नई दिल्ली: एक अनजान शहर में मध्य प्रदेश से आई 18-वर्षीय लड़की कई हफ्तों तक शोषण का शिकार बनती रही. बेहतर ज़िंदगी का वादा करके दिल्ली लाई गई इस लड़की को कथित तौर पर एक प्लेसमेंट एजेंसी में बंधक बना लिया गया, उनके मालिक ने बार-बार उनका बलात्कार किया — जिसने दावा किया कि उसने लड़की के लिए 10,000 रुपये दिए हैं — और उन्हें कई घरों में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया, जहां उन्हें ठीक से खाना तक नहीं जाता था और घर से बाहर निकलना भी मना था.
27 फरवरी को उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) कार्यालय, श्रम विभाग और पुलिस के अधिकारियों ने एनजीओ प्रदीपन फाउंडेशन, बचपन बचाओ आंदोलन और बाल विकास धारा की मदद से उन्हें राजौरी गार्डन के एक घर से छुड़ाया. अगले दिन, उन्होंने लड़की को बंधुआ मजदूरी से मुक्त करते हुए एक आधिकारिक रिहाई प्रमाण पत्र जारी किया. दिप्रिंट के पास इस सर्टिफिकेट की एक कॉपी मौजूद है.
लेकिन उनके पास अपनी कंपनी के साथ किए गए सभी समझौतों को रद्द करने वाला एक दस्तावेज़ और एसडीएम से विशिष्ट निर्देश होने के बावजूद न्याय लेना अभी भी मुश्किल बना हुआ है — उनका शोषण करने वालों के खिलाफ अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.
राजौरी गार्डन थाने के पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि मामला मालवीय नगर थाने को स्थानांतरित कर दिया गया है क्योंकि आरोपी की प्लेसमेंट एजेंसी यहीं स्थित है और हमला उसी क्षेत्र में हुआ था. दिप्रिंट ने प्रतिक्रिया के लिए मालवीय नगर के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) से संपर्क किया, लेकिन खबर के छापे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला था.
डिंडोरी के एक छोटे से गांव की 18-वर्षीय लड़की अपनी मां के साथ रहती थीं, जो मनरेगा के तहत दिहाड़ी मज़दूर हैं और उन्हें रोजाना सिर्फ 150 रुपये मिलते हैं. हर रोज़ की तरह ही 20 जनवरी को भी उनकी मां इसी उम्मीद से घर से निकलीं कि उनकी बेटी स्कूल जाएगी.
मां ने दिप्रिंट को बताया, “लेकिन जब मैं काम से घर वापस आई तो वह कहीं नहीं मिली. अगले कुछ दिनों में उनकी बोर्ड परीक्षा शुरू होनी थी.” उन्होंने सोचा ही नहीं था कि उनकी बेटी तस्करी के खतरनाक जाल में फंस गई है.
इस मामले पर काम कर रहे एक वकील के अनुसार, दुर्गा नाम की एक दोस्त पीड़िता को धनीराम नाम के एक व्यक्ति से मिलवाया था. डिंडोरी में सक्रिय कथित तस्कर धनीराम ने उन्हें दिल्ली में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी और बेहतर ज़िंदगी का वादा किया. वकील ने बताया, “धनीराम ने लड़की से कहा कि काम अच्छा है, पैसे भी ज़्यादा है और दिल्ली में अच्छे मौके हैं.” लड़की को यह सपना हकीकत जैसा लगा.
धनीराम पर भरोसा करके वे जनवरी 2025 में दिल्ली चली गई. वहां पहुंचने पर धनीराम ने लड़की को हनुमान प्लेसमेंट एजेंसी में छोड़ दिया, जिसे वीरेंद्र नाम का एक व्यक्ति चलाता था. वहीं से उसकी यातना शुरू हुई. एजेंसी परिसर में बंद करके, वीरेंद्र ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया और फिर उसे चार घरों में घरेलू सहायिका का काम करने के लिए भेज दिया.
इस बीच, घर वापस आकर उनकी मां ने उन्हें काफी ढूंढा. उनके लापता होने के करीब 8 दिन बाद, लड़की की मौसी को अशोक दास नाम के एक एजेंट का फोन आया, जिसने कहा कि वे धनीराम के पास है जिसने उनके लिए काम ढूंढा है. जब उनकी मां ने आखिरकार उसी कॉल पर बात की, तो उनकी बेटी रो रही थी.
पीड़िता की मां ने दिप्रिंट को बताया, “उसने मुझे बताया कि वो उसे मारते-पीटते हैं, खाना नहीं देते और बाहर भी नहीं निकलने देते. उसने मुझसे विनती की कि मैं आकर उसे ले जाऊं.”
उन्होंने यह भी बताया कि कॉल में, वीरेंद्र ने दावा किया कि उसने उनकी बेटी के लिए “10,000 रुपये” दिए हैं और उन्हें जाने देने से इनकार कर दिया. मां ने कहा, “उसने मुझसे कहा कि वह रोती रहती है और काम नहीं करती. वीरेंद्र ने यह भी दावा किया कि उसके पास पीड़िता से भी कम उम्र की लड़कियां हैं जो बिना किसी शिकायत के काम करती हैं.”
मां ने कहा कि उनकी बेटी वापिस देने के लिए वीरेंद्र ने उनसे 10,000 रुपये की मांग की.
मां के अनुसार, उसने वीरेंद्र से कई बार फोन पर बात की, लेकिन उसने उनकी बेटी को छोड़ने से इनकार कर दिया. वे एक बार वीडियो कॉल पर भी बेटी से बात कर पाई, जिस दौरान लड़की रो रही थी और वीरेंद्र उसे डांट रहा था. लड़की फिलहाल सरकारी आश्रय गृह में है.
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बचाव अभियान
फरवरी में, प्रदीपन फाउंडेशन के सदस्य — जो कि मध्य प्रदेश में ग्राम विकास, आजीविका, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और बाल अधिकार जैसे मुद्दों पर काम करने वाला 28 साल पुराना एनजीओ है — लगातार उस इलाके का चक्कर लगा रहे थे, जब वह लापता लड़की की मां से मिले. उसके लापता होने की जानकारी मिलने के बाद, टीम ने तुरंत कार्रवाई की.
प्रदीपन फाउंडेशन के अजीत बेलिया जो लड़की की मां के साथ दिल्ली गए थे, उन्होंने बताया, “सबसे पहले, हम दिल्ली गए और भोपाल में अपनी टीम के साथ बातचीत की. हमने पहले कलेक्ट्रेट से संपर्क किया, जो श्रम से संबंधित मामलों को संभालता है, लेकिन फिर हमें उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) से मिलने के लिए निर्देशित किया गया.”
वह 25 फरवरी को दिल्ली गए. हालांकि, 26 फरवरी को सार्वजनिक अवकाश था, इसलिए उन्होंने मामले के संबंध में औपचारिक शिकायत पत्र के साथ एसडीएम से संपर्क किया. दिप्रिंट ने इस पत्र को देखा है.
बेलिया ने कहा, “हमारा पत्र मिलने के बाद, एसडीएम ने तुरंत एक टीम बनाई, जिसमें एसडीएम कार्यालय, राजौरी गार्डन पुलिस, तहसीलदार, राजौरी गार्डन की टीम, एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन, बाल विकास धारा और प्रदीपन फाउंडेशन के सदस्य शामिल थे.”
27 फरवरी को ही रेस्क्यू टीम ने लड़की को राजौरी गार्डन के एक घर में खोजा, जहां वे घरेलू सहायिका का काम कर रही थीं. बेलिया ने कहा, “हमें वे इमारत की छठी मंजिल पर मिलीं और उन्हें वहां से आज़ाद करवाया गया.”
बचाए जाने के बाद लड़की को मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया.
जब उनसे पूछा गया कि क्या शारीरिक हमले के कोई निशान थे, तो बेलिया ने कहा, “उनके शरीर पर कोई निशान नहीं थे, लेकिन उन्होंने हमें बताया कि उनके साथ मारपीट की गई थी.”
उन्होंने यह भी याद किया कि उन्हें चार अलग-अलग जगहों पर ले जाया गया, जहां उन्हें घरेलू सहायिका के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया, आखिरी में राजौरी गार्डन के एक घर में रखा गया, हालांकि, उन्हें सटीक पता याद नहीं था. उन्होंने कहा, “वह हमेशा उन्हें कार से ले जाते थे और उनको केवल इतना पता था कि उन्हें चार अलग-अलग जगहों पर रखा गया.”
राजौरी गार्डन के घर में रहने के दौरान, लड़की पर लगातार निगरानी रखी जाती थी. बेलिया ने कहा, “उन्हें बाहर कदम रखने की अनुमति नहीं थी, यहां तक कि बालकनी में भी नहीं. वह हर समय उन पर कड़ी नज़र रखते थे.”
क्या कहता है कानून
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच भारत में मानव तस्करी के 10,659 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 29,682 पीड़ित शामिल थे. इस दौरान 26,840 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केवल 1,031 को दोषी ठहराया गया, जबकि 4,936 को बरी कर दिया गया.
मानव तस्करी के मामलों पर काम करते हुए 42 साल बिताने वाले सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी पी.एम. नायर ने बताया कि चूंकि लड़की को यहीं से रेस्क्यू किया गया, एफआईआर दर्ज करना राजौरी गार्डन पुलिस की जिम्मेदारी है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रक्रियागत देरी पर पीड़ित के अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा, “एफआईआर दर्ज होनी चाहिए. रेस्क्यू करने वाले एसडीएम ने पहले ही आधिकारिक पत्र भेज दिया है, जिसका मतलब है कि मामले में दम है.”
उन्होंने कहा कि अगर पुलिस कोई प्रतिक्रिया नहीं देती है, तो मामले को पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के पास ले जाना चाहिए.
नायर ने जोर देकर कहा, “यह कोई साधारण अपराध नहीं है. मानव तस्करी में अत्यधिक शोषण शामिल है और नई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत धारा 111 इसे संगठित अपराध के रूप में वर्गीकृत करती है. पुलिस इसे हल्के में नहीं ले सकती, उन्हें तत्परता और गंभीरता से काम करना चाहिए.”
एसडीएम, राजौरी गार्डन द्वारा जारी किए गए रिहाई प्रमाण पत्र के अनुसार, इस मामले में बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 की धारा 16, 17 और 18 सहित कई कानूनी प्रावधानों का “गंभीर उल्लंघन” शामिल है, जो जबरन या बंधुआ मजदूरी के माध्यम से व्यक्तियों के शोषण को अपराध मानते हैं और अपराधियों के लिए दंड निर्धारित करते हैं.
इसके अलावा, यह मामला बीएनएस की धारा 143, 144 (2) और 146 के तहत आता है. धारा 143 गैरकानूनी कारावास से संबंधित है, जबकि धारा 144 (2) गंभीर परिस्थितियों में गलत तरीके से रोक लगाने से संबंधित है. धारा 146 आपराधिक धमकी और जबरदस्ती से संबंधित अपराधों को संबोधित करती है, जिसमें पीड़ित को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली धमकियों या बल की गंभीरता पर जोर दिया जाता है.
ग्लोबल कंसर्न इंडिया की संस्थापक और मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ मुक्ति गठबंधन की संयोजक वृंदा अडिगे ने बताया, “जब हम तस्करी के बारे में बात करते हैं, तो यह सूक्ष्म और जटिल दोनों है – दो पहलू जिन्हें हमें हमेशा ध्यान में रखना चाहिए.”
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “इसकी जड़ में असहायता और कमज़ोरी है. अगर घर में सब कुछ ठीक होता, तो वे नहीं जाती. काम, बेहतर ज़िंदगी या अपने परिवार के लिए थोड़ी सी आर्थिक राहत का वादा उसके लिए परिस्थितियों से बचने का एक ज़रिया बन गया, लेकिन एक बार जब वह फंस गई, तो वही कमज़ोरी जिसने उन्हें वहां तक पहुंचाया, उन्हें भागने से रोकती रही.”
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