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Wednesday, 24 April, 2024
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किसानों के साथ मिलकर करेंगे पेटेंट: IIT मद्रास के नए निदेशक संस्थान को कैसे बनाएंगे बेहतर

IIT मद्रास के निदेशक कामकोटि वीजहिनाथन कहते हैं कि संस्थान में लेशमात्र भी जतिगत भेदभाव नहीं होगा. उन्होंने ग्रामीण भारत को तकनीक के इकोसिस्टम से जोड़ने की योजनाओं के बारे में बात की. जनवरी में उन्हें IIT मद्रास का नया डायरेक्टर बनाया गया है.

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चेन्नई: IIT मद्रास के नए निदेशक कामकोटि वीजहिनाथन को उम्मीद है कि उनके कार्यकाल में संस्थान, भारतीय किसानों के साथ मिलकर लाइसेंस के लिए आवेदन करेगा.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में कामकोटि ने कहा, ‘IIT मद्रास को क्या बेहतर बनाएगा? मैं अपने पांच साल के कार्यकाल में चाहूंगा कि IIT मद्रास और किसान, साथ मिलकर लाइसेंस के लिए आवेदन करें और लाइसेंस के सभी अधिकार उन किसानों को दिए जाएं.’

उन्होंने कहा कि IIT मद्रास के इनक्यूबेशन सेंटर और ग्रामीण तकनीक केंद्रों की मदद से, भारत के शीर्ष संस्थानों का ज्ञान ग्रामीण आबादी को उपलब्ध किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘सीएसआर फंड का इस्तेमाल करके, हमने तिरूवल्लूर जिले (तमिलनाडु) में दो ग्रामीण तकनीक केंद्रों को बनाया है.’

इन केंद्रों में संस्थान की ओर से 3डी प्रिंटर लगाने, बेसिक कोडिंग सिखाने, इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट और मैकेनिकल डेवेलवमेंट से जुड़े कौशल सिखाने की व्यवस्था की जाएगी, इन सबकी मदद से छोटे सिस्टम बनाने और छोटे स्तर पर प्रयोग करने में मदद मिलेगी.

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कामकोटि ने कहा, ‘तमिलनाडु में हम 50 केंद्र स्थापित करना चाहते हैं, और आनेवाले समय में इसे दूसरे राज्यों में भी बढ़ाएंगे. फार्मिंग सेक्टर के पास कई आइडिया हैं. लेकिन, किसानों को बौद्धिक संपत्ति अधिकार की अवधारणा की जानकारी नहीं है.’

कामकोटि ने कहा कि IIT मद्रास तमिलनाडु सरकार के साथ मिलकर रूरल इंटरैक्शन सेंटर भी स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है, जहां पर विशेषज्ञ वॉलेंटियर, ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं से रोजाना तकनीकी विषयों पर ऑनलाइन तरीके से बातचीत करेंगे. उन्होंने कहा, ‘इससे ग्रामीण भारत के छात्र-छात्राओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा.’

कामकोटि ने कहा, ‘हमारे पास 50,000 एलुमनाई का नेटवर्क है, इनमें से सैकड़ों लोग इस तरह की बातचीत में शामिल होना चाहते हैं. इन आसान तरीकों से हम डिजिटल खाई को लक्ष्य बना रहे हैं.’

‘हम जातिगत भेदभाव के आरोपों को गंभीरता से लेंगे’

कैंपस में जातिगत भेदभाव के आरोपों के जवाब में कामकोटि ने कहा कि वह इस तरह की शिकायतों को बहुत गंभीरता से लेने का इरादा रखते हैं. जनवरी में उन्हें IIT मद्रास का निदेशक बनाया गया है.

उन्होंने कहा, ‘अगर जातिगत भेदभाव से जुड़ी कोई शिकायत आती है, तो हम इसे बहुत गंभीरता से लेनेवाले हैं. हम अपनी फैकल्टी को भी इसके लिए संवेदनशील बनाया है. IIT मद्रास में लेशमात्र भी जातिगत भेदभाव नहीं होगा.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ग्रामीण भारत को तकनीक के इकोसिस्टम में शामिल करने से इन्क्लूसिविटी (सबको साथ लेकर चलने/समावेशिता) के लक्ष्यों को पाने में भी मदद मिलेगी.’

कामकोटि ने कहा कि संस्थान में ‘जातिगत भेदभाव से जुड़े आरोपों की जांच के लिए, पूरी पारदर्शिता के साथ काम करने वाली इंटरनल कंप्लेंट कमिटी है.’

यह पूछे जाने पर कि फैकल्टी में ज़्यादा महिलाओं को शामिल करने की उनकी क्या योजना है. कामकोटि ने कहा कि पीएचडी पूरी करने के बाद महिलाओं को फैकल्टी के पदों के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वह, दूसरे IIT के सहकर्मियों के साथ मिलकर, केंद्रों के गठन की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘असल दिक्कत है कि भारतीय व्यवस्था में पीएचडी पूरी करने का समय, शादी करने की उम्र के साथ फिट नहीं बैठता है.’ उन्होंने कहा कि पारंपरिक ढर्रे में महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वह 25 साल की उम्र तक शादी कर लें, लेकिन आमतौर पर कोई 26 से 27 साल की उम्र में पीएचडी हासिल करता है.

निदेशक ने कहा, ‘इसकी वजह से महिलाएं फैकल्टी के पदों के लिए आवेदन नहीं कर पाती हैं. दूसरी तरफ पुरुषों के पास ज़्यादा समय होता है, जिस उम्र से पहले तक उनसे शादी करने की उम्मीद लगाई जाती है.’

कामकोटि के मुताबिक, महिलाएं खोजपरक, ऊंची सैलरी की नौकरियों को प्राथमिकता देती हैं, जिनमें उन्हें पसंद के मुताबिक काम के घंटे और घर से काम करने का विकल्प मिलता है.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, हम देख रहे हैं कि हाल ही में फैकल्टी के पदों के लिए ज़्यादा महिलाएं आवेदन कर रही हैं.’ उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे कई सामाजिक मुद्दे हैं, लेकिन हम यह पक्का करने के लिए कि और भी महिलाएं आवेदन करें, हरसंभव उपाय कर रहे हैं.’

‘ब्रेन ड्रेन’ कैसे मदद कर रही है

भारत के शीर्ष वैज्ञानिक भारत में फैकल्टी बनने के बजाय अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम करना पसंद करते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा कि आखिरकार, यह मायने नहीं रखता है, क्योंकि ‘ज्ञान भारत में ही है.’

कामकोटि ने कहा, ‘पिछले दशकों में हुआ ब्रेन ड्रेन, जब भारतीय प्रतिभा विदेशों में काम करना पसंद करते थे, इसकी वजह से वर्तमान में भारत के लिए ज्ञान के पूल का एक्सेस बढ़ा है.’

उन्होंने कहा कि IIT मद्रास के पास अब विदेश गए एलुमनी का नेटवर्क है, लेकिन अब वे दान, मेंटॉरशिप, और इंडस्ट्री पार्टनरशिप के जरिए अपना योगदान दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि एंटरप्रेन्योशिप को गति मिली है.

कामकोटि ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर काम करने का अनुभव रखने वाले लोगों से मिले सुझाव हमें बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने में सक्षम बनाते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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