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Tuesday, 2 December, 2025
होमदेशबाधाओं को मात देकर गुजरात के तीन फुट कद वाले चिकित्सक ने पाई पहली सरकारी नौकरी

बाधाओं को मात देकर गुजरात के तीन फुट कद वाले चिकित्सक ने पाई पहली सरकारी नौकरी

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अहमदाबाद, दो दिसंबर (भाषा) कद भले ही तीन फुट है, लेकिन हौसला पहाड़ जैसा और इसी के बूते गुजरात के भावनगर निवासी 25-वर्षीय गणेश बरैया ने बचपन का सपना पूरा करते हुए डॉक्टर बनने के बाद अब चिकित्सा अधिकारी के रूप में अपनी पहली नियुक्ति हासिल कर ली है।

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले बरैया चलने-फिरने में 72 प्रतिशत तक अक्षम हैं। डॉक्टर बनने के लिए उन्होंने उच्चतम न्यायालय तक कानूनी लड़ाई लड़ी। कठिनाइयों का पहाड़ सामने आया, पर कभी हार नहीं मानी।

उनकी मेहनत रंग लाई और पिछले सप्ताह उन्होंने भावनगर जिले के सरकारी अस्पताल सर तख्तसिंहजी सामान्य अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी (श्रेणी-2) के रूप में कार्यभार संभाला।

गोरखी गांव के निवासी इस युवा चिकित्सक ने कहा, ‘‘छोटी उम्र से ही जब मुझसे लक्ष्य पूछा जाता था, मैं कहता था-मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं।’’

उन्होंने अपने असाधारण सफर में मार्गदर्शन देने वाले गुरुओं, परिवार और मित्रों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मेरे गुरु ने डॉक्टर बनने की पूरी यात्रा में मेरा साथ दिया। आज जब मैं सर टी जनरल अस्पताल में मरीजों का इलाज कर रहा हूं, तो अपनी उपलब्धि नीलकंठ विद्यापीठ के गुरु दलपत कटारिया, रेवतसिंह सर्वैया, अपने माता-पिता और मित्रों को समर्पित करता हूं।’’

बरैया ने बताया कि कटारिया ने ही उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वह दुनिया के सबसे छोटे कद के डॉक्टर बन सकते हैं। यहीं से नीलकंठ विद्यापीठ, भावनगर में विज्ञान संकाय में उनकी 12वीं की पढ़ाई और डॉक्टर बनने की यात्रा शुरू हुई।

अपने छात्र की सफलता पर गर्व व्यक्त करते हुए कटारिया ने कहा, ‘‘लंबी कानूनी लड़ाइयों के बाद, 72 प्रतिशत चलने-फिरने में अक्षमता वाले किसान के बेटे ने साबित कर दिया कि सपने सच होते हैं।’’

बरैया का जन्म किसान विठ्ठलभाई बरैया के घर हुआ था। कटारिया ने याद किया कि एक बार जादूगरों ने इस बच्चे को सर्कस में करतब करने के लिए रुपये देने की पेशकश भी की थी, और पिता को हमेशा डर रहता था कि कहीं उसका अपहरण न हो जाए।

विज्ञान संकाय की पढ़ाई पूरी करने के बाद बरैया ने 2018 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) उत्तीर्ण की।

लेकिन उसी वर्ष उन्हें बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, जब भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) ने उनकी दिव्यांगता के आधार पर एमबीबीएस में प्रवेश देने से इनकार कर दिया।

बरैया ने बताया, “स्कूल ने एमसीआई (अब राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग) के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया, लेकिन पिता आर्थिक स्थिति के कारण पहले हिचकिचा रहे थे। तब स्कूल प्रबंधन ने अदालत का पूरा खर्च उठाने का फैसला किया।”

उन्होंने कहा, “स्कूल के सहयोग से मैंने गुजरात उच्च न्यायालय में एमसीआई के फैसले को चुनौती दी, जिसने परिषद के निर्णय को बरकरार रखा। इसके बाद हमने 2018 में उच्चतम न्यायालय का रुख किया।”

इस बीच, उन्होंने बीएससी में दाखिला ले लिया।

उच्चतम न्यायालय ने 22 अक्टूबर 2018 को बरैया के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि दिव्यांगता डॉक्टर बनने में बाधा नहीं हो सकती, क्योंकि चिकित्सा सेवाओं में प्रशासन, रेडियोलॉजी, मनोविज्ञान जैसे कई गैर-क्लिनिकल क्षेत्र भी हैं।

इसके बाद 2019 में बरैया को भावनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला, जहां डीन, प्रोफेसरों और सहपाठियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। मेडिकल की पूरी पढ़ाई के दौरान सहपाठी उनके लिए आगे की सीटें आरक्षित रखते और हर व्याख्यान में उनका सहयोग करते रहे।

भाषा खारी सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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