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Friday, 29 March, 2024
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सभी निवासियों का होगा एक ‘गोल्डन रिकॉर्ड’- एमवीए सरकार ने सेवाओं में तेजी के लिए मास्टर डेटाबेस की योजना बनाई

राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले साल सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी के लिए महाराष्ट्र यूनिफाइड सिटिजन डेटा तैयार करने को मंजूरी दी थी. सरकारी प्रस्ताव बताता है कि राज्य ने इस प्रोजेक्ट के लिए 294.02 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

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मुंबई: उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने महाराष्ट्र के सभी निवासियों का एक मास्टर डेटाबेस तैयार करने का फैसला किया है, दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इसे राज्य-स्तरीय विशिष्ट आईडी के साथ तैयार किया जाएगा.

महाराष्ट्र प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत, ‘नागरिकों के बारे में 360-डिग्री व्यू’ यानी प्रत्येक जानकारी और जिन सरकारी योजनाओ और सेवाओं का वे लाभ उठा रहे हैं, उस पर राज्य सरकार के सभी विभागों का डेटा एक सिंगल प्लेटफॉर्म पर लाया जाएगा.

राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि ‘इंटेलिजेंस की एक लेयर के साथ प्रत्येक नागरिक का गोल्डन रिकॉर्ड’ करने का विचार है, जो डेटा-आधारित फैसले लेने में सरकार की मदद कर सकता हो. सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी के लिए महाराष्ट्र यूनिफाइड सिटिजन डेटा’ प्रोजेक्ट के तहत सरकार एक एकीकृत डेटाबेस तैयार करने की योजना बना रही है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की उसके घर-परिवार के साथ पूरी जानकारी हो.

इस पहल का उद्देश्य योजनाओं की बेहतर योजना बनाने में राज्य सरकार के विभागों को मदद करना, हर योजना के लिए नई लाभार्थी सूची बनाने में बर्बाद होने समय बचाना और लाभार्थियों के दोहराव या धोखाधड़ी की घटनाओं को कम करना है.

इस प्रोजेक्ट पर अमल की जिम्मेदारी राज्य के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) विभाग को मिली है.

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राज्य कैबिनेट ने पिछले साल दिसंबर में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी. दिप्रिंट को हासिल फरवरी के एक सरकारी प्रस्ताव के मुताबिक, राज्य प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट के लिए 294.02 करोड़ रुपये आवंटित करने का निर्णय लिया है.

इस पहल के बारे में विस्तार से बताते हुए राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि ‘जब भी कोई विभाग कोई नई योजना लागू करता है, तो उसे पात्र लाभार्थियों की सूची तैयार करने के लिए नए सिरे से सर्वेक्षण करना पड़ता है.’

अधिकारी ने कहा, ‘हाल ये है कि हर विभाग के पास पहले से ही नागरिकों का एक बड़ा डेटाबेस है, लेकिन फिर भी नए सर्वेक्षणों की जरूरत पड़ती है क्योंकि विभिन्न विभागों के इन सभी डेटा को मर्ज नहीं किया गया है.’

अधिकारी ने कहा कि कभी-कभी ‘अलग-अलग विभागों के डेटाबेस में विवरण गलत होते हैं या एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘वे अपडेट भी नहीं हैं. हम एकीकृत मास्टर डेटा में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के जरिये इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करेंगे. यह मौजूदा प्रणाली की खामियों की वजह से होने वाली धोखाधड़ी और गड़बड़ियों को रोकने में भी मददगार होगा.’

राज्य के आईटी विभाग ने एक ऐसी कंपनी चुनने के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं जो 18 महीनों में अलग-अलग विभागों के मौजूदा डेटाबेस को मिलाकर एक एकीकृत डेटा हब बनाने में मदद कर सके, और उसके बाद अगले तीन साल तक इसे चलाने में सहायता प्रदान कर सकती हो.

इस मामले पर टिप्पणी के लिए आईटी विभाग के प्रधान सचिव के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभालने वाले असीम गुप्ता को फोन कॉल करके और टेक्स्ट मैसेज भेजकर उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.


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‘विभागों के लिए डेटा ऑन-बोर्ड करना अनिवार्य होगा’

आईटी विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, राज्य में सक्रिय तौर पर 246 योजनाएं चल रही हैं, जो 31 विभागों और 30 कमिश्नरी और उनके अधीन 29 निदेशालयों की तरफ से लागू की गई हैं.

महाराष्ट्र के ‘आपले सरकार’ पोर्टल की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि राज्य सरकार 506 प्रकार की सेवाएं प्रदान कर रही है, जिनमें से 389 को डिजिटल रूप से लागू हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की जनसंख्या 11.24 करोड़ है.
मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रत्येक एक विभाग डेटा एकत्र करता है, उसका सत्यापन करता है और लाभार्थियों की पात्रता तय करता है, योजनाओं की रूपरेखा बनाता है, और फिर लाभार्थियों को उनका फायदा मिल पाता है.

राज्य सरकार अभी अधिकांश योजनाओं से जुड़े फायदे लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण पोर्टल के जरिये सीधे उनके बैंक खातों में उपलब्ध कराती है.

राज्य सरकार के सूत्रों ने कहा कि यद्यपि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण पोर्टल ने काफी हद तक लाभ वितरण की प्रक्रिया को गति देने में मदद की है, फिर भी योजनाओं की रूपरेखा तैयार करने और लाभार्थियों की पहचान करने में बहुत समय लगता है, इससे प्राकृतिक आपदा, महामारी या सामाजिक अशांति जैसे अप्रत्याशित परिस्थितियों में सरकार की तरफ से उपयुक्त कदम उठाने में देरी होती है.

उन्होंने कहा कि आधार के इस्तेमाल से काफी हद तक मदद मिली है, क्योंकि इससे लोगों के गलत तरीके से लाभार्थी बनने की घटनाओं में कमी आई है. लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैं क्योंकि आधार को जोड़ने से पहले भुगतान पर डेटा उपलब्ध नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा कि एक पूरे घर-परिवार पर आधारित विश्लेषण के लिए भी डेटा उपलब्ध नहीं है, जिससे सरकार के लिए किसी घर के अलग-अलग सदस्यों को होने वाले भुगतान की हिस्ट्री जानना आसान हो सके.

सूत्रों ने कहा कि इन फैक्टर को ध्यान में रखते हुए ही राज्य सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे अनिवार्य तौर पर अपनी हर एक योजना से जुड़ा डेटा कंप्यूटराइज तरीके से ऑन-बोर्ड करके आईटी विभाग को उपलब्ध कराएं.

सरकारी प्रस्ताव में कहा गया है कि आईटी अधिनियम 2000, आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016, महाराष्ट्र सेवा का अधिकार अधिनियम 2015, और 2011 की महाराष्ट्र ई-गवर्नेंस नीति में निर्धारित नियमों के मुताबिक डेटा के संरक्षक की जिम्मेदारी आईटी विभाग की होगी.

राज्य के हर एक निवासी की होगी एक विशिष्ट आईडी

आईटी विभाग के अधिकारियों ने कहा कि प्रोजेक्ट के तहत तैयार होने वाली प्रत्येक निवासी से जुड़ी विशिष्ट आईडी संख्या, किसी भी चिप या बायोमेट्रिक कार्ड के माध्यम से लोगों के साथ साझा नहीं की जाएगी, और इसका उपयोग केवल आंतरिक रिकॉर्ड रखने में होगा.

सरकार हर नागरिक का जो ‘गोल्डन रिकॉर्ड’ रखने की योजना बना रही है, उसमें नाम, पता, जन्म तिथि, शैक्षिक योग्यता, वैवाहिक स्थिति, बच्चों की संख्या, आय, परिवार का ब्योरा, भूमि स्वामित्व ब्योरा, पैन नंबर और ड्राइविंग लाइसेंस नंबर समेत कम से कम 30 अलग-अलग पैरामीटर होंगे.

सरकारी सूत्रों ने कहा कि आईटी विभाग एक ‘यूनीक सिटिजन डेटा हब’ पोर्टल भी बनाएगा, जहां निवासी विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे छात्रवृत्ति, आपदाओं के मामले में सहायता आदि के लिए खुद को पंजीकृत करेंगे. नागरिकों को अपना केवाईसी ब्योरा दर्ज करने के साथ-साथ डिजिटल वॉल्ट में अपने आवश्यक दस्तावेज अपलोड करने होंगे, या फिर राज्य सरकार को अपने डिजिलॉकर खातों के माध्यम से संबंधित दस्तावेजों तक पहुंच की अनुमति देनी होगी. अधिकारियों ने कहा कि इसी तरह का एक मोबाइल ऐप भी होगा.

इससे संभावित लाभार्थियों के त्वरित सत्यापन और उनकी पात्रता निर्धारित करने में मदद मिलेगी.

ऊपर उद्धृत राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘विशिष्ट आईडी और मास्टर डेटा बनाए रखने से सरकार को विशिष्ट योजनाओं के लिए योग्य लाभार्थियों की पहचान में मदद मिलेगी, साथ ही बेहतर योजना बनाने में भी मदद मिलेगी.’

अधिकारी ने बताया कि प्रोजेक्ट पर अमल में राज्य सरकार की मदद करने वाली कंपनी से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह मास्टर डेटा के आधार पर सरकार को विश्लेषणात्मक रिपोर्ट देगी जो पूरी शासन व्यस्था के लिए व्यावहारिक हो, खासकर तब जब उन्हें स्कूलों और अस्पतालों जैसे अन्य संकेतकों के साथ जोड़कर देखा जाए.

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