नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सजा में छूट के अनुरोध को स्वीकार या खारिज करने के सरकार के फैसले की समीक्षा करने की अदालत के पास शक्ति है और वह उसे उसके (सरकार के) फैसले पर पुनर्विचार करने का भी निर्देश दे सकती है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा कि सजा को स्थगित या उसमें छूट देने का विशेषाधिकार सरकार के पास होने के बावजूद कार्यपालिका की शक्तियों का मनमाना इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि कार्यपालिका का विवेकाधिकार कानून का शासन का विषय है और राज्य की कार्रवाई में निष्पक्षता रखे जाने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 में है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘सीआरपीसी की धारा 432 के तहत सजा में छूट के लिए किसी अर्जी को स्वीकार या खारिज करने के सिलसिले में सरकार के फैसले की समीक्षा करने की अदालत के पास शक्ति है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि फैसला मनमानी प्रकृति का तो नहीं है।’’
शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी दोषी राम चंदर की एक याचिका पर आई है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 149 (गैरकानून रूप से एकत्र होना) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी करार दिये जाने पर उम्र कैद की सजा काट रहा है।
दोषी ने समय से पहले अपनी रिहाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि हालांकि अदालत सरकार के फैसले के मनमाना नहीं होने का निर्धारण करने के लिए उसकी समीक्षा कर सकती है, लेकिन यह सरकार की शक्ति को हड़प नहीं सकती और खुद ही माफी नहीं दे सकती।
शीर्ष न्यायालय ने निर्देश दिया कि सजा में छूट के लिए याचिकाकर्ता की अर्जी पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘हम विशेष न्यायाधीश, दुर्ग को पर्याप्त तर्क के जरिये नये सिरे से विचार देने का निर्देश देते हैं। वह इस आदेश को प्राप्त करने के एक महीने के अंदर अपने विचार मुहैया करें।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हम छत्तीसगढ़ राज्य को निर्देश देते हैं कि वह विशेष न्यायाधीश, दुर्ग के विचार प्राप्त करने के एक महीने के अंदर सजा में छूट के लिए याचिकाकर्ता की अर्जी पर नये सिरे से अंतिम फैसला करे। ’’
भाषा सुभाष दिलीप
दिलीप
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