनलॉक के बाद हमने कामकाज फिर शुरू कर दिया है, लेकिन छात्रों की कम संख्या और यहां तक कि कम धनराशि के साथ इसे जारी रखना मुश्किल हो रहा है.’

एक सरकारी नोटिस के मुताबिक कोविड की वजह से मई में दो लाख से अधिक छात्रों वाले 315 बैच रद्द कर दिए गए थे.

न केवल कौशल केंद्रों के मालिक, बल्कि उनके कर्मचारियों को भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.

दिल्ली में एक कौशल केंद्र के कर्मचारी ने बताया, ‘मुझे महीनों से अपना पूरा वेतन नहीं मिला है. छोटे स्तर के कौशल केंद्र सरकारी सहायता के बिना नहीं चल सकते. अगर हम मीडिया से बात करते हैं तो डर है कि हमारे अनुबंध निलंबित किए जा सकते हैं.’

‘हालात अब ठीक हो रहे’

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की जा रही है कि फंड प्रशिक्षण भागीदारों तक पहुंच सके.

उन्होंने कहा, ‘उन केंद्रों को गरीब कल्याण योजना के तहत प्राथमिकता दी जाएगी, जहां नामांकन के बाद बैच रद्द कर दिए गए थे. एमएसडीई 116 जिलों में तीन लाख प्रवासी श्रमिकों के कौशल विकास और उनके कौशल को बढ़ाने की व्यवस्था करने में लगी है.’

अधिकारी ने कहा, ‘लॉकडाउन के शुरुआती महीनों के दौरान हमारे सामने बजट की समस्या थी और फील्ड वैरीफिकेशन में भी मुश्किल हो रही थी जिससे भुगतान थोड़ा रोकना पड़ा. हालांकि, अब चीजें सुचारू हो गई हैं.’

दिप्रिंट ने मामले में टिप्पणी के लिए मंत्रालय के सचिव प्रवीण कुमार से फोन कॉल के जरिये संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन वह उपलब्ध नहीं थे.

एनएसडीसी के सीईओ मनीष कुमार ने पिछले माह एक साक्षात्कार में कहा था, ‘इसका खतरा है कि प्रशिक्षण भागीदार अपना केंद्र बंद कर सकते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है. इसके कई कारण हैं. यह बंद (विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन) काफी लंबा खिंचा है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने कई तरह से राहत देने की कोशिश की है. उदाहरण के लिए जिन लोगों ने हमसे ऋण लिया है, उन्हें छह महीने के लिए मूलधन और ब्याज दोनों पर मोराटोरियम दिया गया है. इसी तरह अच्छे प्रशिक्षण भागीदारों के लिए हमारे पास वर्किंग कैपिटल लोन की व्यवस्था है. हम चाहते हैं कि अच्छे लोग बचें. जो लोग बहुत छोटे स्तर पर काम कर रहे हैं–शायद जिन्होंने अतीत में खुद को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया है—वे सबसे ज्यादा खतरे में होंगे.’

धनराशि प्रवासी श्रमिकों के कौशल के लिए दी

फंड की कमी की शिकायतों के बावजूद कौशल विकास मंत्रालय जनवरी 2021 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तीसरे संस्करण को लॉन्च करने की तैयारी में हैं. लेकिन इस बार यह योजना एक साल की पहल वाली होगी.

मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि योजना में यह बदलाव धन की कमी की ओर इशारा करता है, जो कि महामारी के कारण चिकित्सा पर बढ़े सरकारी व्यय के कारण प्रभावित हो रही है.

जून में मंत्रालय ने गरीब कल्याण योजना के तहत देश के 116 जिलों में 3,00,000 प्रवासी मजदूरों के कौशल विकास में रुचि दिखाई थी.

दिप्रिंट को मिले आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के कौशल विकास के लिए 450 करोड़ रुपये की राशि डायवर्ट की थी.

मंत्रालय के एक तीसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार ने एक स्वैच्छिक कदम के तौर पर यह धन गरीब कल्याण योजना की ओर डायवर्ट किया था. इसका पीएमकेवीवाई-2 योजना पर असर पड़ना स्वाभाविक है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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