(सुगंधा झा और श्वेता शर्मा)
नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति योगेश सिंह ने शुक्रवार को कहा कि एलएलबी छात्रों के लिए मनुस्मृति शुरू करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया क्योंकि यह उचित नहीं पाया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे अन्य ग्रंथ भी हैं जिनका इस्तेमाल भारतीय ज्ञान पढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि शुक्रवार को अकादमिक परिषद की बैठक के एजेंडे की ‘पूर्व स्क्रीनिंग’ के दौरान प्रस्ताव को रद्द करने के लिए उन्होंने अपनी आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया।
कुलपति ने एलएलबी छात्रों को मनुस्मृति पढा़ने के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को वापस ले लिया और स्पष्ट किया कि शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा इस पर आपत्ति जताए जाने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा ऐसा कोई पाठ नहीं पढ़ाया जाएगा।
न्यायशास्त्र के पाठ्यक्रम में प्रस्तावित परिवर्तन एलएलबी के सेमेस्टर एक और छह से संबंधित हैं। संशोधनों के अनुसार, छात्रों के लिए दो पाठ्यपुस्तकों- जी.एन. झा द्वारा लिखित ‘मनुस्मृति : मेधातिथिभाष्यसमेता’ और टी. कृष्णस्वामी अय्यर द्वारा लिखी ‘कमेंट्री आफ मनुस्मृति- स्मृतिचंद्रिका’ पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव था।
सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने निर्णय लिया कि विधि संकाय द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव विचार-विमर्श के लिए उपयुक्त नहीं है, तथा इसे डीयू की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था अकादमिक परिषद के समक्ष रखे जाने से पहले ही खारिज कर दिया गया।
सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जब यह प्रस्ताव मेरी अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष रखा गया तो हमने इसे उचित नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया। भारतीय ज्ञान सिखाने के लिए कई अन्य ग्रंथ हैं और हमें किसी एक ग्रंथ पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।’’
इस प्रस्ताव की शिक्षकों के एक वर्ग ने कड़ी आलोचना की, जिनका कहना था कि मनुस्मृति महिलाओं और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के प्रति ‘‘प्रतिगामी’’ है तथा प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध है।
वामदल संबद्ध ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) के कई छात्रों ने अस्वीकृत प्रस्ताव के खिलाफ कुलपति कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और इसे विश्वविद्यालय के ‘‘भगवाकरण’’ की ओर एक कदम बताया।
भाषा आशीष मनीषा
मनीषा
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