नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को यह मुद्दा तीन न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया कि क्या अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय जाना पक्षकार की पसंद है या वादियों के लिए पहले सत्र न्यायालय का रुख करना अनिवार्य है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ के गठन के बाद ही की जाएगी।
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किए जाने की आवश्यकता है।’’
उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले मामले में सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को न्यायमित्र नियुक्त किया था।
शीर्ष अदालत ने आठ सितंबर को केरल उच्च न्यायालय की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सीधे सुनवाई करने की ‘नियमित प्रथा’ पर ध्यान दिया था, जिसमें वादी को सत्र न्यायालय में जाने की आवश्यकता नहीं होती।
उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया था, ‘‘एक मुद्दा जो हमें परेशान कर रहा है, वह यह है कि केरल उच्च न्यायालय में यह एक नियमित प्रथा है कि वादी द्वारा सत्र न्यायालय का रुख किए बिना ही उच्च न्यायालय अग्रिम जमानत आवेदनों पर सीधे विचार कर लेता है। ऐसा क्यों है? ’’
इसमें कहा गया था कि पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 में एक पदानुक्रम प्रदान किया गया था।
बीएनएसएस की धारा 482 गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को जमानत देने के निर्देश से संबंधित है।
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा था, ‘‘ऐसा किसी और राज्य में नहीं होता। केवल केरल उच्च न्यायालय में ही हमने देखा है कि नियमित रूप से (अग्रिम जमानत के लिए) आवेदनों पर सीधे विचार किया जा रहा है।’’
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दो व्यक्तियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इन दोनों ने केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अग्रिम जमानत के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
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