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Friday, 29 March, 2024
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असम से जुड़ी एनआरसी की अंतिम लिस्ट से 19 लाख़ लोग बाहर

एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजारिका ने बताया कि कुल 3,11,21,004 लोग इसमें जगह बना पाये हैं जबकि 19,06,657 लोग इससे बाहर हो गये हैं.

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नई दिल्ली : असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी कर दी गई है और एहतियातन राज्य में धारा 144 भी लागू है. इसमें 19 लाख लोग हैं जिनका लिस्ट में नाम नहीं है. एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजारिका ने बताया कि कुल 3,11,21,004 लोग इसमें जगह बना पाये हैं जबकि 19,06,657 लोग इससे बाहर हो गये हैं. एनआरसी से बाहर किए गये लोगों को अब तय समय में विदेशी न्यायाधिकरण के सामने अपील करनी होगी.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्‍त तक इसकी अंतिम सूची जारी करने की समय सीमा तय की थी. एनआरसी लिस्‍ट को बनाने की प्रक्रिया 4 साल पहले शुरू की गई थी और सरकार ने इसके भीतर ही यह सूची जारी कर दी है. जिनके नाम सूची में शामिल भी हैं, उन्हें भी नाम की स्पेलिंग और कुछ मानवीय त्रुटि को लेकर चिंता है. जो लोग एनआरसी की फाइनल लिस्ट से संतुष्ट नहीं है, वे फॉरेनर ट्राइब्यूनल में अपील कर सकते हैं.

इसके पहले एनआरसी का जो ड्राफ्ट आया था उसमें करीब 40 लाख़ लोग बाहर रह गए थे, यानी अगर उससे तुलना करें तो ये संख्या आधी से भी कम है. इससे साफ है कि करीब 20 लाख़ से ज़्यादा लोग बाद की प्रक्रिया में किस न किसी तरीके से अपनी नागरिकता साबित करने में सफल रहे.

एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के तहत हो रही है. वहीं, इसकी जड़ें 1985 के असम समझौते में हैं. असम के मूल नागरिकों की कई दशकों से ये मांग रही है कि भारत से ‘बाहर के लोगों’ की पहचान करके उन्हें ये से वापस भेजा जाए. हालांकि, इस प्रक्रिया में बाहरी को धर्म के बजाए ‘नस्लीय’ चश्मे से देखा जा रहा है.

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2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ये प्रक्रिया शुरू करने को कहा था. मई 2015 में इसके लिए आवेदन मंगवाए गए और 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया. दिसंबर 2017 और जुलाई 2018 में इससे जुड़े दो ड्राफ्ट जारी किए गए. बाद में दावे और आपत्तियां सामने आईं. एनआरसी में लगी मेहनत और लागत का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसके लिए कुल 62,214 लोग काम कर रहे थे, इसमें 1100 करोड़ रुपए ख़र्च हुए और इससे जुड़ा 100 टेराबाइट का डेटा मौजूद है.

एनआरसी क्या है ?

1951 की जनगणना के बाद पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को जारी किया गया था. अब इसे सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग में 24 मार्च 1971 को कटऑफ डेट मानकर अपडेट किया जा रहा है, इस सूची में बांग्लादेश से अवैध रूप से असम में आने वालों लोगों की पहचान करना है.

योजना यह है कि इस सूची में उन लोगों की एक व्यापक और निर्णायक सूची तैयार की जाये, जिसमें राज्य में रह रहे ‘अवैध विदेशी’ की पहचान की जा सके, यह मूलरूप से असम के लोगों और वैध रूप से राज्य से बाहर चले गए लोगों के खिलाफ है.

यह प्रक्रिया 2013 में शुरू हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी सूची को अपडेट करने के लिए सरकार को निर्देश दिया था. यह मांग 1985 असम समझौते का हिस्सा थी, यह समझौता 1979 में छह साल असम आंदोलन चलाने वालों और केंद्र में राजीव गांधी सरकार के नेतृत्व में हुआ था.

मई, 2015 में असम राज्य के लिए आवेदन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में असम के प्रत्येक निवासी को यह साबित करना था कि राज्य में उसकी विरासत 1971 से पहले की है. इसके लिए आवेदकों को यह साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने पड़ते थे कि उनका नाम 1951 के एनआरसी में या 1971 तक असम के मतदाता सूची में रहा हो या 12 अन्य दस्तावेजों में नाम रहा हो, जो 1971 से पहले जारी किए गए थे.

पिछले वर्ष जुलाई में अंतिम मसौदा जारी होने के बाद व्यापक सुनवाई आधारित प्रक्रिया के माध्यम से दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया था और एनआरसी के मसौदे से बाहर रखे गए लगभग 40 लाख लोगों में से, 36 लाख से अधिक लोगों ने दावों को दायर किया था.

 

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